पार्वती की कविताओं के भीतर एक जीवंत दुनिया.

पार्वती की कविताओं के भीतर एक जीवंत दुनिया.    

राँची 
 हिन्दी कविता की युवतम पीढ़ी में पार्वती तिर्की का स्वर अलग से पहचाना जा सकता है। उनकी कविताओं में आदिवासी जीवन-दृष्टि, प्रकृति और सांस्कृतिक स्मृतियों का वह रूप सामने आता है, जो अब तक मुख्यधारा के साहित्य में बहुत कम दिखाई देता रहा है। झारखंड के कुडुख आदिवासी समुदाय से आनेवाली कवि पार्वती तिर्की को उनके कविता-संग्रह ‘फिर उगना’ के लिए साहित्य अकादेमी युवा पुरस्कार 2025 से सम्मानित किए जाने की घोषणा हुई है। यह न केवल उनके रचनात्मक योगदान का सम्मान है, बल्कि हिन्दी कविता के निरन्तर समृद्ध होते हुए भूगोल और अनुभव संसार के विस्तार की स्वीकृति भी है।

कविताओं के माध्यम संवाद की कोशिश
इस अवसर पर पार्वती तिर्की ने कहा, मैंने कविताओं के माध्यम से संवाद की कोशिश की है। मुझे खुशी है कि इस संवाद का सम्मान हुआ है। संवाद के जरिए विविध जनसंस्कृतियों के मध्य तालमेल और विश्वास का रिश्ता बनता है। इसी संघर्ष के लिए लेखन है, इसका सम्मान हुआ है तो आत्मविश्वास बढ़ा है।

‘फिर उगना’ पार्वती तिर्की की पहली काव्य-कृति है जो वर्ष 2023 में राधाकृष्ण प्रकाशन से प्रकाशित हुई थी। इस संग्रह की कविताएँ सरल, सच्ची और संवेदनशील भाषा में लिखी गई हैं, जो पाठक को सीधे संवाद की तरह महसूस होती हैं। वे जीवन की जटिलताओं को बहुत सहज ढंग से कहने में सक्षम हैं। इन कविताओं में धरती, पेड़, चिड़ियाँ, चाँद-सितारे और जंगल सिर्फ़ प्रतीक नहीं हैं—वे कविता के भीतर एक जीवंत दुनिया की तरह मौजूद हैं।

पार्वती तिर्की अपनी कविताओं में बिना किसी कृत्रिम सजावट के आदिवासी जीवन के अनुभवों को कविता का हिस्सा बनाती हैं। वे आधुनिक सभ्यता के दबाव और आदिवासी संस्कृति की जिजीविषा के बीच चल रहे तनाव को भी गहराई से रेखांकित करती हैं। उनका यह संग्रह एक नई भाषा, एक नई संवेदना और एक नए दृष्टिकोण की उपस्थिति दर्ज़ कराता है।

युवा प्रतिभा का सम्मान हमारे लिए गर्व की बात
इस उपलब्धि पर राजकमल प्रकाशन समूह के अध्यक्ष अशोक महेश्वरी ने कहा, पार्वती तिर्की का लेखन यह साबित करता है कि परम्परा और आधुनिकता एक साथ कविता में जी सकती हैं। उनकी कविताएँ बताती हैं कि आज हिन्दी कविता में नया क्या हो रहा है और कहाँ से हो रहा है। उनको साहित्य अकादेमी युवा पुरस्कार से सम्मानित किया जाना इस बात की पुष्टि करता है कि कविता का भविष्य सिर्फ़ शहरों या स्थापित नामों तक सीमित नहीं है, बल्कि वह वहाँ भी जन्म ले रही है जहाँ भाषा, प्रकृति और परम्परा का रिश्ता अब भी जीवित है। यह हमारे लिए गर्व की बात है कि ऐसी युवा प्रतिभा की पहली कृति का प्रकाशन हमने किया है। 

उन्होंने कहा, पार्वती तिर्की वर्ष 2024 में राजकमल प्रकाशन के सहयात्रा उत्सव के अंतर्गत आयोजित होनेवाले ‘भविष्य के स्वर’ विचार-पर्व में वक्ता भी रह चुकी हैं। ऐसे स्वर को साहित्य अकादेमी युवा पुरस्कार जैसा प्रतिष्ठित पुरस्कार मिलना सुखद है। इस महत्वपूर्ण उपलब्धि पर मैं उन्हें राजकमल प्रकाशन समूह की ओर से हार्दिक बधाई देता हूँ। हम आशा करते हैं कि यह सम्मान नई पीढ़ी के लेखकों को प्रेरित करेगा और आने वाले समय में उनके जैसे नए स्वर साहित्य में और अधिक स्थान पाएंगे।
पार्वती तिर्की का जन्म 16 जनवरी 1994 को झारखंड के गुमला जिले में हुआ। उनकी आरंभिक शिक्षा जवाहर नवोदय विद्यालय, गुमला में हुई। इसके बाद उन्होंने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी से हिन्दी साहित्य में स्नातक और स्नातकोत्तर शिक्षा प्राप्त की और उसके बाद वहीं के हिन्दी विभाग से ‘कुडुख आदिवासी गीत : जीवन राग और जीवन संघर्ष’ विषय पर पी-एच.डी. की डिग्री हासिल की।

पार्वती की विशेष अभिरुचि कविताओं और लोकगीतों में है। वे कहानियाँ भी लिखती हैं। उनकी रचनाएँ हिन्दी की अनेक प्रतिष्ठित पत्रिकाओं और वेब-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं। वर्ष 2024 में वे राजकमल प्रकाशन द्वारा आयोजित ‘भविष्य के स्वर’ कार्यक्रम की वक्ता रही हैं।
उनका पहला कविता-संग्रह ‘फिर उगना’ वर्ष 2023 में राधाकृष्ण प्रकाशन से प्रकाशित हुआ। इस संग्रह को हिन्दी कविता के समकालीन परिदृश्य में एक नई और ज़रूरी आवाज़ के रूप में देखा गया है।
वर्तमान में पार्वती तिर्की, राम लखन सिंह यादव कॉलेज (राँची विश्वविद्यालय), हिन्दी विभाग में सहायक प्राध्यापक के रूप में कार्यरत हैं।

India Edge News Desk

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