हमारे पास होगा अपना S-500 और थाड, बना रहा ‘सुदर्शन चक्र’ जैसा डिफेंस सिस्टम, दुश्मनों का हर वार जाएगा खाली

नई दिल्ली
 ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के दौरान
भारत ने जिस तरह से पाकिस्तान के मिसाइलों और ड्रोन को हवा में ही खत्म कर दिया, उससे यह साबित हो गया कि भारत का एयर डिफेंस सिस्टम कितना मजबूत है. लेकिन भारत अब और भी खतरनाक तरीके से इसकी ताकत बढ़ाने में लगा है. दरअसल, पाकिस्तान के साथ ही भारत को चीन से भी मुकाबला करना पड़ सकता है और इसीलिए उसे अपने एयर डिफेंस को इतना पावरफुल बनाना होगा, जिससे कि दुश्मनों की कोई भी मिसाइल हमारी सीमा में घुसते ही तबाह हो जाए. इस पर काम भी शुरू हो गया है.

 भारत के रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) के प्रमुख ने घोषणा की कि प्रोजेक्ट कुशा रूस के S-500 के बराबर है और ताकत में S-400 से आगे है. यह इसे भारत के एयर डिफेंस के लिए एक ‘गेम-चेंजर’ के रूप में स्थापित करता है. इसे 80-90% इंटरसेप्शन सक्सेस रेट के साथ स्टील्थ जेट, ड्रोन, विमान और मैक 7 एंटी-शिप बैलिस्टिक मिसाइलों का मुकाबला करने के लिए डिज़ाइन किया गया है. प्रोजेक्ट कुशा डीआरडीओ द्वारा विकसित की जा रही एक महत्वाकांक्षी स्वदेशी लंबी दूरी की वायु रक्षा प्रणाली (एयर डिफेंस सिस्टम) है. इसे विस्तारित रेंज एयर डिफेंस सिस्टम (ERADS) या प्रेसिजन-गाइडेड लॉन्ग-रेंज सरफेस-टू-एयर मिसाइल (PGLRSAM) के रूप में भी जाना जाता है.

प्रोजेक्ट कुशा 80 किलोमीटर एमआर-एसएएम और 400 किलोमीटर एस-400 के बीच की खाई को पाटता है, जो आकाश और बराक-8 जैसे सिस्टम के साथ इंटीग्रेटेड है. यह भारत की आत्मनिर्भरता पहल, ‘आत्मनिर्भर भारत’ का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. घरेलू समाधान का उद्देश्य क्षेत्रीय खतरों, विशेष रूप से पाकिस्तान और चीन से सुरक्षा को मजबूत करके भारत के हवाई क्षेत्र को हवाई खतरों से बचाना है.

मई 2025 के भारत-पाकिस्तान संघर्ष के बाद इस प्रोजेक्ट ने सबका ध्यान खींचा है, जहां एयर डिफेंस सिस्टम ड्रोन और मिसाइलों के खिलाफ महत्वपूर्ण साबित हुई, जिसने कुशा जैसी स्वदेशी क्षमताओं की जरूरत को नोटिस में लाने का काम किया. यूरेशियन टाइम्स में प्रकाशित खबर के मुताबिक, अनुमान लगाया जा रहा है कि 2028-2029 तक यह डिफेंस सिस्टम तैयार हो जाएगा, जिसके बाद यह भारतीय वायु सेना (आईएएफ) और भारतीय नौसेना की ताकत को कई गुना बढ़ा देगा.

सिस्टम स्पेसिफिकेशन:
इंटरसेप्टर मिसाइल: प्रोजेक्ट कुशा की मुख्य ताकत इसके तीन-लेवल वाली इंटरसेप्टर मिसाइल सिस्टम में छिपा है, जिसे अलग-अलग दूरी पर विभिन्न हवाई खतरों को बेअसर करने के लिए डिज़ाइन किया गया है. M1 इंटरसेप्टर (150 किमी) मिसाइल कम दूरी पर लड़ाकू जेट, ड्रोन और क्रूज मिसाइलों जैसे खतरों को टारगेट करेगी.

इसका कॉम्पैक्ट 250 मिमी व्यास वाला किल व्हीकल, दोहरे पल्स सॉलिड रॉकेट मोटर और थ्रस्ट वेक्टर कंट्रोल से लैस है, जो हाई स्पीड और सटीकता को तय करता है, जो इसे जंग के हालात में और भी खतरनाक बना देता है. और ज्यादा रेंज वाली M2 इंटरसेप्टर (250 किमी) मिसाइल एडवांस टारगेट्स को शामिल कर सकती है, जिसमें एयरबोर्न अर्ली वार्निंग एंड कंट्रोल सिस्टम (AEW&CS) और एंटी-शिप बैलिस्टिक मिसाइल (ASBM) शामिल हैं.

यह M1 के 250 मिमी किल व्हीकल को साझा करता है, जो मध्यम दूरी के खतरों के खिलाफ चालाकी और सटीकता के लिए अनुकूल है. एम3 इंटरसेप्टर (350-400 किमी), सिस्टम में सबसे लंबी दूरी की मिसाइल है, जिसे बड़े विमानों और संभावित रूप से छोटी और मध्यम दूरी की बैलिस्टिक मिसाइलों (एसआरबीएम और आईआरबीएम) का मुकाबला करने के लिए डिज़ाइन किया गया है. इसकी विस्तारित सीमा और बढ़ी हुई मारक क्षमता को हासिल करने के लिए इसमें 450 मिमी व्यास का बड़ा किलिंग व्हीकल हो सकता है.

कैपेबिलिटी: इन इंटरसेप्टर में 85% की असरदार सिंगल-शॉट किल संभावना है, जो पांच सेकंड के अंतराल पर साल्वो मोड में दो मिसाइलों को लॉन्च करने पर 98.5% तक बढ़ जाती है. मिसाइलों में संभवतः हिट-टू-किल (HTK) तकनीक का उपयोग किया जाता है, जो विस्फोटक वारहेड्स के बजाय काइनेटिक एनर्जी पर निर्भर करती है, जो US THAAD या SM-3 जैसे एडवांस सिस्टम के समान है. रडार और इंफ्रारेड गाइडेंस को मिलाकर ड्यूअल-सीकर टेक्नोलॉजी, लो-रडार-सिग्नेचर टारगेट्स, जैसे कि स्टील्थ एयरक्राफ्ट और क्रूज मिसाइलों को ट्रैक करने और नष्ट करने की उनकी क्षमता को बढ़ाती है.

एडवांस रडार सिस्टम: प्रोजेक्ट कुशा का असरदार होना इसकी स्टेट-ऑफ-द-आर्ट रडार सिस्टम्स, विशेष रूप से लॉन्ग रेंज बैटल मैनेजमेंट रडार (LRBMR), एक S-बैंड रडार पर निर्भर करती है, जिसकी डिटेक्शन रेंज 500 किमी से अधिक है. यह रडार दुश्मन के इलाके में 500-600 किमी तक स्कैन कर सकता है, जो स्टील्थ एयरक्राफ्ट, ड्रोन, सटीक-गाइडेड युद्ध सामग्री और बैलिस्टिक मिसाइलों के खिलाफ शुरुआती चेतावनी देता है. यह सिस्टम भारत के इंटीग्रेटेड एयर कमांड और कंट्रोल सिस्टम (IACCS) के साथ बड़ी आसानी से इंटीग्रेट होती है, जिससे आकाश, MRSAM और S-400 सहित अन्य एयर डिफेंस सिस्टम्स के साथ रियल टाइम तालमेल संभव होता है.

इसी तरह से, भारतीय नौसेना अपने अगली पीढ़ी के विध्वंसक के लिए 6×6 मीटर का रडार विकसित कर रही है, जो विशाखापत्तनम कैटेगरी के विध्वंसक के रडार से चार गुना बड़ा है, ताकि 1,000 किलोमीटर तक की दूरी तक मार करने वाली समुद्री मिसाइलों और ASBM का पता लगाया जा सके.

India Edge News Desk

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