Trending

Jain Muni Acharya Vidyasagar: युग प्रणेता आचार्यश्री विद्यासागरजी की हुई देवलोक गमन

समाधि छत्तीसगढ़ के चन्द्रगिरि डोंगरगढ़ तीर्थ में हुई देश भर से डोंगरगढ़ चन्द्रगिरि पहुच रहे श्रावक, दोपहर एक बजे निकलेगा डोला

डोंगरगढ़,Jain Muni Acharya Vidyasagar:  आचार्य विद्यासागर जी को 22 नवम्बर 1972 में ज्ञानसागर जी द्वारा आचार्य पद दिया गया था, केवल विद्यासागर जी के बड़े भाई ग्रहस्थ है। उनके अलावा सभी घर के लोग संन्यास ले चुके है।उनके भाई अनंतनाथ और शांतिनाथ ने आचार्य विद्यासागर जी से दीक्षा ग्रहण की और मुनि योगसागर जी और मुनि समयसागर जी कहलाये।

आचार्य विद्यासागर जी संस्कृत, प्राकृत सहित विभिन्न आधुनिक भाषाओं

हिन्दी, मराठी और कन्नड़ में विशेषज्ञ स्तर का ज्ञान रखते हैं। उन्होंने हिन्दी और संस्कृत के विशाल मात्रा में रचनाएँ की हैं। सौ से अधिक शोधार्थियों ने उनके कार्य का मास्टर्स और डॉक्ट्रेट के लिए अध्ययन किया है।उनके कार्य में निरंजना शतक, भावना शतक, परीषह जाया शतक, सुनीति शतक और शरमाना शतक शामिल हैं। उन्होंने काव्य मूक माटी की भी रचना की है।विभिन्न संस्थानों में यह स्नातकोत्तर के हिन्दी पाठ्यक्रम में पढ़ाया जाता है।आचार्य विद्यासागर जी कई धार्मिक कार्यों में प्रेरणास्रोत रहे हैं।

आचार्य विद्यासागर जी का जन्म

आपका जन्म 10 अक्टूबर 1946 को विद्याधर के रूप में कर्नाटक के बेलगाँव जिले के सदलगा में शरद पूर्णिमा के दिन हुआ था।उनके पिता श्री मल्लप्पा थे जो बाद में मुनि मल्लिसागर बने। उनकी माता श्रीमंती थी जो बाद में आर्यिका समयमति बनी।
विद्यासागर जी को 30 जून 1968 में अजमेर में 22 वर्ष की आयु में आचार्य ज्ञानसागर ने दीक्षा दी जो आचार्य शांतिसागर शिष्य थे।

जानिए आचार्य श्री की जीवनचर्या

कोई बैंक खाता नही कोई ट्रस्ट नही, कोई जेब नही , कोई मोह माया नही, अरबो रुपये जिनके ऊपर निछावर होते है उन गुरुदेव के कभी धन को स्पर्श नही किया।

आजीवन चीनी का त्याग
आजीवन नमक का त्याग
आजीवन चटाई का त्याग
आजीवन हरी सब्जी का त्याग, फल का त्याग, अंग्रेजी औषधि का त्याग,सीमित ग्रास भोजन, सीमित अंजुली जल, 24 घण्टे में एक बार 365 दिन
आजीवन दही का त्याग
सूखे मेवा (Dry fruits)का त्याग
आजीवन तेल का त्याग
सभी प्रकार के भौतिक *साधनो का त्याग
थूकने का त्याग

पूरे भारत में सबसे ज्यादा दीक्षा देने वाले एक ऐसे संत जो सभी धर्मो में पूजनीय

पूरे भारत में एक ऐसे आचार्य जिनका लगभग पूरा परिवार ही संयम के साथ मोक्षमार्ग पर चल रहा है
शहर से दूर खुले मैदानों में नदी के किनारो पर या पहाड़ो पर अपनी साधना *करनाअनियत विहारी यानि बिना बताये विहार करनाप्रचार प्रसार से दूर- मुनि दीक्षाएं, पीछी परिवर्तन इसका उदाहरणआचार्य देशभूषण जी महराज जब ब्रह्मचारी व्रत से लिए स्वीकृति नहीं मिली तोगुरुवर ने व्रत के लिए 3 दिवस निर्जला उपवास किआ और स्वीकृति लेकर मानेब्रह्मचारी अवस्था में भी परिवार जनो से चर्चा करने अपने गुरु से स्वीकृति लेते थेऔर परिजनों को पहले अपने गुरु के पास स्वीकृति लेने भेजते थे ।

India Edge News Desk

Follow the latest breaking news and developments from Chhattisgarh , Madhya Pradesh , India and around the world with India Edge News newsdesk. From politics and policies to the economy and the environment, from local issues to national events and global affairs, we've got you covered.

Related Articles

Back to top button