अब नक्सली नहीं, बस्तर की पहचान बन जाएगी काफी की महक

राजीव खरे
रायपुर : एक समय नक्सली आतंक का पर्याय बन चुके बस्तर में अब काफी की फसल लहलहाने लगी है और वो दिन अब दूर नहीं जब काफी की महक वस्तर की पहचान बन जाएगी। वर्तमान में बस्तर में 5000 एकड़ से भी अधिक रकबे में पांच बेहतरीन किस्मों की काफी काफी उगाई जा रही है। काफी बोर्ड ऑफ इंडिया ने भी बस्तर की काफी को प्रमाणित किया है और अब अंतर्रष्ट्रीय स्तर पर प्रमाणीकरण प्राप्त करने की प्रक्रिया चल रही है । बस्तर में काफी प्लांटेशन की शुरुआत कराने का श्रेय कॉलेज ऑफ हार्टिकल्चर एंड रिसर्च स्टेशन के प्रोफेसर के पी सिंह को जाता है जिन्होंने लगातार किसानों को काफी के लिये प्रोत्साहित कर आगे बढाया है। किसान अब काफी के अलावा आम, जामुन, महुआ, इमली, सिल्वर ओक, कटहल और काली मिर्च के पौधे भी साथ लगा रहे हैं ताकि इससे कॉफी को पर्याप्त छांव मिल सके और पैदावर के अलावा अतिरिक्त आमदनी भी हो सके। काफी में पांचवे साल से बीज आने लगते हैं और इसकी आयु 35 साल होती है। कॉफी एवं टी बोर्ड के सदस्य भी अब लगातार बस्तर का भ्रमण कर रहे हैं और राज्य सरकार भी काफी प्लांटेशन को लगातार प्रोत्साहित कर रही है। काफी के बढते उत्पादन को ध्यान में रख सरकार इसके कमर्शियल प्रोडक्शन के लिये यहां काफी प्लांट लगाने की भी तैयारी कर रही है, जहां पर कॉफी पावडर बनाकर बस्तर काफी के नाम से बेचने की योजना है।, रायपुर और दिल्ली में बस्तर कैफे खोलने की कार्यवाही आरम्भ हो चुकी है।