बहुत कुछ सहा है मीलॉर्ड…’ महिला वकीलों की गुहार, चेंबर की सुविधा की उठाई मांग

नई दिल्ली
15 से 25 साल हो गए और देखिए, इसके बाद भी देश भर के न्यायालयों-बार काउंसिल्स में महिला वकीलों के लिए आज बैठने तक के लिए जगह नहीं है. बरसों से हम हर तरह से सह रहे हैं. 90 के दशक तक तो कभी ये हालात थे कि ज्यूडिशरी में महिलाओं का आना ही बहुत अच्छा नहीं माना जाता था. आज जब महिलाओं की संख्या यहां बढ़ी है तो उन्हें सुविधाएं नहीं मिल रहीं. कई पीपल के पेड़ के नीचे बैठ रही हैं तो कई बस एक सही जगह के इंतजार में रहती हैं…सुप्रीम कोर्ट महिला अधिवक्ता एसोसिएशन की जनरल सेक्रेटरी एडवोकेट प्रेरणा सिंह कहती हैं कि अब हम सुप्रीम कोर्ट से अपने लिए बराबरी से ज्यादा व्यवहारिक जरूरत पूरी करने की मांग कर रहे हैं.
महिला अधिवक्ताओं की याचिका में क्या है?
गौरतलब है कि देश की वरिष्ठ महिला अधिवक्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है. याचिकाकर्ताओं में 15 से 25 साल अनुभव वाली इन वकीलों ने अदालत से देश भर की अदालतों और बार एसोसिएशनों में महिला वकीलों को प्रोफेशनल चैंबर या केबिन देने के लिए एक समान और लैंगिक रूप से संवेदनशील नीति बनाने की मांग की है. सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका पर नोटिस जारी कर प्रतिवादियों से जवाब मांगा है.
याचिका में महिला अधिवक्ताओं ने कहा है कि बरसों से सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन की चैम्बर वेटिंग लिस्ट में होने के बावजूद उन्हें प्रोफेशनल कामों के लिए उचित जगह नहीं मिली. याचिका में ये भी कहा गया है कि भविष्य में होने वाले चैंबर या केबिन आवंटन में महिला वकीलों को प्राथमिकता दी जाए या उनके लिए सीटें आरक्षित हों. इसके अलावा याचिका में उन महिला वकीलों के लिए भी चैंबर बनाने और प्राथमिकता देने की बात की गई है जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट में 25 साल से ज्यादा प्रैक्टिस की है और जो अभी सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन की प्रतीक्षा सूची में हैं
पेड़ के नीचे बैठकर प्रैक्टिस…
एडवोकेट प्रेरणा महिला वकीलों की प्रैक्टिकल समस्या का जिक्र करती हैं. वो कहती हैं कि इतने सालों की प्रैक्टिस होने के बाद भी हमें बैठने के लिए कोई जगह नहीं मिलती. कंसल्टेशन रूम हमेशा बुक रहता है. लोग दिन भर वहीं बैठे रहते हैं. तमाम अदालतों में महिला वकीलों को अक्सर पेड़ के नीचे बैठकर क्लाइंट से मिलने या काम करने के लिए मजबूर होना पड़ता है. कल्पना कीजिए आप पेड़ के नीचे बैठकर काम कर रही हैं, चाय वाला आता है और कहता है ‘चाय ले लो मैडम’. आप जवाब देती हैं, ‘नहीं, आगे जाएं’. चायवाला आगे कहेगा कि कोई नहीं क्लाइंट को पिला दो. बताओ आपकी उस समय क्या इज्जत रह जाती है.
कहने का अर्थ ये है कि ऐसी बहुत सारे हालात हम लोगों ने देखा और महसूस किया है. तभी हमें लगा कि ये जरूरी है कि हमें एक सम्मानजनक स्थान दिया जाए. हमारी मांग रिजर्वेशन के लिए नहीं बल्कि हमें बेसिक सुविधाएं चाहिए. हमारा मकसद केवल ये है कि महिलाओं को काम करने के लिए सुविधाजनक चेम्बर मिले. उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने आज नोटिस जारी किया और उन्होंने सकारात्मक संकेत दिया कि महिलाओं, दिव्यांगों और अन्य जरूरतमंदों को कार्य और सुविधा के लिए जगह दी जानी चाहिए. हमें उम्मीद है कि जल्द ही कुछ सकारात्मक आदेश और निर्देश मिलेंगे.
कार्यक्षमता पर पड़ रहा असर
याचिकाकर्ता और सुप्रीम कोर्ट महिला वकील संघ की उपाध्यक्ष एडवोकेट भक्ति पासरिजा का कहना है कि महिला वकीलों को चेंबर की कमी का सामना करना पड़ रहा है, जिससे उनकी कार्यक्षमता प्रभावित हो रही है. महिला वकील लंबे समय से चेंबर के लिए आवेदन कर रही हैं, लेकिन उन्हें कोई पॉजिटि रेस्पांस नहीं मिल रहा है. वो कहती हैं कि हम कभी भी रिजर्वेशन की बात नहीं करते. यहां मुद्दा समान अवसर और कार्यक्षमता का है. हमें उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट इस याचिका पर सकारात्मक कदम उठाएगा. मेरा मानना है कि महिला वकीलों के लिए कार्यस्थल होंगे तो पेशेवर संरचना में सुधार होगा.
मांगें पूरी हुई तो क्या बदलेगा
सुप्रीम कोर्ट की सीनियर एडवोकेट सोनिया माथुर कहती हैं कि आज लड़कियां ज्यूडिशरी में करियर बनाने का सपना देखने लगी हैं. कोर्ट परिसरों में महिला अधिवक्ताओं की संख्या बढ़ी है. ऐसे में न्यायालय परिसर भी जेंडर सेंसेटिव होने चाहिए. महिलाएं न्याय के क्षेत्र में आती हैं तो उन्हें यहां का माहौल भी उनके अनुरूप मिलना चाहिए. ठीक यही बात दिव्यांगों के लिए भी लागू होती है. उन्हें भी अदालतों में चेंबर के अलावा हर सहूलियत मिलनी चाहिए. न्यायालय में समय समय पर महिलाओं के लिए आवाज उठाई जाती है. देश भर के न्यायालयों में न सिर्फ चेंबर बल्कि महिलाओं के लिए क्रेच की सुविधा, साफ टॉयलेट और भेदभाव रहित माहौल मिलना चाहिए. इससे उनकी प्रोफेशनल कार्यक्षमता बढ़ेगी. साथ ही ज्यूडिशरी में महिलाओं की संख्या और ज्यादा बढ़ेगी.