पराली में मौजूद फायबर पशुओं को अत्यंत प्रिय, कृषि की परम्परागत शैली से नरवाई जलाने की घटनाओं में आयी कमी

भोपाल

धान, गेंहू मक्का सहित अन्य खाद्य फसलों की कटाई के बाद शेष बचा हिस्सा पर्यावरण को नुकसान पहुंचाता रहा है। क्योंकि खेतों में अवशेष के रूप में इस हिस्से में किसान आग लगा देता है और इससे इंसानी बस्तियों, परिवेश और वातावरण प्रदूषित होता जाता है। हाल ही में कृषि अभियांत्रिकी विभाग भोपाल द्वारा नरवाई जलाने की घटनाओं का सेटेलाइट डेटा जारी किया गया है। इसमें मध्यप्रदेश में 15 सितंबर से 14 नवम्बर के बीच कुल 8917 घटनाएं दर्ज की गई हैं। गत बीते 3 दिनों की बात करें, तो बालाघाट में 15 नवम्बर को नरवाई जलाने की सिर्फ एक घटना दर्ज हुई है। वहीं, श्योपुर में 489, जबलपुर में 275 घटनाएं हुई है। इसी तरह ग्वालियर, नर्मदापुरम्, सतना, दतिया जैसे जिलों में इस तरह की करीब 150 घटनायें रिकार्ड हुई है। यह डेटा इस वर्ष का पूरे देश मे सबसे अधिक है। यह पंजाब व हरियाणा जैसे कृषि में अग्रणी प्रदेशो से भी अधिक है।

मध्यप्रदेश में नरवाई जलाने की घटनाएं सबसे कम मात्रा में दर्ज हुई हैं। बालाघाट जिले में कृषि की परम्परागत शैली से ऐसी घटनाएं बिल्कुल नगण्य सी है। जिले के उप संचालक कृषि श्री राजेश खोब्रागड़े बताते हैं कि बालाघाट में नरवाई (पराली) जलाने के मामले में यहां के किसान बेहद सजग हैं। यहां किसान धान का उपयोग तो अपने लिए करते ही है, जबकि धान कटाई के बाद शेष बचे हिस्से (खूंट या खूंटी) को पशुओं के भोजन के रूप में खेतों में ही रहने देते हैं और कुछ हिस्सा काटकर पशुओं के लिए पुंजनी या पुंजना या कहें रोल बनाकर सुरक्षित रख लेते हैं। यहां परम्परागत रूप से खेती-किसानी का प्रबंधन बेहतर स्वरूप से दिखाई देता है। जिले में 15 सितंबर से 16 नवम्बर तक 6 घटनाएं पराली जलने की रिकॉर्ड हुई है। जिले में किसान हार्वेस्टर से कटाई के बावजूद एक फीट तक धान काटता है और रियर से कटाई करने पर भी कुछ हिस्सा शेष रखते है। यहां किसान धान का शेष भाग मुख्य रूप से पशुओं के लिए संरक्षित करते हैं और पूरे साल भर इसे पशुओं के चारे के रूप में उपयोग में लाते हैं।

खरीफ में ढाई लाख हेक्टेयर से अधिक रकबे में हुई धान की फसल

बालाघाट जिले में खरीफ की फसल में मुख्य रूप से धान का रकबा अधिक है। यहां इस वर्ष 2 लाख 60 हजार हेक्टेयर में धान उगाई गई। बालाघाट प्रदेश का एकमात्र जिला है, जो रबी सीजन में भी धान की फसल उगाता है। यहां रबी में करीब 30 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में धान की बुआई की जाती है। जिले में खरीफ धान की 60 से 70 प्रतिशत कटाई रिपर से हुई है, जबकि हाथों से मात्र 10 से 20 प्रतिशत।

नरवाई (पराली) का उपयोग

जिले के किसान नरवाई (पराली) या पैरा का उपयोग सदियों से विभिन्न तरीकों से करते आ रहे है। यहां पराली को पशुओं के चारे के रूप में, खाद बनाने के लिए, ऊर्जा उत्पादन के लिए, कम्पोस्ट खाद बनाने के लिए, मिट्टी की दीवार बनाने में और मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने के लिए भी किया जाता है।

पराली पशुओं को पसंद क्यूं आती है?

पराली पशुओं के लिए एक स्वादिष्ट और पोषक चारा है। बालाघाट जिले में पशुओं के भोजन का एक बड़ा हिस्सा धान की पराली ही है। यह जब यह ताज़ा-ताज़ा और हरी होती है, तो यह पशुओं को बड़ी पसंद आती है। पशु इसे बड़े चाव से खाते हैं। पराली में उच्च कोटि का फाइबर, समुचित मात्रा में प्रोटीन और अन्य पोषक तत्व भी होते हैं, जो पशुओं के शारीरिक विकास के लिए बड़े ही जरूरी होते हैं।

बालाघाट 11 लाख से अधिक पशुओं वाले जिले में शामिल

पराली बालाघाट के पशुओं का मुख्य भोजन है। इससे स्पष्ट है कि यहां धान के शेष बचे भाग का उपयोग प्रमुखता से पशुओं द्वारा ही किया जाता है। 20वीं पशु-संगणना (2018-19) के अनुसार बालाघाट जिले में करीब 11 लाख 27 हजार 416 पशु हैं। बालाघाट प्रदेश के सबसे अधिक पशुपालन (लाईव-स्टॉक) वाले 10 जिलो में से एक है।

 

India Edge News Desk

Follow the latest breaking news and developments from Chhattisgarh , Madhya Pradesh , India and around the world with India Edge News newsdesk. From politics and policies to the economy and the environment, from local issues to national events and global affairs, we've got you covered.

Related Articles

Back to top button