डिप्रेशन से सुरक्षा कवच: कॉल और ई-मेल नहीं, ‘सामने की मुलाकात’ है ज़रूरी

डिजिटल युग में मानसिक स्वास्थ्य की चुनौती

आज का समय पूरी तरह से डिजिटल हो चुका है। हम एक कॉल या ई-मेल पर दुनिया के किसी भी कोने में बैठे व्यक्ति से तुरंत जुड़ सकते हैं। लेकिन क्या यह सुविधा वास्तव में हमारे मन को हल्का कर रही है? हालिया शोध और पुराने अनुभवों से पता चलता है कि जब बात डिप्रेशन (अवसाद) से बचाव की आती है, तो डिजिटल संवाद, चाहे वह फोन कॉल हो या ई-मेल, आमने-सामने की मुलाकात का स्थान नहीं ले सकता।

शोध की ताज़ा पुष्टि: आमने-सामने की मुलाकात का महत्व

ओरेगन हेल्थ एंड साइंस यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं के एक अध्ययन ने इस बात पर मुहर लगाई है कि डिप्रेशन से बचने के लिए दोस्तों और परिवार के साथ प्रत्यक्ष (Face-to-Face) मुलाकात करना, फोन या ई-मेल के मुकाबले कहीं अधिक प्रभावी है। इस शोध के मुख्य लेखक, मनोविज्ञान के असिस्टेंट प्रोफेसर एलन टिओ (Alan Teo), ने बताया कि यह पहली बार मिली ऐसी जानकारी है जो लोगों को अवसाद से बचाने के लिए 'संवाद के तौर-तरीके' के महत्व को उजागर करती है।

अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष:

अवसाद का कम जोखिम: अध्ययन में पाया गया कि जो लोग नियमित रूप से अपने परिवार और दोस्तों से आमने-सामने मिलते थे, उनमें उन लोगों की तुलना में अवसाद के लक्षण कम पाए गए, जो केवल फोन या ई-मेल के जरिए संपर्क में रहते थे।

दीर्घकालिक लाभ: लोगों से प्रत्यक्ष मिलने से होने वाले मानसिक स्वास्थ्य लाभ काफी समय बाद तक अपना असर दिखाते हैं, जो डिजिटल संवाद में नहीं मिलता।

प्रभावी नहीं डिजिटल संवाद: टिओ के अनुसार, "परिवार या दोस्तों के साथ फोन कॉल या डिजिटल संवाद का अवसाद से बचाने में उतना असर नहीं है जितना प्रत्यक्ष मिलने-जुलने में है।" सामाजिक रूप से मिलने-जुलने के सभी तरीके एक समान असर नहीं छोड़ते हैं।

जोखिम में दोगुनी वृद्धि: 50 और उससे अधिक उम्र के 11,000 से अधिक वयस्कों पर किए गए इस अध्ययन में यह सामने आया कि जो लोग लोगों से आमने-सामने नहीं मिलते थे, उनके दो साल बाद अवसादग्रस्त होने की संभावना दोगुनी हो गई थी।

सुरक्षा की आवृत्ति: शोध में यह भी पता चला कि हफ्ते में कम से कम तीन बार परिवार और दोस्तों से प्रत्यक्ष मिलने वालों में दो साल बाद अवसाद का शिकार होने की संभावना न्यूनतम स्तर पर थी। जिन लोगों की प्रत्यक्ष मुलाकातें कम थीं, उनमें यह संभावना बढ़ जाती है।

मनोवैज्ञानिक कारण: क्यूं प्रत्यक्ष मुलाकात है बेहतर?

मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि प्रत्यक्ष संवाद, डिजिटल माध्यमों से कहीं अधिक भावनात्मक रूप से समृद्ध होता है। आमने-सामने की बातचीत में हम न केवल शब्दों को सुनते हैं, बल्कि शारीरिक भाषा (Body Language), चेहरे के हाव-भाव और आवाज़ के लहजे को भी महसूस करते हैं। ये गैर-मौखिक संकेत (Non-Verbal Cues) विश्वास, सहानुभूति और गहरे भावनात्मक जुड़ाव को बढ़ावा देते हैं, जो तनाव को कम करने और मूड को बेहतर बनाने में सहायक होते हैं।

डिजिटल माध्यमों में अक्सर ये महत्वपूर्ण भावनात्मक परतें गायब हो जाती हैं, जिससे संचार सतही, गलतफहमी वाला और अलगाव की भावना को जन्म देने वाला बन सकता है, जिसे 'डिजिटल अकेलापन' (Digital Loneliness) भी कहा जाता है।

नवीनतम शोध का समर्थन

हाल के अन्य शोध भी इस बात का समर्थन करते हैं कि सामाजिक अलगाव और अकेलापन डिप्रेशन, चिंता (Anxiety) और अन्य मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के जोखिम को बढ़ाते हैं। महामारी के दौरान किए गए अध्ययनों में भी पाया गया कि वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की सुविधा होने के बावजूद, लोगों के मानसिक स्वास्थ्य के लिए सबसे महत्वपूर्ण कारक प्रत्यक्ष सामाजिक संवाद ही रहा।

डिप्रेशन से बचने का सीधा रास्ता

निष्कर्ष स्पष्ट है: अगर आप अपने मानसिक स्वास्थ्य को सुरक्षित रखना चाहते हैं और डिप्रेशन के खतरे को कम करना चाहते हैं, तो स्क्रीन और इयरफ़ोन को छोड़कर, अपने प्रियजनों के साथ आमने-सामने समय बिताने को प्राथमिकता दें। एक गर्मजोशी भरी मुलाकात, एक कप चाय पर खुलकर की गई बातचीत, या दोस्तों के साथ कुछ पल बिताना—ये सरल, पुराने ज़माने के तरीके, किसी भी कॉल या ई-मेल से कहीं ज़्यादा शक्तिशाली 'अवसाद रोधी' सुरक्षा कवच (Anti-Depression Shield) हैं।

तो अगली बार, कॉल या टेक्स्ट करने से पहले, दरवाज़े पर दस्तक देने के बारे में सोचें!

 

India Edge News Desk

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