गांव-ढाणियों से लेकर दूरदराज के सरहदी क्षेत्रों तक है पोषण स्वराज अभियान की गूंज

कल्पना डिण्डोर
बांसवाड़ा जिले के जिला कलक्टर श्री प्रकाशचन्द्र शर्मा द्वारा कुपोषण से मुक्ति के लिए नवाचार के रूप में चलाए जा रहे पोषण स्वराज अभियान की गूंज गांव-ढाणियों और कस्बों से लेकर दूरदराज के सरहदी क्षेत्रों, पालों और फलों तक है।
अभियान के अन्तर्गत चलते आंगनवाड़ी केन्द्रों पर पोषण शिविरों तथा जागरुकता कार्यक्रमों के माध्यम से गर्भवती महिलाओं एवं शिशुओं के पोषण स्तर में सुधार लाने के लगातार प्रयास किए जा रहे हैं।
जिले भर में आंगनवाड़ी केन्द्रों पर अब यह अभियान व्यापक रूप ले रहा है। इससे जिले में पोषण स्तर में सुधार आने लगा है। जिले के आंगनवाड़ी केन्द्रों पर पोषण स्तर सुधार की गतिविधियों का संचालन निरन्तर जारी है, इससे गर्भवती माताओं तथा शिशुओं की सेहत पर सकारात्मक प्रभाव दृष्टिगोचर होने लगा है।
अभियान के द्वितीय चरण में ज़िला कलेक्टर श्री प्रकाश चन्द्र शर्मा ने इस पहल को आगे बढ़ाते हुए जिला प्रशासन एवं वागधारा संस्था के तकनीकी मार्गदर्शन में ज़िले की समस्त 417 ग्राम पंचायतों में 2119 आंगनवाड़ी केन्द्रों पर पोषण स्वराज अभियान की शुरुआत गत 15 जून, 2022 से की थी, जिसमें 15 जून से 20 जून तक कुल 1 लाख 77 हजार 772 बच्चों की स्क्रीनिंग की गयी, जिनमे से 11 हजार 565 बच्चे कुपोषित एवं 628 बच्चे अति कुपोषित चिह्नित हुए। चिह्नित कुपोषित व अति कुपोषित बच्चों और उनकी माताओं के साथ 21 जून से 15 दिवसीय पोषण शिविर का आयोजन स्थानीय आंगनवाड़ी केन्द्रों पर किया जा रहा है।
जिला कलेक्टर ने बताया कि जो प्रयास पोषण स्वराज अभियान के जरिये किए जा रहे हैं, वह निश्चित तौर पर कारगर होते देखे जा रहे हैं। उन्होंने बताया कि जिन बालक-बालिकाओं का जुड़ाव इस अभियान से पूरे 15 दिनों तक नियमित रहेगा, उनका वजन भी बढ़ेगा एवं शारीरिक रूप से सकारात्मक बदलाव भी देखने को मिलेंगे। इस अभियान के बाद भी इन परिवारों के साथ स्वास्थ्य विभाग एवं आई.सी.डी.एस. विभाग के कार्मिकों द्वारा सतत निगरानी जारी रहेगी, ताकि बालक-बालिकाओं में जो सकारात्मक बदलाव देखे गये हैं, उनको स्थायी बनाए रखा जा सके।
वाग्धारा संस्था के सहयोग से जो प्रयास किये गये, वह बहुत ही कारगर साबित हुए हैं। अब आंगनवाड़ी केंद्रों में अतिकुपोषित एवं कुपोषित बालक-बालिकाओं की संख्या में भी कमी आ रही है। वहीं माताओं में जागरूकता आ रही है। स्थानीय खाद्यान्न को ज्यादा से ज्यादा बढ़ावा देने के लिए इनसे बनाया गया आहार नियमित रूप से बच्चों को दिया जा रहा है और उनकी माताओं को प्रेरित किया जा रहा है कि इसे वह घर पर भी अपनाएं। केन्द्र पर बनाए जा रहे पोषाहार को बच्चों के अभिभावक बड़े उत्साह के साथ देखकर सीख रहे हैं और उससे होने वाले फायदों को भी समझ रहे हैं।