महाराष्ट्र में सरकार गठन के दो महीने बाद एक बार फिर से महायुति में खींचतान साफ दिख रही, जिससे बिगड़े रिश्ते

मुंबई
महाराष्ट्र में सरकार गठन के दो महीने बाद एक बार फिर से महायुति में खींचतान साफ दिख रही है। सरकार ने नासिक और रायगड़ जिलों के लिए प्रभारी मंत्री के तौर पर गिरीश महाजन और एनसीपी नेता अदिति तटकरे के नाम का ऐलान किया, जिस पर शिवसेना ने सख्त ऐतराज जताया। खुद एकनाथ शिंदे की ओर से इस मामले पर देवेंद्र फडणवीस को कॉल करके नाराजगी जाहिर की गई, जिसके बाद फैसले पर स्टे लगा दिया गया। अब माना जा रहा है कि इस सप्ताह के अंत तक ही इस पर कोई फैसला होगा। सीएम विदेश दौरे पर हैं और डिप्टी सीएम एकनाथ शिंदे सतारा स्थित अपने पैतृक गांव चले गए हैं। इस बीच शिवसैनिकों की ओर से नासिक और रायगड़ में विरोध जारी है ताकि एकनाथ शिंदे गुट की दावेदारी मजबूत की जा सके।

वहीं कुछ शिवसेना नेताओं का कहना है कि नाराजगी के कुछ और भी कारण हैं। दरअसल बीते कई महीनों से कुछ ऐसे फैसले हुए हैं, जिनमें एकनाथ शिंदे के दौर के निर्णयों को पलटा गया है। इससे भी एकनाथ शिंदे गुट असहज हुआ है। इसके अलावा एनसीपी के साथ भाजपा की ज्यादा नजदीकी मानी जा रही है और इससे भी तमाम लोग दुखी हैं। इनमें से एक फैसला स्कूलों को लेकर है। एकनाथ शिंदे के एजुकेशन मिनिस्टर रहे दीपक केसरकर ने निर्णय लिया था कि सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों के लिए यूनिफॉर्म सप्लाई के लिए अलग से एजेंसी बनेगी। अब देवेंद्र फडणवीस सरकार ने इस फैसले को पलट दिया है और ड्रेस खरीदने का अधिकार स्कूल मैनेजमेंट कमेटी को दे दिया है।

इसके अलावा तीन प्राइवेट एजेंसियों की 1,310 बसों को महाराष्ट्र सड़क परिवहन निगम के लिए लीज पर लेने के फैसले को भी देवेंद्र फडणवीस ने पलटा है। इसके अलावा 900 एंबुलेंस खरीदने के एकनाथ शिंदे सरकार के निर्णय में भी बदलाव की बात देवेंद्र फडणवीस ने कही है। शिवसेना के एक नेता ने कहा कि ये बदलाव एकतरफा तौर पर हुए हैं। इस बारे में हमारी कोई सलाह तक नहीं ली गई। उन्होंने कहा कि इस तरह से फैसलों को पलटने से जनता के बीच हमारी साख कमजोर होगी कि शायद हमने कुछ गलत निर्णय लिए थे या फिर भाजपा के नेतृत्व में हमारा महत्व नहीं रहा। पहले ही इन फैसलों की वजह से संदेह की स्थिति पैदा हुई है और अब प्रभारी मंत्रियों की तैनाती ने अविश्वास की खाई को और बढ़ा दिया है।

बता दें कि महाराष्ट्र में इस बार चुनाव नतीजे आने के बाद से ही असहज स्थिति है। भाजपा ने 145 के जादुई आंकड़े वाले सदन में 132 सीटें हासिल की हैं। इसके बाद भी एकनाथ शिंदे चाहते थे कि सीएम उन्हें ही बनाया जाए। इस खींचतान के चलते ही शपथ ग्रहण समारोह 5 दिसंबर को हो पाया, जबकि नतीजे तो 23 नवंबर को ही आ गए थे। भले ही शिंदे ने डिप्टी सीएम का पद संभाल लिया है, लेकिन अब भी भाजपा के साथ रिश्ते पहले की तरह सहज नहीं हो पाए हैं। वहीं अजित पवार खेमे का कहना है कि फडणवीस सरकार ने हमारे भी कुछ फैसलों को बदला है, लेकिन हम नाराजगी जाहिर नहीं कर रहे हैं। शिवसेना हर मामले में विरोध दर्ज कराकर संबंध खराब कर रही है।

India Edge News Desk

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