20 जनजातीय स्वतंत्रता सेनानियों की कथाओं पर आधारित तीसरी कॉमिक बुक जारी

इंडिया एज न्यूज नेटवर्क

नई दिल्ली : संस्कृति मंत्रालय ने गत 2 अगस्त को नई दिल्ली में तिरंगा उत्सव समारोह के दौरान 20 जनजातीय स्वतंत्रता सेनानियों की कथाओं पर आधारित तीसरी कॉमिक बुक जारी की।

इस अवसर पर गृह एवं केंद्रीय सहकारिता मंत्री श्री अमित शाह,केंद्रीय संस्कृति मंत्री श्री जी. किशन रेड्डी, संसदीय कार्य एवं संस्कृति राज्य मंत्री श्री अर्जुन राम मेघवाल और विदेश राज्य मंत्री श्रीमती मीनाक्षी लेखी उपस्थित थे।

इस कथा संग्रह में उन बहादुर पुरुष एवं महिला स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान की कथाएं हैं, जिन्होंने ब्रिटिश राज के खिलाफ संघर्ष के लिए अपने जनजातीय साथियों को प्रेरणा दी और अपने जीवन का बलिदान किया।

संस्कृति मंत्रालय ने आजादी का अमृत महोत्सव के अंतर्गत अमर चित्र कथा के सहयोग से 75 स्वतंत्रता सेनानियों की कथाओं पर सचित्र कॉमिक बुक्स जारी की हैं, ताकि युवाओं और बच्चों में स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान राष्ट्र भक्ति का परिचय और सर्वोच्च बलिदान देने वाले कम ज्ञात सेनानियों के बारे में जागरूकता पैदा की जा सके। अमर चित्र कथा की पहली कॉमिक बुक भारत की 20 महिला अज्ञात सेनानियों पर और दूसरी कॉमिक बुक उन 15 महिलाओं की कथाओं पर आधारित हैं जो संविधान सभा के लिए निर्वाचित हुई थीं।

भारत के स्वाधीनता संग्राम के वे जनजातीय स्वतंत्रता सेनानी, जिन्हें ज्यादा लोग नहीं जानते और जिनकी कहानियां इस तीसरी कॉमिक बुक में शामिल की गई हैं वे हैं-

तिलका मांझी, जिन्होंने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की ज्यादतियों के खिलाफ संघर्ष किया। वे पहाड़िय़ा जनजाति के सदस्य थे और उन्होंने अपने समुदाय को साथ लेकर कंपनी के कोषागार पर छापा मारा था। इसके लिए इन्हें फांसी की सजा दी गई।

थलक्कल चंथू, कुरिचियार जनजाति के सदस्य थे और इन्होंने ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ पाजासी राजा के युद्ध में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। इन्हें फांसी दे दी गई।

बुद्धु भगत, उरांग जनजाति के सदस्य थे। ब्रिटिश अधिकारियों के साथ हुई कई मुठभेड़ों में से एक में इन्हें, इनके भाई, सात बेटों और इनकी जनजाति के 150 लोगों के साथ गोली मार दी गई।

खासी समुदाय के प्रमुख तीरत सिंह को अंग्रेजों की दोहरी नीति का पता लग गया था, इसलिए उन्होंने उनके खिलाफ संघर्ष छेड़ दिया। इन्हें पकड़ लिया गया, यातना दी गई और जेल में डाल दिया गया। जेल में ही इनकी मौत हो गई।

राघोजी भांगरे, महादेव कोली जनजाति के थे। इन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह कर दिया और उनकी मां को कैद किए जाने के बावजूद उनका संघर्ष जारी रहा। इन्हें पकड़ लिया गया और फांसी दे दी गई।

सिद्धू और कान्हू मुर्मू, संथाल जनजाति के सदस्य थे, जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह किया। इन्होंने हुल विद्रोह में संथाल लोगों का नेतृत्व किया। दोनों को धोखा देकर पकड़ लिया गया और फांसी दे दी गई।

रेन्डो मांझी और चक्रा विसोई, खोंद जनजाति के थे। जिन्होंने अपनी जनजाति के रिवाजों में हस्तक्षेप करने पर ब्रिटिश अधिकारियों का विरोध किया। रेन्डो को पकड़ कर फांसी पर लटका दिया गया जबकि चक्रा विसोई भाग गया और कहीं छिपे रहने के दौरान उसकी मौत हो गई।

मेरठ में शुरू हुए भारतीय विद्रोह में खारवाड़ जनजाति के भोगता समुदाय के नीलांबर और पीतांबर ने खुलकर भाग लिया और ब्रिटिश उत्पीड़न के खिलाफ आवाज उठाने में अपने लोगों का नेतृत्व किया। दोनों को पकड़ लिया गया और फांसी दे दी गई।

गोंड जनजाति के रामजी गोंड ने उस सामंती व्यवस्था का विरोध किया, जिसमें धनी जमींदार अंग्रेजों के साथ मिलकर गरीबों को सताते थे। इन्हें भी पकड़ कर फांसी पर चढ़ा दिया गया।

खरिया जनजाति के तेलंगा खरिया ने अंग्रेजों की कर व्यवस्था और शासन को स्वीकार करने से इनकार कर दिया और इस बात पर अड़े रहे कि उनकी जनजाति का स्वशासन का पारंपरिक तरीका जारी रखा जाए। उन्होंने अंग्रेजों के कोषागार पर संगठित हमले किए। उन्हें धोखे से पकड़ कर गोली मार दी गई।

मध्य प्रांत के रोबिन हुड के नाम से मशहूर तांतिया भील ने अंग्रेजों की धन-संपत्ति ले जा रही ट्रेनों में डकैती डाली और उस संपत्ति को अपने समुदाय के लोगों के बीच बांट दिया। उन्हें भी जाल बिछाकर पकड़ा और फांसी पर चढ़ा दिया गया।

मणिपुर के मेजर पाउना ब्रजवासी, अपनी मणिपुर की राजशाही को बचाने के लिए लड़े। वे अंग्रजों और मणिपुर के राजा के बीच हुए युद्ध के हीरो थे। वे एक सिंह की तरह लड़े लेकिन उन्हें पकड़ कर उनका सर धड़ से अलग कर दिया गया।

मुंडा जनजाति के बिरसा मुंडा अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष के महानायक थे। उन्होंने अंग्रेजों के साथ कई संघर्षों में मुंडा लोगों का नेतृत्व किया। उन्हें पकड़ कर जेल में डाल दिया गया और ब्रिटिश रिकॉर्ड के अनुसार जेल में ही हैजा से उनकी मौत हो गई। जिस समय उनकी मौत हुई वह सिर्फ 25 साल के थे।

अरुणाचल प्रदेश की आदि जनजाति के मटमूर जमोह ब्रिटिश शासकों की अकड़ के खिलाफ लड़े। उनके गांव जला दिए गए जिसके बाद उन्होंने अपने साथियों के साथ अंग्रेजों के सामने हथियार डाल दिए। उन्हें सेलुलर जेल भेज दिया गया, जहां उनकी मौत हो गई।

उरांव जनजाति के ताना भगत अपने लोगों को अंग्रेज सामंतों के अत्याचार के बारे में बताते थे और ऐसा माना जाता है कि उन्हें लोगों को उपदेश देने का संदेश उनके आराध्य से मिला था। उन्हें पकड़ कर भीषण यातनाएं दी गईं। यातनाओं से जर्जर ताना भगत को जेल से रिहा तो कर दिया गया, लेकिन बाद में उनकी मौत हो गई।

चाय बागान में काम करने वाले समुदाय की मालती मीम महात्मा गांधी के सत्याग्रह आंदोलन से प्रभावित होकर उसमें शामिल हो गईं। उन्होंने अफीम की खेती पर अंग्रेजों के आधिपत्य के खिलाफ संघर्ष किया और लोगों को अफीम के नशे के खतरों के बारे में जागरूक किया। पुलिस के साथ मुठभेड़ में गोली लगने से उनकी मौत हो गई।

भूयां जनजाति के लक्ष्मण नायक भी गांधी जी से प्रेरित थे और उन्होंने स्वाधीनता आंदोलन में शामिल होने के लिए अपनी जनजाति के लोगों को काफी प्रेरित किया। अंग्रेजों ने उन्हें अपने ही एक मित्र की हत्या के आरोप में पकड़ कर फांसी की सजा दे दी।

लेप्चा जनजाति की हेलन लेप्चा, महात्मा गांधी की जबरदस्त अनुयायी थीं। अपने लोगों पर उनके प्रभाव से अंग्रेज बहुत असहज रहते थे। उन्हें गोली मार कर घायल किया गया, कैद किया गया और प्रताड़ित किया गया लेकिन उन्होंने कभी साहस नहीं छोड़ा। 1941 में उन्होंने नेताजी सुभाष चंद्र बोस की उस समय जर्मनी भागने में मदद की जब वह घर में नजरबंद थे। उन्हें स्वाधीनता संघर्ष में अतुलनीय योगदान के लिए ‘ताम्र पत्र’ से पुरस्कृत किया गया।

पुलिमाया देवी पोदार ने गांधीजी का भाषण तब सुना जब वह स्कूल में थीं। वे तुरंत स्वाधीनता संघर्ष में शामिल होना चाहती थीं। अपने परिवार के कड़े विरोध के बावजूद उन्होंने अपनी पढ़ाई समाप्त करने के बाद न सिर्फ खुद आंदोलन में हिस्सा लिया बल्कि अन्य महिलाओं को भी इसके लिए प्रोत्साहित किया। विरोध प्रदर्शनों में भाग लेने के कारण उन्हें कैद कर लिया गया। आजादी के बाद भी उन्होंने अपने लोगों की सेवा करना जारी रखा और उन्हें ‘स्वतंत्रता सेनानी’ की उपाधि दी गई।

India Edge News Desk

Follow the latest breaking news and developments from Chhattisgarh , Madhya Pradesh , India and around the world with India Edge News newsdesk. From politics and policies to the economy and the environment, from local issues to national events and global affairs, we've got you covered.
Back to top button