अंकुरित अन्नों में निहित पोषण शक्ति

आहार से जीवन सरल बनता है। अन्न एवं वनस्पतियां हमारे काय-कलेवर का प्राण हैं। भोजन में प्राणशक्ति न हो, हमारी मूल ईधन ही अपमिश्रित हो तो कलेवर में गति कहां से उत्पन्न हो? आवश्यकता इस बात की है कि अन्न प्राणवान बने, संस्कार दे, शरीर शोधन एवं नव-निर्माण की दोहरी भूमिका सम्पन्न करे। अंकुरित अन्नों का आहार इस प्रयोजन की पूर्ति सरलतापूर्वक करता है।

अपने प्राकृतिक रूप में किया गया आहार पोषण की दृष्टि से तो उत्तम होता ही है, साथ ही औषधि का भी काम करता है। इस दृष्टि से आहार विज्ञानियों ने अंकुरित अन्नों को बहुत उपयोगी पाया है। वे जब अंकुरित स्थिति में फूटते हैं,तब अभिनव एवं अतिरिक्त गुण सम्पन्न होते हैं। स्वास्थ्य संरक्षण के लिए विटामिन, खनिज लवण, चिकनाई, प्रोटीन एवं कार्बोहाइड्रेट जैसे पोषक तत्वों की संतुलित मात्रा का होना अनिवार्य माना गया है जो अंकुरित खाद्यान्नों में भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। इनका सेवन करने से वानस्पतिक औषधियों के सेवन की तरह रक्त एवं धातुओं का शोधन होकर कायाकल्प का प्रतिफल सामने आता है। अंकुरित अन्न अतिरिक्त रसायनों से भरपूर होने के कारण जीवन-शक्ति के अभिवर्ध्दन एवं दीर्घायुष्य का लाभ साथ-साथ प्रस्तुत करते हैं। चूंकि अंकुरित अन्न-धान्य बिना आंच के प्राकृतिक रूप से तैयार होते हैं। अतः उनमें स्थित प्रोटीन, वशा, विटामिन, कार्बोहाइड्रेट को हमारी आंतें सरलतापूवर्क अवशोषित कर लेती हैं और रक्त तथा शक्ति में उसका शीघ्र परिवर्तन हो जाता है।

प्रायः सभी प्रकार के अन्नों को अंकुरित करके आहार के रूप में प्रयुक्त किया जा सकता है। गेहूं, चना, मूंग एवं मूंगफली जैसे अन्न खाने में स्वादिष्ट लगने के साथ ही पोषण एवं पाचन में उपयुक्त पाये गये हैं। जिनकी आंतें कमजोर हों, उनके लिए अंकुरण के पश्चात् थोड़ा उबला हुआ या उन्हें पीसकर देने से हितकारी सिध्द होता है पर जिनका पाचनतंत्र सबल हो, व्यायाम के अभ्यासी हों, उनके लिए चना और मूंगफली के अंकुरित दाने बहुत उपयोगी रहते हैं। साफ-स्वच्छ दानों को आवश्यकतानुसार पानी में भिगोकर लगभग 12 घंटे पश्चात् सूती कपड़े में बांधकर रख देने भर से अंकुरित भोजन तैयार हो जाता है।
प्रयोगों में गेहूं के अंकुरों को सर्वाधिक उपयोगी पाया गया है। विख्यात आहार विज्ञानी डा. टामस ने इसे मनुष्य के लिए पूर्ण आहार बताया है। उनके अनुसार सभी आयु-वर्ग के लोगों के लिए यह एक उत्तम टॉनिक का कार्य करता है। बढ़े हुए अंकुरों को चबाकर या पीसकर छान लेने से पर्याप्त मात्रा में उपयुक्त विटामिन जैसे-राइबोफुलैफिन, थाइमिन, निकोटिनिक एसिड एवं आयरन, कैल्शियम आदि पोषण तत्व पर्याप्त मात्रा में मिल जाते हैं। हरी पत्तीदार सब्जियों एवं दूध से भी अधिक स्वास्थ्यवर्ध्दक एवं रक्तशोधक इसे पाया गया है। ताजे अंकुरों में क्लोरोफिल की मात्रा अधिक होती है। फलो ंएवं सब्जियों की तुलना में इनसे 12 गुना अधिक पोषक-तत्व शरीर को प्राप्त होते हैं। द अमेरिकन जनरल आफ सर्जरी नामक प्रसिध्द पत्रिका में प्रकाशित शोधपूर्ण विवरण केअनुसार अंकुरित गेहूं कार्यक्षमता बढ़ाकर शरीर में रक्त-संचार की प्रािया को संतुलित करता है। रक्ताल्पता, अल्सर और पायरिया जैसे रोगों की अचूक दवा तो यह है ही, गर्भाशय, पाचन प्रणाली और त्वचा रोग भी इससे ठीक हो जाते हैं।

पाश्चात्य चिकित्सा एवं औषधि विज्ञान के जन्मजाता हिप्पाोटीज के अनुसार धान्यों का अंकुरण काल की ताजी हरी पत्तियां एक ऐसा पूर्ण आहार है, जिनसे उदरपूर्ति और चिकित्सा संबंधी उभयपक्षीय प्रयोजनों की पूर्ति होती है। पोषण के साथ-साथ शरीरशोधन का लाभ भी इससे मिलता है। इस संदर्भ में अमेरिका की सुप्रसिध्द महिला चिकित्सा विज्ञआन डा. एन. विग्मोर ने गहन अनुसंधान किया है। लम्बी अवधि तक किये गये विविध प्रयोग-परीक्षणों के आधार पर प्राप्त निष्कर्षों को उन्होंने अपनी कृति हवाई सफर, इ आन्सर तथा व्हीट ग्रास मेन्ना में प्रकाशित किया है। उनके अनुसार गेहूं का छोटा पौधा प्रकति का ऐसा अनुपम उपहार है, जो पोषक होने के सात ही उत्तम औषधि का काम करता है। गेहूं के छोटे-छोटे पौधों का जीवनदायी रस सेवन कराकर उन्होंने कितने ही रोगियों की सफल उपचार किया है। इसे ग्रीन ब्लड भी कहा गया है। जब इतना सुन्दर विकल्प हमारे समक्ष है तो हम क्यों अभक्ष्य खाते व दूसरों को खिलाते हैं।

प्रत्येक बीज के अन्दर पोषक तत्व सघनता के साथ संग्रहित रहते हैं। जल, वायु और उचित ताप का सान्निध्य पाकर बीज जाग्रत हो उठता है। अब तक वह प्रसुप्त अवस्था में था। प्रसुप्त अवस्था में उसमें प्राणतत्व की मात्रा कम थी, जाग्रत-जीवंत ही उसमें प्राणतत्व की मात्रा में आशातीत वृध्दि होती है, इसीलिए अंकुरित अन्न सेवन करने वाले को प्राणतत्व अधिक मात्रा में प्राप्त होता है। तला-भुना अन्य मृत होने के कारण पोषक तत्वों से हीन होता है और अधिक मात्रा में सेवन किया जाता है, जबकि अंकुरित जीवित अन्न थोड़ी मात्रा में सेवन करने से ही पोषक तत्वों की पूर्ति करने में सक्षम होता है। इससे भोजन की बचत होतीहै। कम भोजन से अधिक व्यक्तियों के आहार की पूर्ति हो सकती है। प्रसुप्त बीज जब अनुकूल परिस्थितियां पाकर अंकुरित होता है तो मूलांकुर की वृध्दि होने लगती है। वृध्दि के लिए आहार की आवश्यकता होता है। इसी प्रयोजन की पूर्ति के लिए बीज के अन्दर भोजन एकत्रित रहता है। इस भोजन का पाचन होकर ही मूलांकुर को मिलता हैस जिससे उसकी वृध्दि होती है। एकत्रित भोजन को पचाने के लिए एंजाइम्स की आवश्यकता होती है। बीज के अंकुरण के समय बीज के अन्दर एकत्रित भोजन को पचाने वाले एंजाइम्स का निर्माण होता है। ये एंजाइम्स अंकुरित अन्न के सेवनकर्ता को भी प्राप्त होते हैं, जिससे ऐसे भोजन का पाचन आसानी से हो जाता है। वृक्ष पर ही पके ताजा फलों को मनुष्य का प्रथम श्रेणी का आहार माना जा सकता है, लेकिन इसके अभाव में हर प्रकार के उपयोगी द्वितीय श्रेणी का भोजन अंकुरित अन्न ही है, जो सहजता से गरीब, अमीर सभी के लिए प्राप्त हो सकता है। आवश्यकता है सकी उपयोगिता समझकर इसे अत्यन्त रुचिपूर्ण ग्रहण करने की और इसमें स्वाद अनुभव करने की।

 

India Edge News Desk

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