सारे जहाँ का बोझ कंधे पर लेती हैं महिलाएं
पिंकी सिंघल
आज के इस आलेख में मैं अपने पाठक गण को कामकाजी महिलाओं को किन-किन जिम्मेदारियों को वहन करना पड़ता है ,पर अपने विचार साझा करना चाहूंगी ।वैसे तो दुनिया की प्रत्येक महिला और प्रत्येक पुरुष अपनी अपनी जिम्मेदारी ,कर्तव्यों एवम दायित्व का निर्वहन करते हैं और जीवन को सुचारू रूप से आगे बढ़ाते हैं ।एक दूसरे से मिलकर ,एक दूसरे की परवाह करते हुए स्त्री और पुरुष पारिवारिक और सामाजिक सभी प्रकार की जिम्मेदारियों को भलीभांति निभाते हैं और समाज रूपी इकाई को विकसित करने में अपना योगदान देते हैं।
महिलाएं घरेलू हों अथवा कामकाजी, उन्हें बहुत सी जिम्मेदारियों को निभाना होता है । घर परिवार के साथ साथ समाज, रिश्तेदारों,दोस्तों ,सगे संबंधियों आदि से अपने संबंधों को प्रगाढ़ करने के प्रयास में अक्सर महिलाएं अपने बारे में सोचना ही भूल जाती हैं ,स्वयं को समय देना भूल जाती हैं।घर परिवार और बच्चों की जिम्मेदारी को उठाते उठाते महिलाएं अक्सर अपने स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ कर जाती हैं जो कि अति चिंतनीय है।
घरेलू महिलाएं तो फिर भी घर परिवार की जिम्मेदारियों को निभाने के पश्चात थोड़ा समय अपने लिए निकाल लेती हैं, परंतु वहीं दूसरी ओर वर्किंग अर्थात कामकाजी महिलाएं ऐसा नहीं कर पातीं।चाहते हुए भी वे अपने लिए अपना ही समय नहीं निकाल पातीं।सुबह से शाम तक नौकरी करने के बाद जब वे घर आती हैं तो घर की अनेकों जिम्मेदारियां उनका इंतजार करती हुई नजर आती हैं।घर की चौखट के भीतर कदम रखते ही उन्हें वे काम दिखाई देने लगते हैं जिन्हें वे सुबह होने से पहले ही निपटाने के अथक प्रयास करती हैं क्योंकि अगले दिन फिर नए काम उसकी बाट जोहने लगते हैं।
दिन भर संघर्ष करने के पश्चात रात की नींद भी पूरी नहीं लेने के कारण उनके स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव पड़ता है जो आगे जाकर उनके जीवन के लिए घातक भी सिद्ध हो सकता है। परंतु महिलाएं वर्तमान की जिम्मेदारियों को छोड़कर भविष्य की ओर नहीं देखतीं।वे आज का काम आज ही खत्म करने में विश्वास रखती हैं ताकि अपने परिवार और सगे संबंधियों की अपेक्षाओं पर खरी उतर सकें और यही उनकी सबसे बड़ी चूक भी कही जा सकती है ।
घर परिवार की जिम्मेदारियों को निभाना गलत बात नहीं है।महिलाएं चाहे घरेलू हों अथवा कामकाजी ,सभी को इस प्रकार की जिम्मेदारियों को निभाना पड़ता है और वे इसे पूरे दिल से निभाती भी है। परंतु ,दिन के 24 घंटे में से यदि एक घंटा वे अपने लिए निकाल लें तो भी कुछ ज्यादा फर्क नहीं पड़ने वाला ।उस 1 घंटे में वे अपने मनपसंद टीवी सीरियल, गेम ,हॉबी अथवा अपना वह चहेता कार्य कर सकती हैं जिससे उन्हें मानसिक संतुष्टि मिले क्योंकि शारीरिक स्वास्थ्य के साथ-साथ मानसिक स्वास्थ्य का होना भी बेहद आवश्यक है ।मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले विपरीत प्रभाव से शारीरिक स्वास्थ्य भी गिरने लगता है।
कामकाजी महिलाओं को दोहरी जिम्मेदारियों का निर्वहन करना होता है। घर के छोटे-छोटे कामों जैसे राशन ,बिल भरना ,बच्चों की पढ़ाई लिखाई और आवश्यक सामानों की शॉपिंग से लेकर रिश्तों नातों को निभाने तक की जिम्मेदारी महिलाओं पर होती है ।यह भी सत्य है कि अनेक परिवारों में पुरुष कामकाजी महिलाओं को पूरा सपोर्ट करते हैं और उनकी जिम्मेदारियों के निर्वहन में अपना सार्थक सहयोग भी देते हैं जो कि अति प्रशंसनीय है।आधुनिक युग की जिंदगी में यह आवश्यक भी है।
परंतु आज भी कुछ परिवार ऐसे हैं जहां घर के कामों को महिलाओं के साथ जोड़कर देखा जाता है ।वहां पुरुष केवल आर्थिक सहयोग करने तक ही स्वयं को सीमित रखते हैं और अपनी संकीर्ण सोच के चलते महिलाओं पर जिम्मेदारियों का पहाड़ लाद देते हैं जिन्हें महिलाओं को ना चाहते हुए भी उठाना पड़ता है क्योंकि ईश्वर ने महिलाओं को ऐसा ही बनाया है वे चाहते हुए भी अपनों से पहले अपने बारे में नहीं सोच पातीं।अपने सुख और आराम से पहले वे अपनों को खुशियां देने में विश्वास रखती हैं ।नौकरी से आने के बाद वे नौकरी के दौरान हुई थकान को इस कदर भूल जाती हैं कि घर के काम करते हुए उन्हें यह एहसास ही नहीं होता कि ऐसा करके अप्रत्यक्ष रूप से वे अपने स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ कर रही हैं।
परिवार का माहौल चाहे जैसा भी हो ,परंतु ,घरेलू और कामकाजी दोनों ही प्रकार की महिलाओं को दिन में एक से डेढ़ घंटा अपने लिए अवश्य निकालना चाहिए और अपने स्वास्थ्य को प्राथमिकता देते हुए योगा क्लासेस ,मॉर्निंग वॉक, इवनिंग वॉक ,जिम, जिमनास्टिक, एरोबिक्स ,डांस, म्यूजिक अथवा इसी प्रकार की अन्य किसी गतिविधि में स्वयं को सम्मिलित करना चाहिए और दुनिया में अपनी एक अलग पहचान बनाने से कतई भी कतराना नहीं चाहिए ।उन्हें यह बात दिमाग में अवश्य रखनी चाहिए कि यदि वे अपना ख्याल नहीं रखेंगी तो अपनों का ख्याल किस प्रकार रख पाएंगी।