क्या ट्रंप पाकिस्तान में अपने हाथ जलाएँगे ?

● नीरज मनजीत
पाकिस्तान की मुफ़लिसी की आग में चीन अपने हाथ जलाकर उससे दूर होने की कोशिश कर रहा है। अब हाथ जलाने की बारी डोनाल्ड ट्रंप और अमेरिका की है। हाल के वर्षों में हम देख रहे हैं कि वैश्विक समुदाय में कूटनीतिक साझेदारियां सीधे तौर पर यू टर्न ले रही हैं। डोनाल्ड ट्रंप ने भी एक सीधा यू टर्न मारा है। ज़्यादा दिन नहीं हुए जनवरी 2018 में डोनाल्ड ट्रंप ने एक्स अकाउंट में लिखा था कि– “पिछले 15 वर्षों से अमेरिका ने मूर्खतापूर्ण तरीके से पाकिस्तान को 33 बिलियन डॉलर यानी 2.9 लाख करोड़ रुपए से अधिक की मदद की है। उन्होंने हमारे नेताओं को मूर्ख समझा और हमें झूठ व धोखे के अलावा कुछ नहीं दिया। वे उन आतंकवादियों को सुरक्षित पनाह देते हैं, जिनकी तलाश हम अफगानिस्तान में कर रहे हैं। अब और नहीं!”
डोनाल्ड ट्रंप ने उस मोटी रकम का हिसाब लगाया था, जो अमेरिका ने अफ़ग़ानिस्तान में सेना उतारने के बाद पाकिस्तान को दी है। उन लाखों करोड़ रुपयों और अनगिनत मिठाई के डिब्बों का तो कोई हिसाब ही नहीं है, जो पाकिस्तान को शीत युद्ध के 40 वर्षों के दौर में वाशिंगटन से भेजे गए थे। लगता है डोनाल्ड ट्रंप यह सबकुछ भूल चुके हैं। पाकिस्तान की हक़ीक़त जानते-बूझते हुए ट्रंप अमेरिका को उसी जाल में फँसा रहे हैं। हाल के दिनों में ट्रंप दो बार पाक आर्मी चीफ आसिम मुनीर को वाशिंगटन बुलाकर उन्हें गले लगा चुके हैं। पहली बार तो बाक़ायदा व्हाइट हाउस के बाहर से मुनीर का इस्तक़बाल करते हुए वे उन्हें लंच टेबल तक तक ले गए थे। एक से ज़्यादा बार वे पाकिस्तान को महान देश बताकर पाक हुक्मरानों का अहम भी सहला चुके हैं।
ट्रंप ने अब एक नया शिगूफ़ा छोड़ा है। वे कह रहे हैं कि बलूचिस्तान के ज़मीनी और कराची के पास के समुद्री इलाक़े में स्थित तेल भंडारों में से कच्चा तेल निकालने में वे पाकिस्तान की मदद करने जा रहे हैं। इसके लिए उन्होंने अमेरिका की कई ड्रिलिंग कंपनियों को भी तैयार कर लिया है। ज़ाहिर है कि ड्रिलिंग में ख़र्च होने वाली करोड़ों डॉलर की मोटी रकम ये कंपनियां ही अपनी जेब से निकलेंगी, क्योंकि मुफ़लिस पाकिस्तान के पास तो कुछ है नहीं। पाकिस्तान को वे दिवास्वप्न दिखा रहे हैं कि एक दिन भारत भी पाकिस्तान से तेल ख़रीदेगा।
अमेरिका के इस प्रस्ताव से अभिभूत आसिम मुनीर चापलूसी करते हुए कह रहे हैं कि ट्रंप को नोबेल शांति पुरस्कार मिलना चाहिए। हालाँकि मुमकिन है कि यह सबकुछ ट्रंप एक क्रुद्ध बच्चे की तरह भारत को चिढ़ाने के लिए कह रहे हों, पर मुनीर को ग़रीबी और जहालत से जूझते पाकिस्तानी अवाम को भरमाए रखने का एक सबब मिल गया है। जहाँ तक भारत की बात है, उसे पाकिस्तान के तेल की जरूरत कभी नहीं पड़ेगी। सबसे बड़ी बात यह है कि पाकिस्तान के अधिकांश लोग मानते हैं कि तेल कहीं है ही नहीं। आसिम मुनीर ने अमेरिका से इमदाद हासिल करने के लिए ट्रंप से झूठ बोला और ट्रंप ने उसे लपक लिया।
प्रधानमंत्री मोदी ने पिछले दिनों सही कहा था कि पाकिस्तान एक परजीवी देश है। आज़ादी के बाद से पाकिस्तान पहले अमेरिका और उसके बाद चीन पर इस क़दर आश्रित रहा है कि उसके अंदर अपने पैरों पर खड़े होने की ताक़त ही नहीं बची है। सोवियत संघ के विभाजन और शीतयुद्ध की समाप्ति के बाद अमेरिका को पाकिस्तान की जरूरत नहीं रह गई थी। इधर भारत और अमेरिका के बीच रिश्ते मधुर और गर्मजोश हो रहे थे। मई 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली सरकार ने पोखरण में पाँच परमाणु परीक्षण किए। इसके फ़ौरन बाद इसी महीने पाकिस्तान ने भी चगाई में परमाणु परीक्षण कर दिए। ज़ाहिर सी बात थी कि ये परीक्षण चीन की गुपचुप मदद से ही किए गए थे। यहाँ से ही पाकिस्तान चीन की गोद में जा बैठा।
2014 में जब मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी, तो चीन और पाकिस्तान की रणनीतिक साझेदारी में जबर्दस्त इज़ाफ़ा हुआ। यह साझेदारी पूरी तरह एकतरफ़ा थी और मोटी रकम चीन की ही फँस रही थी। हालाँकि प्रधानमंत्री मोदी ने चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग को अहमदाबाद और मल्लापुरम बुलाकर आपसी रिश्तों में मिठास लाने की पूरी कोशिश की, पर जिनपिंग ने दबाव की कूटनीति के तहत पाकिस्तान को इमदाद देना जारी रखी। इस अजीबोग़रीब बेमेल साझेदारी में मस्ती का आलम यह था कि 2015 में शी जिनपिंग ने पाकिस्तान के दौरे में संसद को संबोधित करते हुए इसे “सदाबहार रणनीतिक साझेदारी” या “हर मौसम में साथ देने वाली दोस्ती” कह दिया। इसी प्रवास में चीन की महत्वाकांक्षी परियोजना “सीपेक” यानी “चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारे” की शुरुआत की गई। पाकिस्तान के राष्ट्रपति आरिफ अल्वी ने दोनों देशों की दोस्ती को “समंदर से गहरा, पर्वत से ऊंचा और शहद से मीठा” बताया था।
आज हालत यह है कि सीपेक का काम पूरी तरह रुका हुआ है, रिश्तों में कड़वाहट घुल चुकी है और चीन की मोटी रकम डूबने का ख़तरा पैदा हो गया है। तालिबानी आतंकियों के हमलों और बलूचिस्तान के बाशिंदों के विद्रोह की वजह से चीनी इंजीनियर और कामगार वहाँ जाने से डर रहे हैं। चीन ने पाकिस्तान की विभिन्न परियोजनाओं में 65 अरब डॉलर यानी साढ़े पांच लाख करोड़ रुपयों से ज़्यादा का निवेश किया हुआ है। इसके अलावा चीन ने पाकिस्तान को 3.4 अरब डॉलर यानी तक़रीबन दो हजार नौ सौ करोड़ रुपए कर्ज़ के रूप में दिए हैं।पाकिस्तान को तो कर्ज़ लेकर घी पीने की पुरानी आदत है। नुक़सान तो चीन को उठाना पड़ेगा।
आईएमएफ, वर्ल्ड बैंक और एशियाई डेवेलपमेंट बैंक से उसने अरबों डॉलर का कर्ज़ ले रखा है। अब डोनाल्ड ट्रंप पाकिस्तान पर मेहरबान हुए हैं। यानी पाकिस्तान की परजीविता कभी ख़त्म नहीं होगी। इधर भारत-चीन-रूस के त्रिगुट का स्वप्न साकार होता दिखाई दे रहा है। डोनाल्ड ट्रंप की अजीबोग़रीब कूटनीति की वजह से इस त्रिगुट में अकस्मात ही हलचल बढ़ गई है। पिछले हफ़्ते हमारे विदेश मंत्री एस जयशंकर ने रूस का दौरा किया है। मॉस्को में उन्होंने राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव से भेंट करके आपसी संबंधों और कारोबारी रिश्तों को मजबूत करने, उन्हें आगे बढ़ाने पर कई स्तरों की सार्थक वार्ता की है। जयशंकर की रूस यात्रा ऐसे वक़्त में हुई है, जब डोनाल्ड ट्रंप भारत पर एकतरफ़ा टैरिफ़ थोपकर दबाव डाल रहे हैं।
इसी हफ़्ते चीन के विदेश मंत्री वांग यी भी भारत के दौरे पर थे। वांग यी ने नई दिल्ली प्रवास के दौरान प्रधानमंत्री मोदी, एस जयशंकर सहित भारत के सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल से मुलाकात की है। 31 अगस्त को पीएम मोदी शंघाई सहयोग संगठन की शिखर बैठक में शामिल होने बीजिंग जाएँगे। वहाँ रूस के राष्ट्रपति पुतिन भी होंगे। ज़ाहिर है कि सारी दुनिया की निग़ाहें इस शिखर बैठक पर लगी होंगी, जब दुनिया तीन महाशक्तियां आपस में मिल बैठेंगी।