विवादों में क्यों है केंद्रीय जांच एजेंसियों की कार्यवाही?

डा. भरत मिश्र प्राची

देश में कालाधन पर अकुंश लगाने , भ्रष्टाचार मिटाने एवं अनियंत्रित हो रही अर्थ व्यवस्था को सही पटरी पर लाने की दिशा में सकरात्मक कदम उठाने हेतु असामाजिक तत्वों द्वारा बेशुमार एकत्रित की गई बेनामी धन दौलत की जांच एवं धर पकड़ कर कानूनी प्रक्रिया के तहत दंडित करने हेतु केन्द्रीय जांच एजेंसियों का गठन किया गया जिसका रूप एवं विस्तार समय – समय पर परिवर्तित होता रहा । प्रारम्भ में भ्रष्टाचार निवारण हेतु 1962 -1964 के बीच संथानम समिति की सिफारिश पर भारत सरकार के गृहमंत्रालय के प्रस्ताव के माध्यम से 1963 में केन्द्रीय जांच ब्यूरो अर्थात सीबीआई की स्थापना की गई। आज अर्थ अपराध की जांच हेतु देश में सीबीआई से लेकर आयकर , प्रवर्तन निदेशालय कार्यरत है। आये दिन इनके छापे की दास्तानें खबरों के मुख्य केन्द्र बिन्दु बने हुये है ।

जहां सत्ता पक्ष इसे कानूनी प्रक्रिया बता रहा है तो विपक्ष इसे सत्ता पक्ष के पावर का दुरूपयोग होते बता रहा है। इस तरह के हालात के बीच देश की केन्द्रीय जांच एजेंसिया अपना दायित्व निभा रही है। इस प्रक्रिया में जांच के दायरे में सर्वाधिक रूप से विपक्ष के आने से जांच एजेंसियों पर सत्ता पक्ष के इसारे पर एकतरफा कार्यवाही किये जाने का भी आरोप जांच एजेंसियों पर लग रहा है।

इस मामले को लेकर कांग्रेस सहित विपक्ष में खड़े देश के 14 राजनीतिक दलों की ओर से सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका भी दायर की जा चुकी है। याचिका दायर करने वालों में कांग्रेस सहित देश के प्रमुख विपक्षी राजनीतिक दल तृणमूल कांग्रस, आम आदमी पार्टी, डीएमके, आरजेडी, राष्टवादी कांग्रेस पार्टी, शिव सेना, झाारखंड मुक्ति मोर्चा, जदयू, सीपीएम,, सीपीआई, समाजवादी पार्टी, कश्मीर नेशनल काॅन्फ्रेंस प्रमुख हैं । फिलहाल जांच एजेंसियों की जांच प्रक्रिया के तहत विपक्ष के कई चर्चित चेहरे जेल की सलाखों में बंद है। कई पर जांच प्रक्रिया चल रही है। विपक्ष का आरोप है कि जब जब भी चुनाव नजदीक आता है विपक्ष को कमजोर करने के लिये सत्ता पक्ष के इसारे पर जांच एजेंसिया सक्रिय हो जाती है। जो सत्ता पक्ष से हाथ मिला लेता वह जांच प्रक्रिया से परे हो जाता है। जो अड़ा रहता वह पकड़ा जाता।

भ्रष्टाचार पर अकुंश लगना ही चाहिए। आज देश के सभी राजनीतिक दलों के सर्वाधिक राजनेताओं के पास बेसुमार धन दौलत है। जिनकी जांच होनी हीं चाहिए पर जांच सबकी होनी चाहिए। जांच प्रक्रिया में जांच एजेंसियों की यदि कार्यवाही में एकतरफा दृष्किोण नजर आता है तो जांच एजेंसियों की कार्यवाही पर उंगुली उठना स्वाभाविक है। इसे सत्ता का दुरूपयोग माना जा सकता जो लोकतंत्र के हित में कदापि नहीं।

देश में भ्रष्टाचार मौलिक अधिकार बनता जा रहा है। देश का हर सरकारी महक्मा इससे अछूता नहीं है। रेल में सफर करना हो या बस में, जमीन का पट््टा लेना हो या बेचना हो, गाड़ी चलाने के लाईसेंस बनवाने हो या पंजीकरण के कागजात पाने हो , चक्कर से बचने के लिये सभी जगह सुविधा शुल्क चुकाने पड़ते है। कोर्ट कचहारी पुलिस थाना की कहानी से कौन नहीं परिचित ? आखिर जाएं तो जाएं कहां ? सभी नेताओं के पास बेनामी धन दौलत का अम्बार है। भ्र्रष्टाचार , काला धन के विरोध में कई आंदोलन हुये , विदेश से कालाधन वापिस लाने की बात की गई पर न तो भ्रष्टाचार , कालाधन रूका न विदेश से कालाधन वापिस आया पर इसका सहारा लेकर कई सत्ता तक पहुंच गये,। कुछ सत्ता सुख,ले रहे है तो कुछ बेनामी दौलत जांच एवं भ्रष्टाचार आरोप के चलते जेल की सजा काट रहे है। आज जो सत्ता में है , कब जेल की सलाखों में कैद हो जायेंगे, कुछ कहा नहीं जा सकता। सब सत्ता पावर का गेम है। जांच एजेंसियां जब तक स्वतंत्र कार्य नहीं करेगी, इसी तरह के हालात बने रहेंगे।

India Edge News Desk

Follow the latest breaking news and developments from Chhattisgarh , Madhya Pradesh , India and around the world with India Edge News newsdesk. From politics and policies to the economy and the environment, from local issues to national events and global affairs, we've got you covered.
Back to top button