बोर्ड ने स्कूली शिक्षा में बड़ा बदलाव करते हुए मातृभाषा को प्राथमिक शिक्षा का माध्यम बनाने का दिया निर्देश

नई दिल्ली

केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE) ने 22 मई को गाइडलाइंस जारी की है। बोर्ड ने स्कूली शिक्षा में बड़ा बदलाव करते हुए मातृभाषा को प्राथमिक शिक्षा का माध्यम बनाने का निर्देश जारी किया है। नई गाइडलाइन के अनुसार, अब 3 से 11 साल तक यानी प्री-प्राइमरी से लेकर कक्षा 5वीं तक के बच्चों की पढ़ाई उनकी मातृभाषा, घरेलू भाषा या क्षेत्रीय भाषा में कराई जाएगी।

सीबीएसई के इस फैसले की नींव राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 (NEP 2020) और राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा स्कूल शिक्षा 2023 (NCFSE 2023) पर आधारित है, जो शुरुआती शिक्षा में मातृभाषा के उपयोग को सबसे ज्यादा प्रभावशाली मानते हैं।

CBSE ने स्कूलों को दिए निर्देश
सीबीएसई के 22 मई को जारी सर्कुलर में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि सभी संबद्ध स्कूलों को छात्रों की मातृभाषा को जल्द से जल्द मैप करना होगा और इसके अनुसार शिक्षण व्यवस्था तैयार करनी होगी। जुलाई 2025 से यह नई नीति लागू हो सकती है।

    प्री-प्राइमरी से कक्षा 2 तक की शिक्षा को “फाउंडेशनल स्टेज” कहा गया है। इसमें पढ़ाई मातृभाषा या घरेलू भाषा में अनिवार्य की गई है।
    कक्षा 3 से 5वीं तक के छात्रों के लिए भी मातृभाषा में पढ़ाई की सलाह दी गई है, हालांकि यहां माध्यम बदलने का विकल्प खुला रखा गया है।

मातृभाषा में पढाई क्यों है जरूरी?
सर्कुलर में कहा गया है कि छोटे बच्चे अपने घर की भाषा में ही सबसे तेजी से और गहराई से कॉन्सेप्ट को समझ पाते हैं। इसलिए शुरुआती शिक्षा में मातृभाषा का उपयोग बच्चे की सीखने की क्षमता, आत्मविश्वास और समझ को कई गुना बढ़ा सकता है।

बता दें कि, UNESCO की मार्च 2024 में ‘लैंग्वेज मैटर-ग्लोबल गाइडेंस ऑन मल्टीलिंग्वल एजुकेशन’ रिपोर्ट में बताया गया कि दुनियाभर में 40% बच्चों और युवाओं के पास उनकी मदर-टंग में पढ़ने की सुविधा नहीं है। यही वजह है कि दुनिया के कई हिस्सों में बच्चे स्कूल तो जा रहे हैं लेकिन वो सिंपल टेक्स्ट नहीं पढ़ पाते और सिंपल मैथ्स सॉल्व नहीं कर पाते।

इस रिपोर्ट में बताया गया कि, साल 2016 में 617 मिलियन बच्चे फाउंडेशनल लिट्रेसी और न्यूमरेसी नहीं सीख रहे थे। इनमें से दो तिहाई स्कूल जाते थे। कोविड महामारी से पहले लो और मिडल इनकम देशों के 57% 10-वर्षीय-बच्चे सिंपल टेक्स्ट नहीं पढ़ पा रहे थे। ये आंकड़ा कोविड महामारी के बाद 70% हो गया।

राजस्थान के डुंगरपुर जिले में कारगर रहा एक्सपेरिमेंट
राजस्थान के डुंगरपुर जिले में गुजरात में बोली जाने वाली वागड़ी भाषा काफी बोली जाती हैं। साल 2019 में यहां टीचर्स ने बच्चों को वागड़ी भाषा में ही पढ़ाना शुरू किया। इसके कुछ दिन बाद जब बच्चों का असेसमेंट लिया गया तो सामने आया कि उनकी रीडिंग स्किल्स पहले से काफी बेहतर थी। यूरोप और अफ्रीका में भी ऐसे ही नतीजे सामने आए हैं। इसके अलावा मातृभाषा में अगर बच्चे को बेसिक एजुकेशन दी जाए तो उसके लिए दूसरी भाषाएं सीखनी भी आसान हो जाती हैं।

जल्द बनेगी NCF कार्यान्वयन समिति
CBSE ने सभी स्कूलों को मई 2025 के अंत तक ‘एनसीएफ कार्यान्वयन समिति’ (NCF Implementation Committee0 गठित करने को कहा है। ये समिति छात्रों की मातृभाषा की पहचान करेगी और भाषा संसाधनों की मैपिंग करेगी। साथ ही, स्कूलों को लैंग्वेज मैपिंग एक्सरसाइज भी जल्द से जल्द पूरी करने के लिए कहा गया है।

India Edge News Desk

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