राजस्थान को विश्वभर में एक अलग पहचान दिला चुका है तेरहताली नृत्य

रविन्द्र कुमार वैष्णव
पाली जिला कला एवं लोक संस्कृति की दृष्टि में समृद्ध है। पाली की लोककला का एक अभिनव हिस्सा तेरहताली नृत्य है। लोकनृत्य में यह नृत्य राजस्थान को विश्वभर में एक अलग पहचान दिला चुका है।
तेरहताली नृत्य के बारे में:-
यह राजस्थान का प्रसिद्ध लोक नृत्य है जो कामड़ जाति द्वारा किया जाता है। कामड जाति की स्त्रियां शरीर पर 13 मन्जीरे बांध कर इस नृत्य को करती है एवं पुरूष पीछे बैठकर रामदेवजी व हिग्लाज माता के भजन गाते है व वाद्ययंत्र बजाते है। यह राजस्थान का एकमात्र नृत्य है जो बैठकर किया जाता है। इसमें 9 मंजीरे दाहिने पैर में, 2 मंजीरे कोहनी पर तथा 2 मंजीरे हाथो में पहने जाते है। इसमें नृतकी अपने मुंह में नंगी तलवार या कटार दबाकर नृत्य करती है जो हिंगलाज माता का प्रतीक है व थाली में जलता दीपक रखकर महिला थाली को सिर पर रखकर नृत्य करती है।
पाली जिले के पादरला ग्राम से शुरू हुई यह लोककला –
पाली जिले के छोटे से गांव पादरला से शुरू हुई इस लोककला को आज पुरा विश्व मानता है। यहां निवास करने वाली कामड़ जाति दवारा पहले बाबा रामदेव व अन्य लोक देवताओं के कथावाचन किए जाते थे इन कथा वाचन के साथ ही महिलाऐं अपने हाथ व पैर में मंजीरे पहन घरेलू काम करने के तरीको को नृत्य में बदला गया था। धीरे-धीरे इस कला में बदलाव आते रहे व लोगों को पसंद आया जिसके बाद यह कला सम्पूर्ण राजस्थान में फैलने लगी।
देश के प्रथम प्रधानमंत्री ने 1948 में दिया था तेरहताली को पहली बार मंचः-
आजादी के समय इस कला का काफी प्रचलन राजस्थान में बढ़ा व आजादी के बाद देश के प्रथम प्रधानमंत्री श्री जवाहरलाल नेहरू ने तेरहताली नृत्य की संस्कृति को पहचाना और 1948 में पहली बार इस लोककला को उन्होंने दिल्ली के लाल किले पर हुए कार्यक्रम में मंच दिया और उस मंच के साथ ही इस कला को राजस्थान से बाहर निकलने का रास्ता मिला और धीरे-धीरे यह कला विश्व के कई देशों में विख्यात हुई।
बाबा रामदेव की कथा से शुरू होकर कृष्ण भक्ति पर होता है समापनः-
तेरहताली नृत्य करने वाले कलाकारो के अनुसार इस कला का उदगम् भी भक्ति गीतों के साथ ही हुआ था। कामंड जाति दवारा बेहतर तरीके से लोक देवताओं की कथाओं का वाचन किया जाता है। इसी के तहत तेरहताली नृत्य में भी शुरूआत बाबा रामदेव की कथाओं से किया जाता है। इस कथा को गीतों में पिरोकर गीतों की प्रस्तृति देते है और उनके साथ महिलाओं की टोली तेरहताली नृत्य करती है।
तेरहताली नृत्य में अधिकतर महिलाओं द्वारा घर में किए जाने वाले कार्यो जैसे की बिलोना, साफ सफाई करना, फसलों को काटना दिखाया जाता है और उन्ही कार्यो को इस तेरहताली नृत्य में पिरो दिया जाता है। इस नृत्य का समापन कृष्ण भक्ति के साथ किया जाता है जहां कृष्ण और राधा के प्रेम को दिखया जाता है।