आषाढ़ मास की दर्श अमावस्या पर पूर्वजों की शांति के लिए करें तर्पण

हिन्दू धर्म में आषाढ़ मास की दर्श अमावस्या का बहुत अधिक महत्व होता है. दर्श अमावस्या हिंदू पंचांग में हर महीने के कृष्ण पक्ष की अंतिम तिथि को पड़ती है. इस दिन का धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से बहुत महत्व है, खासकर पितरों (पूर्वजों) की शांति, तर्पण और दान-पुण्य के लिए इसे अत्यंत शुभ माना जाता है. दर्श अमावस्या को ‘दर्श’ इसलिए कहा जाता है क्योंकि इस दिन चंद्रमा पूरी रात आकाश में दिखाई नहीं देता, वह ‘अदृश्य’ रहता है. इस तिथि पर पितरों की आत्माएं पृथ्वी पर आती हैं और अपने परिवार के सदस्यों को आशीर्वाद देती हैं. इसलिए यह दिन पितरों को तृप्त करने और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए समर्पित है.

पंचांग के अनुसार, आषाढ़ मास की अमावस्या तिथि 24 जून दिन मंगलवार को शाम 06 बजकर 59 मिनट पर शुरू होगी और 26 जून दिन गुरुवार को शाम 04 बजकर 00 मिनट पर समाप्त होगी. उदया तिथि के अनुसार, आषाढ़ माह की दर्श अमावस्या का मुख्य पर्व और पूजा 25 जून 2025, बुधवार को ही की जाएगी.

दर्श अमावस्या की पूजा विधि और तर्पण
    दर्श अमावस्या के दिन पितरों की आत्मा की शांति और अपने जीवन में सुख-समृद्धि के लिए निम्न विधि से पूजा और तर्पण करें.
    दर्श अमावस्या के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर किसी पवित्र नदी में स्नान करें. यदि यह संभव न हो तो घर पर ही पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान कर सकते हैं. स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें.
    एक तांबे का लोटा लें, उसमें शुद्ध जल, थोड़े से काले तिल, जौ और गंगाजल मिलाएं. कुश (पवित्र घास) को अपनी अनामिका उंगली में अंगूठी के रूप में या हाथ में पकड़कर रखें.
    दक्षिण दिशा की ओर मुख करके बैठें, क्योंकि यह पितरों की दिशा मानी जाती है. अपने हाथ में जल, कुश और काले तिल लेकर अपने पितरों का स्मरण करते हुए तर्पण करने का संकल्प लें.
    जल हमेशा अंगूठे और तर्जनी (अंगूठे के पास वाली उंगली) के बीच से धीरे-धीरे धरती पर छोड़ें. इस हिस्से को ‘पितृ तीर्थ’ कहा जाता है.
    अपने ज्ञात पितरों (जैसे पिता, दादा, परदादा) का नाम लेकर तीन बार जल की अंजलियां अर्पित करें. यदि नाम याद न हों, तो “ॐ सर्व पितृ देवाय नमः” या “समस्त पितृभ्यो नमः, पितृभ्यो तर्पयामि” कहते हुए जल अर्पित करें.
    तर्पण करते समय “ॐ पितृगणाय विद्महे, जगद्धारिणै धीमहि, तन्नो पितरो प्रचोदयात्” मंत्र का जाप करें.
    यदि आप पिंडदान करना चाहते हैं, तो तर्पण के बाद जौ के आटे, काले तिल और चावल को मिलाकर पिंड बनाएं और पितरों को अर्पित करें.
    तर्पण के बाद एक दीपक जलाकर पितरों के नाम से प्रज्ज्वलित करें. घर में बने सात्विक भोजन (बिना प्याज, लहसुन) में से थोड़ा अंश निकालकर कौवे, गाय, कुत्ते और चींटियों के लिए अलग से रखें.
    दर्श अमावस्या के दिन अपनी सामर्थ्य के अनुसार गरीबों, ब्राह्मणों या ज़रूरतमंदों को अन्न, वस्त्र, काले तिल या धन का दान करें. पीपल के पेड़ को जल चढ़ाएं और शाम को उसके नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाएं.

दर्श अमावस्या का महत्व
दर्श अमावस्या के दिन तर्पण, पिंडदान और ब्राह्मणों को भोजन कराने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और उन्हें मोक्ष प्राप्त होता है. जिन लोगों की कुंडली में पितृ दोष होता है, उनके लिए दर्श अमावस्या पर श्राद्ध कर्म और तर्पण करना बहुत लाभकारी माना जाता है. इससे पितृ दोष के नकारात्मक प्रभाव कम होते हैं. इस दिन किए गए स्नान, दान और पूजा-पाठ से कई गुना अधिक पुण्य फल मिलता है, जो व्यक्ति को सुख-समृद्धि और शांति प्रदान करता है. पितरों के आशीर्वाद से जीवन में आ रही बाधाएं दूर होती हैं, परिवार में सुख-शांति बनी रहती है, और आर्थिक संकट से मुक्ति मिलती है.

 

India Edge News Desk

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