पर्यावरण संरक्षण मण्डल : पर्यावरण जागरूकता को लेकर हो रहा है बड़ा काम

इंडिया एज न्यूज नेटवर्क

हर साल पर्यावरण दिवस मनाया जाता है और पर्यावरण को बचाने के संकल्प होते हैं। इस दिशा में पहल भी की जाती है और उनका असर भी दिखता है लेकिन दुनिया में तेजी से हो रहे विकास के साथ ही पर्यावरण को संतुलित रख पाने की हमारी कोशिश पूरी तरह मुकम्मल नहीं हो पा रही। दुनिया के कुछ इलाकों में अब ऐसी स्थिति है कि पर्यावरण वेंटीलेटर में है। हमारे देश में भी दिल्ली जैसे अनेक क्षेत्रों में घने कोहरे के दिनों में अलर्ट जैसी स्थिति होती है। यह बहुत कठिन समय है और जिस तेजी से विकास हो रहा है पर्यावरण प्रदूषण का स्तर भी उसी तेजी बढ़ने की आशंका बनती है।

ऐसे में जब तक पर्यावरण के संबंध में गहरी जमीनी सोच से काम नहीं होगा तब तक बेहतर नतीजों की संभावनाएं नहीं जन्म लेंगी। ऐसे में छत्तीसगढ़ शासन ने नरूवा, गरूवा, घुरूवा, बाड़ी के रूप में पर्यावरण और विकास दोनों को साधने वाला नारा गढ़ा है और जमीनी स्तर पर इस पर काम भी शुरू हो गया है।

फर्टिलाइजर हमारी जमीन की ऊर्वरता को नष्ट कर रहे हैं। कुछ समय बाद हमारी जमीन बंध्या हो जाएगी। गरूवा के संरक्षण से और घुरूवा निर्माण से जमीन संरक्षित होगी, पशुधन का विकास होगा। घुरूवा के संवर्धन से जो गोबर खाद बनाया जाएगा, इससे ग्रामीण आजीविका मजबूत होगी। इससे शहरीकरण भी रूकेगा। ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बल मिलेगा तो गांव भी गुलजार होंगे और हम परंपरागत सुखद जीवन की ओर आधुनिक जीवनशैली के साथ संतुलन बनाते हुए कार्य कर सकेंगे।

वन तथा आवास एवं पर्यावरण मंत्री श्री मोहम्मद अकबर का कहना है कि हमारे पूर्वजों ने विरासत में स्वस्थ्य और स्वच्छ वातावरण सौंपा है। हम सब का दायित्व है कि उसे और बेहतर बनाते हुए भावी पीढ़ी को सौंपें। उन्होंने वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए प्राकृतिक संपदाओं का आवश्यकतानुसार और विवेकपूर्ण उपयोग पर विशेष बल दिया।

छत्तीसगढ़ सरकार का दूसरा सार्थक प्रयास नदियों के पुनरूद्धार अभियान को लेकर चल रहा है। हमारी प्राणदायिनी नदियां धीरे-धीरे प्रदूषण का शिकार होकर मृतप्राय हो रही हैं। तेजी से पनपते शहरीकरण से इनके किनारों की हरियाली भी घटी है। राज्य स्तरीय रिवर रिज्यूवनेशन कमेटी का गठन कर इन नदियों के संरक्षण का प्रयास किया जा रहा है। इनमें मिलने वाली नालों के पानी का सीवरेज ट्रीटमेंट एवं स्थानीय स्तर पर हरियाली को बढ़ावा देकर इन नदियों को पुनरूद्धार किया जा सकेगा।

देश सहित छत्तीसगढ़ के वायु मण्डल में सबसे बड़ा खतरा बढ़ता कार्बन का प्रतिशत है। प्रो. शम्स परवेज के अनुसार ‘इसका प्रमुख कारण लाखों टन लो ग्रेडेड कोयलों का प्रतिदिन दहन होना और खुले में कचरा जलाया जाना है। जिससे स्वाभाविक रूप से वायुमंडल में कार्बन का स्तर बढ़ रहा है।‘ अच्छी बात यह है कि छत्तीसगढ़ पर्यावरण संरक्षण मंडल द्वारा इसे रोकने के लिए पर्याप्त कदम उठाये गए हैं। कार्बन सहित अन्य प्रदूषित तत्वों पर रोक लगाने एवं चिमनी उत्सर्जन की निगरानी रखने 17 प्रकार के वायु प्रदूषकों को नियंत्रित रखने में 163 उद्योगों में आनलाईन इमीशन मानिटरिंग सिस्टम की स्थापना की गई है। सभी रोलिंग मिलों में भी आनलाइन इमीशन सिस्टम लगाया गया है। डाटा मानिटरिंग एवं डिस्प्ले हेतु चिप्स के माध्यम से डैशबोर्ड विकसित करने की कार्रवाई की जा रही है। वायु प्रदूषण में कमी लाने हेतु 102 आनलाइन कंटीन्यूअस एम्बियंट एयर क्वालिटी मानिटरिंग स्टेशन स्थापित किए गए हैं। रायपुर में सतत् परिवेशीय वायु गुणवत्ता की निगरानी के लिए 2 अतिरिक्त स्टेशनों की स्थापना की जा रही है।
छत्तीसगढ़ पर्यावरण संरक्षण मंडल द्वारा प्रदेश में स्थापित उद्योगों के रियल टाइम आनलाईन एमिशन मानिटरिंग डाटा प्राप्त कर उद्योगों के प्रदूषण पर निगरानी की जा रही है। उल्लंघन करने वाले उद्योगों पर तत्काल कार्रवाई की जा रही है। तत्काल कार्यवाही के लिए सेंट्रल सर्वर की स्थापना की जा रही है। पटाखों के माध्यम से भी प्रदूषण फैलता है, इसलिए 1 दिसम्बर से 31 जनवरी की अवधि में पटाखों के जलाने पर रायपुर, भिलाई, दुर्ग, बिलासपुर, कोरबा तथा रायगढ़ आदि शहरों में प्रतिबंध लगाया गया हैं, जिसके प्रभावी परिणाम देखने को मिले।

प्लास्टिक वेस्ट डिस्पोजल बड़ी समस्या है। कहते हैं कि प्लास्टिक को स्वतः नष्ट होने में सैकड़ों बरस का समय लग जाता है। इसलिए पूरे राज्य में प्लास्टिक कैरी बैग, शार्ट लाइफ, पीवीसी, क्लोरिनेटेड आइटम तथा पीवीसी प्लास्टिक आइटम केे उपयोग पर आवश्यक प्रतिबंध लगाया गया है।

निर्माण कार्य वाले स्थलों में भारी मात्रा में डस्ट उत्पन्न होती है। ऐसे स्थलों को घेरने, जाली से कवर करने, जल छिड़काव, करने एवं निर्माण सामग्रियों को ढंके हुए वाहनों में परिवहन कराया जाना सुनिश्चित किया जा रहा है। फ्लाइऐश बड़ी समस्या है लेकिन अब इसका संसाधन के रूप में उपयोग हो रहा है।

बीते दिनों अखबारों में और टेलीविजन में सैटेलाइट तस्वीरें प्रकाशित-प्रसारित की गई थीं जिसमें हरियाणा और पंजाब में फसल अपशिष्ट जलाने से वायुमंडल में आए प्रभाव को दिखाया गया था। ऐसे कुप्रभावों को देखते हुए छत्तीसगढ़ में इसे प्रतिबंधित कर दिया गया है और इसका सख्ती से अनुपालन सुनिश्चित किया जा रहा है। प्रदेश में नगरीय ठोस अपशिष्ट खुले में जलाना प्रतिबंधित है। रायपुर, भिलाई एवं कोरबा में वायु गुणवत्ता के सुधार हेतु राज्यस्तरीय मानिटरिंग कमिटी का गठन किया गया है।

मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल के निर्देश पर प्रदेश में नरवा कार्यक्रम के सुचारू संचालन, अनुश्रवण एवं नरवा विकास के कार्यों को गति प्रदान करने तथा पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग एवं जलवायु परिवर्तन विभाग द्वारा नरवा विकास के किए जा रहे कार्यों में समन्वय स्थापित करने के लिए वन एवं जलावायु परिवर्तन विभाग के अपर मुख्य सचिव श्री सुब्रत साहू की अध्यक्षता में सात सदस्यीय ‘नरवा मिशन’ का गठन किया गया है।

पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के सचिव श्री आर. प्रसन्ना, प्रधान मुख्य वन संरक्षक एवं वन बल प्रमुख श्री राकेश चतुर्वेदी, अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक एवं मुख्य कार्यपालन अधिकारी कैम्पा श्री व्ही. श्रीनिवास राव, अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक (संयुक्त वन प्रबंधन) श्री अरूण कुमार पाण्डेय, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार मिशन के आयुक्त श्री मोहम्मद अब्दुल कैसर हक, नरवा-गरवा-घुरवा-बाड़ी एवं छत्तीसगढ़ गोधन न्याय योजना के नोडल अधिकारी डॉ. तंबोली अय्याज फकीर भाई और महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार मिशन के मुख्य अभियंता श्री नारायण निमजे नरवा मिशन के सदस्य होंगे।

गौरतलब है कि प्रदेश में ‘नरवा कार्यक्रम’ मुख्यतः पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग तथा वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग द्वारा संचालित किया जा रहा है। ‘नरवा कार्यक्रम’ में छोटे-छोटे भूमिगत डाइक जैसे संरचनाओं की मदद से नालों को निरंतर बहने वाला सदानीरा नाला बनाते हुए नालों के जल द्वारा भूमिगत जल को रिचार्ज करने का लक्ष्य रखा गया है।

इस कार्यक्रम से छत्तीसगढ़ में सिंचित क्षेत्र बढ़ेगा और अधिकांश जगह कृषि के लिए जल उपलब्ध होगा। निस्तार के लिए भी पानी की कमी की समस्या काफी हद तक दूर हो सकेगी। साथ ही जैव विविधता (बायो डायवर्सिटी) का संवर्धन होगा। पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग द्वारा अपने विभागाध्यक्ष कार्यालय के माध्यम से संचालित ‘नरवा कार्यक्रम’ की अपर मुख्य सचिव पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग मॉनिटरिंग-समीक्षा करेंगे तथा वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग की ओर से किए जा रहे नरवा विकास के कार्यों की समीक्षा एवं कार्यक्रम का क्रियान्वयन पूर्ववत प्रधान मुख्य वन संरक्षक एवं वन बल प्रमुख द्वारा ही किया जाएगा।

नरवा विकास कार्यक्रम के तहत प्रदेश के लगभग 30 हजार नालों को रिचार्ज करने के लिए चयनित किया गया है। प्रथम चरण में 9541 नरवा के उपचार की स्वीकृति दी गई है। नालों का उपचार करने के लिए नरवा विकास कार्यक्रम के तहत नालों में वर्षा के जल को रोकने हेतु लूज बोल्डर चेक, चेकडेम, गली प्लग, कंटूर ट्रेंच, स्टाप डेम सहित अन्य संरचनाओं का निर्माण किया जा रहा है। उपचारित नालोें में अब गर्मी के दिनों में भी पानी रहता है। इससे निस्तार, पेयजल और सिंचाई के लिए जल की उपलब्धता बढ़ी है और क्षेत्र में भू-जल स्तर में भी बढ़ोत्तरी हो रही है।

मण्डल द्वारा प्रमुख शहरों में नगरीय ठोस अपशिष्ट के प्रबंधन के लिए सेनेटरी लैण्डफिल फेसिलिटी की स्थापना की जा रही है। साथ ही प्रमुख शहरों में सिवरेज ट्रिटमेंट प्लांट की स्थापना के निर्देश दिए गए है।

बच्चों में पर्यावरण के संबंध में जागरूकता बेहद अहम है। छत्तीसगढ़ में इसे लेकर बड़ा काम हो रहा है। पर्यावरण संरक्षण मण्डल की पहल पर 6750 स्कूलों में इको क्लब का गठन किया गया है और लगभग छह लाख बच्चे पर्यावरण संरक्षण अभियान से जुड़े हुए हैं।
किए गए प्रयासों से अच्छे नतीजे भी मिल रहे है। 15 अप्रैल से 21 अप्रैल तक इस साल और पिछले वर्ष के वायु गुणवत्ता सूचकांक के आंकड़ों की तुलना की गई। छत्तीसगढ़ पर्यावरण संरक्षण मंडल के अनुसार पिछले वर्ष की तुलना में इस बार बिलासपुर में 24.58 प्रतिशत, कोरबा में 20.12 प्रतिशत, रायपुर में 0.21 प्रतिशत और भिलाई में 1.30 प्रतिशत की प्रदूषण में कमी दर्ज की गई है। 22 से 28 अप्रैल के मध्य भिलाई में 0.06 प्रतिशत, बिलासपुर में 36.89 प्रतिशत, कोरबा में 51.44 प्रतिशत तथा रायपुर में 0.36 प्रतिशत प्रदूषण में गिरावट आई। इसी प्रकार पिछले वर्ष की तुलना में 20 मई से 26 मई के मध्य भिलाई में 0.48 प्रतिशत, बिलासपुर में 24.62 प्रतिशत, कोरबा में 13.27 प्रतिशत और 27 मई से 2 जून के मध्य भिलाई में 0.37 प्रतिशत और बिलासपुर में 24.96 प्रतिशत, रायपुर में 0.43 प्रतिशत तथा रायगढ़ में 8.90 प्रतिशत की प्रदूषण में कमी दर्ज की गई है।

अपने परिवेश को बेहतर करने की जिम्मेदारी केवल शासन की नहीं है। नागरिक के रूप में हम सबकी हिस्सेदारी के बगैर यह संभव नहीं है। अनावश्यक बिजली का खर्च न करें। सबसे जरूरी काम पौधे लगाएं। हमें सामाजिक वानिकी और कृषि वानिकी के साथ-साथ अर्बन फॉरेस्ट विकसित करने की आवश्यकता है।

हमको ईश्वर ने प्रकृति की सुंदर संपदा दी है। हमारा भी कर्तव्य है कि प्रकृति को इसका कुछ अंश वापस करें। आपके द्वारा लगाया गया और पोषित किया गया एक-एक पौधा प्रकृति के लिए संजीवनी का कार्य करेगा।

 

India Edge News Desk

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