संगठन में सुधार के नाम पर कांग्रेस का नवसंकल्प न सिर्फ दिखावटी है, बल्कि एक सियासी ड्रामा है

इंडिया एज न्यूज नेटवर्क

पटना : भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठ नेता एवं बिहार के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय ने कहा कि कांग्रेस अपनी दशा सुधारने के लिए चिंतन करे या मंथन लेकिन कोई परिवर्तन नहीं होने वाला है। मंगल पांडेय ने कहा कि उदयपुर में चले तीन दिवसीय नवसंकल्प चिंतन शिविर में कांग्रेस भले ही अपनी गलतियों को सुधार कर नए लोगों को मौका देने की बात कर रही हो पर कांग्रेस की स्थिति ‘ढाक के तीन पात’ वाली है। कांग्रेस आलाकमान को अगर पार्टी बचाना है तो खुद में बदलाव लाना होगा और परिवारवाद, वंशवाद एवं तुष्टीकरण की नीति को छोड़कर राष्ट्रवाद की नीति अपनानी होगी वरना वह दिन दूर नहीं जब कांग्रेस का झंडा ढोने वाला भी नहीं रहेगा।

भाजपा नेता ने कहा कि कांग्रेस जिस रास्ते पर जा रही है, उससे यही पता चलता है कि पार्टी अभी भी अपनी संकीर्ण मानसिकता से बाहर नहीं आई है। मैडम और युवराज अपनी घरेलू पार्टी को बचाने के लिए कितने भी जतन कर लें, कुछ नहीं होने वाला है क्योंकि देश की जनता कांग्रेस की नीति, नीयत एवं चेहरे को अच्छी तरह जान और पहचान चुकी है। इसका उदाहरण हाल में पांच राज्यों के विधान सभा चुनावों में कांग्रेस का गिरता जनाधार है।

मंगल पांडेय ने कहा कि सबसे आश्चर्य की बात यह है कि कांग्रेस पार्टी में अध्यक्ष पद पर कभी मां, तो कभी बेटा पारा-पारी बैठकर एक हास्यास्पद कार्य कर रहे हैं। दोनों संगठन में पैमाना तैयार करने के लिए जो नया फार्मूला बना रहे हैं, वो सिर्फ और सिर्फ चिंतन शिविर तक ही सीमित रहने वाला है। संगठन में सुधार के नाम पर कांग्रेस का यह नवसंकल्प न सिर्फ दिखावटी है बल्कि एक सियासी ड्रामा है, जिसे देश की भोली-भाली जनता बखूवी जानती है।

भाजपा नेता ने कहा कि चिंतन शिविर में एक परिवार, एक टिकट का ऐलान कर कांग्रेस परिवारवाद के आरोप से छुटकारा पाने की कोशिश कर रही है लेकिन नेतृत्व को लेकर वंशवाद से कोई समझौता करने के मूड में नहीं है। यह बात दीगर है कि कांग्रेस आलाकमान संगठन को जीवित रहने एवं आगे बढ़ाने के लिए परिवर्तन और बदलाव की बात स्वीकारतीं हों, लेकिन कांग्रेस अपने पुराने ढर्रे से बाज नहीं आने वाली है। जिस पार्टी में नेताओं और कार्यकर्ताओं को खुल कर बोलने और कुछ करने की आजादी नहीं है, उस पार्टी में युवाओं एवं अन्य के लिए 50 फीसदी और महिलाओं के लिए एक तिहाई जगह देने की बात बेमानी है।
(जी.एन.एस)

India Edge News Desk

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