आत्मनिर्भरता और सामाजिक समरसता के प्रेरणापुंज थे संत रविदास: गौतम टेटवाल

भोपाल

विशेष लेख

भारतीय संस्कृति में संतों का स्थान केवल आध्यात्मिक मार्गदर्शकों के रूप में नहीं, बल्कि समाज सुधारकों के रूप में भी रहा है। उन्होंने समय-समय पर समाज को नई दिशा दी, उसके उत्थान के लिए कार्य किया और एक न्यायसंगत व्यवस्था का संदेश दिया। संत रविदास जी भी उन्हीं में से एक थे, जिन्होंने समानता, श्रम की प्रतिष्ठा और आत्मनिर्भरता की शिक्षा दी। उनके विचारों की प्रासंगिकता आज भी उतनी ही गहरी है जितनी उनके समय में थी।

संत रविदास जी 15वीं-16वीं शताब्दी के एक महान संत, समाज सुधारक और कवि थे। उनका जन्म वाराणसी में हुआ था। उन्होंने समाज में जातिगत भेदभाव का विरोध किया और कर्म को व्यक्ति की पहचान का आधार माना। उनकी शिक्षाएँ भक्ति आंदोलन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनीं और उन्होंने निर्गुण भक्ति को अपनाते हुए समानता और ईश्वर-भक्ति का संदेश दिया। उनके विचारों को गुरुग्रंथ साहिब में भी शामिल किया गया, जो यह दर्शाता है कि उनकी शिक्षाएँ किसी एक संप्रदाय तक सीमित न होकर समस्त मानवता के लिए थीं। उन्होंने एक ऐसे समाज की कल्पना की थी, जहां न कोई गरीबी हो, न शोषण हो, और न ही किसी प्रकार का अन्याय। यह उनके सामाजिक सुधार के विचारों का दर्पण है, जो आज के आत्मनिर्भर भारत और विकसित मध्यप्रदेश के संकल्प से मेल खाता है। उनके विचार केवल भक्ति तक सीमित नहीं थे, बल्कि उन्होंने श्रम और कर्म की प्रतिष्ठा को समाज में स्थापित किया। उन्होंने कहा था कि "ऐसा चाहूं राज मैं, जहाँ मिले सबन को अन्न" छोट-बड़ो सब सम बसै, रविदास रहै प्रसन्न। यह केवल एक आदर्श कल्पना नहीं, बल्कि एक ऐसे समाज की परिकल्पना थी जहां समानता हो, कोई भेदभाव न हो और हर व्यक्ति आत्मनिर्भर बने।

संत रविदास के इन्हीं विचारों को साकार करने की दिशा में मध्यप्रदेश सरकार युवाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए सतत प्रयास कर रही है। संत शिरोमणि रविदास ग्लोबल स्किल्स पार्क इस दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है, जहां युवाओं को वैश्विक स्तर का प्रशिक्षण दिया जा रहा है, जिससे वे न केवल आत्मनिर्भर बनें, बल्कि अपनी प्रतिभा के बल पर प्रदेश और देश की अर्थव्यवस्था में योगदान दें।

आज प्रदेश में 970 आईटीआई (290 सरकारी और 680 निजी) कार्यरत हैं, 83 हजार 109 युवाओं को प्रशिक्षित कर तकनीकी और व्यावसायिक विशेषज्ञता प्रदान कर रहे हैं। ग्लोबल स्किल पार्क जैसे संस्थान सालाना 10 हजार युवाओं को उन्नत नौकरी के लिए प्रशिक्षण देते हैं। आईटीआई का आधुनिकीकरण कर 10 संस्थानों को अपग्रेड किया गया है, जिससे हर साल 12 हजार युवा 32 उभरते ट्रेडों में एनसीवीटी-स्तरीय प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं।

मुख्यमंत्री सीखो-कमाओ योजना में 4.27 लाख से अधिक युवाओं ने आवेदन किया है, जिससे उन्हें छात्रवृत्ति और व्यावहारिक प्रशिक्षण के साथ सशक्त बनाया जा रहा है। सरकार ने 1515 करोड़ रु. का बजट कौशल विकास पहल के लिए आवंटित किया है, जिससे युवाओं को वैश्विक स्तर की ट्रेनिंग दी जा सके।

संत रविदास के विचारों को आत्मसात कर हम समाज में समानता, श्रम की प्रतिष्ठा और आत्मनिर्भरता की दिशा में लगातार आगे बढ़ रहे हैं। उनकी जयंती केवल स्मरण का अवसर नहीं, बल्कि उनके आदर्शों को अपनाने और उन्हें समाज में स्थापित करने का संकल्प है।

 

India Edge News Desk

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