बोरवेल में 105 घण्टे से फसे राहुल ने आखिरकार मौत को हरा दिया

इंडिया एज न्यूज नेटवर्क

जांजगीर-चाम्पा : राहुल बोल नहीं पाता, सुन नहीं पाता..कमजोर है। उसकी मानसिक स्थिति ठीक नहीं…कुछ इस तरह के चर्चाओं के बीच जिंदगी और मौत के बीच बोरवेल में 105 घण्टे से फसे राहुल ने आखिरकार मौत को हरा दिया। उन्हें नई जिंदगी देने में शासन-प्रशासन सहित एनडीआरएफ और एसडीआरएफ की टीम ने पूरी ताकत झोंक दी थी, लाखों लोगों ने दुआएं की। लेकिन यह भी सत्य है कि जिस विषम परिस्थितियों में राहुल ने खुद को सम्हाला और रेस्क्यू सफल होने तक धैर्य बनाए रखा, यह उनके साहस का ही परिणाम है कि अब सबके साथ सफलता की छाप छप गई है। वरना नाकामी का कलंक, कोशिशों में कमी, हर जगह शासन-प्रशासन को ही नही, दिन-रात संघर्ष करने वालों को भी चिढ़ाती। 10 जून को बोरवेल में गिरने के बाद शुरू हुआ ‘‘ऑपरेशन राहुल-हम होंगे कामयाब‘‘ बड़ी ही मुश्किल से जीवन और मौत के सवालों के बीच लगभग 105 घण्टे बाद राहुल की वापसी के साथ ही सफल हुआ। खुशी है कि इस अभियान से मैं जुड़ा और यहां राहुल को बचाने के लिए की जा रही मिनट दर मिनट संघर्ष को देखा।

चूंकि यह मामला एक ऐसे विशेष बच्चे की थी। जो न तो बोल सकता था। न ही सुन सकता था। यह घटना सबके संवेदनशीलता का भी था। ऐसे में भला राज्य के मुखिया को भी नींद कैसे आती ? वे ग्राम पिहरीद की घटना की हर जानकारी से जुड़ते चले गए और पल-पल का अपडेट लेने के साथ दो बार राहुल की माता-पिता, फूफा और दादी से सीधे वीडियों कॉल कर उनका मनोबल बढ़ाया, और कहा कि आप सभी धैर्य रखिए। राहुल सकुशल वापस आएगा। मुख्यमंत्री जी का यह ढांढस राहुल के माता-पिता और परिजनों के लिए एक नई उम्मीद बनी। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल बचाव के लिए दिए जा रहे निर्देशों को भी कलेक्टर से परखते रहें और उनकी सतत निगरानी भी थी, जिसने जिला प्रशासन को बहुत एक्टिव रखने का काम किया।

देश में अब तक के सबसे बड़े रेस्क्यू अभियान की इस सफलता के पीछे एक तरफ बोरवेल में फसे राहुल को बाहर निकालने का संघर्ष जुड़ा है तो दूसरी ओर राहुल का वह संघर्ष भी है, जिसने दुनियां में आते ही न जाने किन-किन लोगों से क्या-क्या न सुना होगा। कब किसी के ताने और मजाक का पात्र नहीं बना होगा।

मैंने जब राहुल के संबंध में गांव के कुछ लोगों से बात की तो यह जानकर अच्छा नहीं लगा कि राहुल के लिए कुछ अपनों का ही व्यवहार वैसा नहीं था, जो होना चाहिए। मुख्यमंत्री ने ऐसे बालक के लिए जो अपनापन दिखाया है और राहुल के बोरवेल में फसने से लेकर, अस्पताल तक पहुचाने और सम्पूर्ण खर्च उठाने की जिम्मेदारी ली है, वह उन लोगों के लिए भी किसी तमाचे या अपने किये पर आत्मग्लानि से भी कम नहीं, जो राहुल को कमजोर या कुछ और समझते हैं। सबने देखा कि जरा सी चूक मासूम राहुल की जिंदगी के के लिए कैसे भारी पड़ गई। उसे ऊपर से ही बाहर निकालने के लिए तमाम कोशिश की गई, लेकिन सफलता नहीं मिली। अब तक कई रेस्क्यू कर चुके एक्सपर्ट के लिए भी राहुल चुनौती बन गया। अंततः यह तरकीब सफल नहीं हुई तो बन्द बोरवेल तक 65 फीट खुदाई कर राहुल को बाहर निकालने की भारी मशक्कत की गई। लगभग 60 फीट की गहराई से राहुल को सुरक्षित निकाल पाना इसलिए भी चुनौती बन गई थी कि सुरंग बनाने की राह में एक के बाद एक मजबूत चट्टान थे और आसानी से कट नहीं रहे थे। वहीं दूसरी ओर राहुल भेजी गई रस्सी को पकड़ कर ऊपर आने की कोई कोशिश ही नहीं करता था।

जांजगीर-चाम्पा जिले के मालखरौदा ब्लॉक के अंतर्गत ग्राम पिहरीद में घटी यह घटना हर दिन समय गुजरने के बाद हर जगह सुर्खियां बनती जा रही थी। लोग घण्टे गिन रहे थे और अनुमान लगाकर सबकुछ किस्मत पर छोड़ते जा रहे थे। बोरवेल में उसकी तस्वीर चर्चा का विषय बनती रही। प्रशासन मुस्तैद होकर मौके पर मौजूद था। सभी को सुरंग के बनने और किसी तरह राहुल तक पहुचने का इंतजार था।

लगभग 105 घंटे से अधिक समय से बोरवेल में फसे राहुल साहू के लिए जिला प्रशासन का हर अधिकारी कर्मचारी, एनडीआरएफ, एसडीआरएफ, सेना के जवान, एसईसीएल, बीएसपी, बालको, नगर सेना, पुलिस, फायरब्रिगेड सहित अन्य विभागों के अफसर रेस्क्यू में लगे रहे। रोबोट का भी सहारा लिया गया। लेकिन कामयाबी नहीं मिली। बोरवेल के बाहर जिला प्रशासन और एनडीआरएफ ने पल-पल कैमरे से राहुल की गतिविधियां ध्यान में रखा।एनडीआरएफ के जवानों ने राहुल को आवाज लगा-लगाकर जैसे कुछ होने नहीं दिया। उन्हें केला, सेब और जूस भी दिया जाता रहा। गाँव से लेकर प्रदेश के और देश के हर जानने वाले लोग राहुल के सकुशल वापसी के लिए दुआएं भी करते रहे। अभियान जितना देर चलता रहा, सबकों एक डर यह भी सताते रहा कि इतना देर तक एक मासूम कैसे अपने आपकों बचा कर रख सकता है ? लेकिन देश में अब तक के सबसे लंबे समय तक चले इस ‘‘आपरेशन राहुल-हम होंगे कामयाब‘‘ 105 घण्टे बाद भी कामयाब हो गया। बेशक यह शासन-प्रशासन सहित रेस्क्यू टीम की सूझबूझ थी कि उन्होंने राहुल के राह में बाधा बनी चट्टानों को काट-काट कर बाहर निकाला और उस तक पहुचाने का रास्ता तैयार कर लिया। दूसरी ओर यह भी तो सत्य ही है कि आखिरकार मानसिक रूप से कमजोर समझा जा रहा राहुल जीवन की जद्दोजहद में कहीं भी कमजोर नहीं हुआ। इतने घण्टे सँकरे और अंधेरेनुमा स्थान में 60 फीट नीचे फसे रहने के बाद भी अपना साहस और धैर्य बचाकर रखा। यह अलग बात है कि मशीनें जो खुदाई में लगी थीं वह चट्टानी पत्थर को तोड़ते-तोड़तेे, लगातार काम करते गरम हो जा रही थी। रेस्क्यू में लगे कुछ लोग थक जा रहे थे, मगर राहुल न थका, न हारा। वह तो अपने साहस और हिम्मत से जिंदगी का जंग जीत गया। अब राहुल की जिंदगी में एक नया सबेरा तो हुआ ही, उन्हें कमजोर समझने वालों को राहुल ने जिंदगी की जंग जीतकर बता दिया कि वह कमजोर नहीं है, वह तो हादसे का शिकार हुआ था और जब विपरीत परिस्थितियां आई तो वह अपनी साहस की बदौलत हारा नहीं। शायद राहुल की यहीं जिजीविषा और संघर्ष अब उन लोगों में राहुल जैसे लोगों के प्रति फैलाएं गए भ्रम, बनाई गई धारणा को बदलने का काम करें, जो राहुल को कुछ भी बोलकर कम आंकते थे। समाज ऐसे राहुल को जब भी अपनाएं, लेकिन ग्राम पिहरीद में राहुल का अब नया अवतार हो गया है और यह पूरे देश ने देखा है। उम्मीद है कि राहुल जैसों के प्रति आप भी अपनी धारणा मन से हटायेंगे और संर्घषों में साहस दिखाने वाले राहुल जैसों को सलाम करेंगे। राहुल के ऐसे जज्बे और साहस को सलाम है।

India Edge News Desk

Follow the latest breaking news and developments from Chhattisgarh , Madhya Pradesh , India and around the world with India Edge News newsdesk. From politics and policies to the economy and the environment, from local issues to national events and global affairs, we've got you covered.
Back to top button