केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह बस्तर पहुंचे, मुरिया दरबार में मांझी-मुखियाओं से की बातचीत

जगदलपुर

केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह बस्तर दशहरा के कार्यक्रम में शामिल होने के लिए जदगलपुर पहुंच चुके हैं। यहां उन्होंने मां दंतेश्वरी मंदिर के सामने बस्तर के लोगों से बातचीत की। इसके बाद गृहमंत्री ने मां दंतेश्वरी के दर्शन किए। इसके बाद यहां से सीधे पास स्थित सिराहसारा भवन में मुरिया दरबार में मांझी, चालकी, गायता, पे से मिलकर उन्हें संभोधित कर रहे हैं।

केंद्रीय गृहमंत्री मूरिया दरबार, लाल बाग में प्रदर्शनी का अवलोकन, बस्तर दशहरा लोकोत्सव कार्यक्रम में शामिल होंगे। केंद्रीय गृहमंत्री के साथ में प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय, उप मुख्यमंत्री श्री विजय शर्मा भी पहुंचे हैं।

बता दें कि बस्तर दशहरे की ऐतिहासिक परंपरा मुरिया दरबार इस बार और भी विशेष होने जा रहा है। शाह ऐसे दौर में बस्तर आ रहे हैं, जब माओवाद के खात्मे का अंतिम अध्याय लिखा जा रहा है और केंद्र व राज्य की डबल इंजन सरकार क्षेत्र की संस्कृति व परंपराओं को नई पहचान देने में जुटी है।

दरबार में वे 80 परगनाओं से आए मांझी-मुखियाओं से सीधे संवाद करेंगे और उनकी समस्याएं सुनेंगे। यह पहला अवसर होगा जब कोई केंद्रीय गृहमंत्री इस पारंपरिक दरबार में जनजातीय प्रतिनिधियों से आमने-सामने बातचीत करेगा। विश्वप्रसिद्ध बस्तर दशहरे की यह परंपरा 145 वर्षों से जारी है और आज भी उतनी ही प्रासंगिक है। शाह की मौजूदगी इसे ऐतिहासिक बना रही है।

माओवाद पर सख्त संदेश, जनजातीय समाज को प्राथमिकता
अमित शाह जब से माओवाद के खात्मे के लिए 30 मार्च 2026 तक की समयसीमा तय कर चुके हैं, तब से वे देश के इतिहास में सर्वाधिक बार बस्तर आने वाले गृहमंत्री बन गए हैं। बीते 22 महीनों में यह उनका छठा बस्तर दौरा होगा। हर बार उन्होंने माओवादियों को स्पष्ट चेतावनी दी है कि समर्पण ही एकमात्र रास्ता है, अन्यथा सुरक्षा बल सख्त जवाब देंगे। कई अवसरों पर वे माओवादियों को भाई कहकर भी संबोधित कर चुके हैं।

बस्तर अब माओवाद मुक्त होने की ओर तेजी से कदम बढ़ा रहा है। ऐसे में दशहरे के मौके पर शाह का प्रवास विशेष महत्व रखता है। इससे पहले 5 अप्रैल 2025 को वे दंतेवाड़ा में आयोजित ‘बस्तर पंडुम’ (मेला) में शामिल हुए थे और मंच से आदिवासी अस्मिता व संस्कृति को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाने का संकल्प लिया था। इस बार वे उसी संकल्प को आगे बढ़ाते हुए सनातन आस्था और आदिवासी परंपरा के अद्वितीय संगम बस्तर दशहरा का हिस्सा बनेंगे।

मुरिया विद्रोह से जुड़ी है परंपरा
1876 से पहले बस्तर दशहरे के दौरान मांझी-मुखिया और ग्रामीण राजमहल में ठहरते थे और राजा का दरबार लगता था। उसी दौरान अंग्रेजों की दमनकारी नीतियों और जंगल पर जनजातीय अधिकारों पर अंकुश के विरोध में झाड़ा सिरहा के नेतृत्व में मुरिया जनजाति ने ऐतिहासिक विद्रोह छेड़ा। 8 मार्च 1876 को सिरोंचा के डिप्टी कमिश्नर मैक जॉर्ज को आंदोलनकारियों के सामने झुकना पड़ा और राजस्व-प्रशासनिक सुधार लागू करने पड़े।

यही विद्रोह जनजातीय एकता और अधिकारों की रक्षा का प्रतीक बना। इसके बाद से दशहरे के अवसर पर राजमहल के राजा दरबार की जगह झाड़ा सिरहा की गुड़ी में ‘मुरिया दरबार‘ लगने लगा। 1965 तक महाराजा स्व. प्रवीरचंद्र भंजदेव स्वयं इसकी अध्यक्षता करते रहे। बाद में यह परंपरा शासन-प्रशासन की उपस्थिति में जारी रही।

India Edge News Desk

Follow the latest breaking news and developments from Chhattisgarh , Madhya Pradesh , India and around the world with India Edge News newsdesk. From politics and policies to the economy and the environment, from local issues to national events and global affairs, we've got you covered.

Related Articles

Back to top button