पाक, बांग्लादेश, तुर्की और इंडोनेशिया जैसे 8 मुस्लिम देशों के संगठन की कल मीटिंग होनी है, पर सऊदी अरब ने दे दिया झटका

रियाद, तेल अवीव
पाकिस्तान, बांग्लादेश, तुर्की और इंडोनेशिया जैसे 8 मुस्लिम देशों के संगठन की गुरुवार को मीटिंग होनी है। यह मिस्र में होनी है और इसमें इजरायल के खिलाफ प्रस्ताव पेश किए जाने की तैयारी है। इस बीच दुनिया के सबसे ताकतवर मुस्लिम मुल्क की पहचान रखने वाले सऊदी अरब ने बड़ा झटका दिया है। सऊदी अरब की इजरायल के साथ बैकडोर से बातचीत जारी है और कहा जा रहा है कि संबंध सामान्य करने को लेकर एक डील भी हो सकती है। सूत्रों का कहना है कि सऊदी अरब ने बस एक शर्त रख दी है कि यदि गाजा में जंग रुक जाए तो फिर इजरायल के साथ संबंधों को आगे बढ़ाया जा सकता है। बातचीत की यह पूरी प्रक्रिया डोनाल्ड ट्रंप के माध्यम से चल रही है।

येरूशलम पोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान की लीडरशिप में एक प्रतिनिधिमंडल की डोनाल्ड ट्रंप के करीबियों से मुलाकात हुई थी। खासतौर पर ट्रंप की ओर से मध्य पूर्व के लिए दूत घोषित किए गए स्टीव विटकॉफ इस मीटिंग में मौजूद थे। बैठक में सऊदी अरब ने साफ किया कि यदि गाजा में युद्ध को खत्म कर दिया जाए तो फिर सऊदी अरब संबंध सामान्य करने के लिए तैयार है। यही नहीं सऊदी अरब का कहना है कि अमेरिका की ओर से फिलिस्तीन को लेकर बयान जारी किया जाए। ऐसा होने पर उसके लिए संबंधों को सामान्य करने की दिशा में आगे बढ़ना आसान होगा। इस तरह तुर्की, इंडोनेशिया, पाकिस्तान, बांग्लादेश और ईरान जैसे इस्लामिक देशों से अलग ही राह पर सऊदी अरब बढ़ रहा है।

उसने अब तक गाजा पर इजरायली हमलों को लेकर औपचारिक निंदा ही की है, लेकिन कोई ठोस प्रस्ताव नहीं लाया। यही नहीं अब संबंधों को आगे बढ़ाने की पहल से भी साफ कर दिया है कि वह गाजा की बजाय अपने आर्थिक हितों को ज्यादा प्राथमिकता दे रहा है। सऊदी और इजरायल के रिश्तों की समझ रखने वाले इसके पीछे कई कारण गिनाते हैं। जानकारों का कहना है कि सऊदी अरब नहीं चाहता कि मजहब के नाम पर ध्रुवीकरण की वैश्विक राजनीति में वह फंसे। इसकी जगह पर वह विजन 2030 में जुटा है ताकि इजरायल, अमेरिका जैसे देशों से निवेश हासिल किया जा सके। सऊदी अरब की विजन 2030 के पीछे यह नीति है कि तेल की सप्लाई से इतर भी अर्थव्यवस्था खड़ी की जा सके। ऐसी स्थिति में उसके लिए इजरायल, अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन जैसे देशों से संबंध मधुर रखना अहम है।

इजरायल के हथियारों की भी सऊदी अरब को जरूरत
सऊदी अरब का एक और मकसद इजरायल से हथियारों की खरीद भी है। सऊदी अरब चाहता है कि वह इजरायल के मिसाइल डिफेंस सिस्टम आयरन डोम को खरीद ले। यही नहीं अब भी सऊदी अरब इजरायल में तैयार स्पाईवेयर का इस्तेमाल करता है। इनकी मदद से वह किंगडम के विरोधियों पर नजर रखता है। यही नहीं कहा जाता है कि 2020 में अब्राहम अकॉर्ड वाली पहल के पीछे भी सऊदी अरब का हाथ था। वह चाहता है कि इजरायल से कड़वाहट को भुलाकर संबंध सामान्य किए जाएं ताकि देश में आर्थिक प्रगति पर फोकस किया जा सके।

India Edge News Desk

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