बस्तर के जीवट लोग अब चुनाव का उत्सव मनाने को तैयार, अतिसंवेदनशील गांवों में करीब 40 साल बाद होंगे पंचायत चुनाव

जगदलपुर

बस्तर संभाग के सात जिलों की तस्वीर बदल रही है। पहले इन जिलों में वोट डालने पर नक्सली अंगुली काटने की धमकी देते थे। अब वहां चुनाव प्रचार का शोर सुनाई दे रहा है। इन जिलों के अतिसंवेदनशील गांवों में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव को लेकर प्रत्याशियों का प्रचार अभियान जोर पकड़ चुका है।

नक्सलियों के प्रभाव वाले इन क्षेत्रों में दो साल के भीतर 40 से अधिक नवीन सुरक्षा कैंप स्थापित किए गए हैं। क्षेत्र में शांति लौटी है। नक्सलवाद अंतिम सांसे गिन रहा है। लोकतंत्र मजबूत हो रहा है। नक्सली धमकी और डर को लोग दरकिनार कर चुके हैं।

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बस्तर के जीवट लोग अब चुनाव का उत्सव मनाने को तैयार हैं। बस्तर संभाग की कुल 1,855 पंचायतों में तीन चरणों में 17, 20 और 23 फरवरी को चुनाव होने हैं।

सड़क से जुड़ा पामेड़, अब चुनाव का उत्साह
बीजापुर जिले के अतिसंवेदनशील गांव पामेड़ में प्रचार अभियान जोरों पर है। इसी माह पामेड़ को बीजापुर जिले से जोड़ कर यहां तक बस सेवा शुरू की गई है। इससे बीजापुर जिला मुख्यालय से पामेड़ की दूरी 100 किमी कम हुई है। पहले महाराष्ट्र से होकर गांव तक जाना पड़ता था।

बॉर्डर रोड आर्गेनाइजेशन (बीआरओ) यहां पक्की सड़क का निर्माण कर रहा है। पामेड़ के लोग इस बात को लेकर उत्साहित है और वे अब गांव का विकास चाह रहे हैं।

बीजापुर कलेक्टर संबित मिश्रा ने बताया कि जिले में 50 से अधिक अतिसंवेदनशील मतदान केंद्र हैं, जहां इस बार चुनाव होने हैं। अंदरूनी क्षेत्रों में नवीन सुरक्षा कैंपों की स्थापना के बाद गांव का विकास होने से लोगों में लोकतंत्र पर भरोसा बढ़ा है।

हिड़मा के गांव के लोग पहली बार देंगे वोट
सुकमा जिले में नक्सली कमांडर हिड़मा के गांव पूवर्ती में इस बार मतदान होगा। पिछले विधानसभा और लोकसभा चुनाव में यहां के लोगों ने विस्थापित मतदान केंद्र सिलगेर में मतदान किया था। गांव के माड़वी मंगू ने बताया कि गांव के लोग चुनाव को लेकर उत्साहित हैं।

ग्रामीण अब अपने गांव में सड़क, बिजली, पानी की सुविधा चाहते हैं। आस-पास के गांव में नवीन सुरक्षा कैंप आने के बाद हुए बदलाव से लोग प्रभावित हैं और लोगों का लोकतंत्र पर भरोसा मजबूत हुआ है।

सुकमा कलेक्टर देवेश ध्रुव ने बताया कि सुकमा जिले में 60 संवेदनशील और 25 अंति संवेदनशील पंचायतों में भी इस बार चुनाव होने हैं। नए सुरक्षा कैंपों के खुलने के बाद से नक्सली इन क्षेत्रों से पीछे हटे हैं, जिससे इन पंचायतों में करीब 40 साल बाद चुनाव होंगे।

हत्याओं के बावजूद उत्साह
बस्तर में पिछले दो वर्ष में सुरक्षा बल निर्णायक लड़ाई लड़ रहा है। लोकतंत्र की स्थापना होते देख नक्सलियों ने राजनेताओं की लक्षित हत्याएं की हैं। सबसे अधिक निशाने पर भाजपा नेता रहे हैं। पिछले विधानसभा चुनाव से लेकर अब तक एक दर्जन भाजपा नेताओं की हत्या की गई है। इसके बावजूद पंचायत चुनाव को लेकर ग्रामीणों में उत्साह है।

 

India Edge News Desk

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