भूख का कोई धर्म नहीं होता

चन्द्र प्रभा सूद

भूख बहुत ही भयानक होती है, उसका कोई धर्म नहीं होता। यह भूख एक अभिशाप है। इस भूख के कारण लोग अनाप-शनाप कार्य करने से नहीं घबराते। भूख के कारण मनुष्यों को कुत्ते-बिल्लियों की तरह लड़ते-झगड़ते हुए अपने आसपास देखा जा सकता है।

इस संसार में पेट की भूख को शान्त करने के लिए मनुष्य तो क्या पशु-पक्षी भी अथक परिश्रम करते हैं। अन्न न मिलने पर उसके अभाव में दम तोड़ते हुए भी दिखाई दे जाते हैं।
आज हमारे देश की पचास प्रतिशत आबादी गरीबी रेखा से नीचे रहती है। ये वे लोग हैं जिन्हें दो समय का खाना भी नसीब नहीं होता। कितने और ऐसे भी लोग हैं जो कई-कई दिन तक अन्न के दर्शन नहीं कर पाते। जिस दिन उन्हें खाना मिल जाए तभी उनकी दिवाली हो जाती है।

सड़क पर चलते हुए हम कूड़े के ढेर से जूठन बीनते हुए बच्चों को इस अन्न के लिए झगड़ा करते हुए भी देखते हैं। पढ़ने की आयु में ये बेचारे बच्चे रोटी के फेर में पड़ जाते हैं। इसी तरह सड़कों और चैराहों पर भीख माँगते हुए और खेल-खिलौने, फूल आदि तरह-तरह की वस्तुएँ बेचते हुए बच्चे दिखाई दे जाते हैं। बाल मजदूर व बन्धुआ मजदूर जैसे शब्द भी हम इन लाचार लोगों के कारण ही सुनते हैं।

इस भूख के कारण शादी-ब्याह, पार्टी आदि में इन बेबस लोगों को तिरस्कृत होना पड़ता है। स्वयं को दानी कहलवाने के लिए भण्डारे करवाने वालों की चैखट पर से भी अन्न के स्थान पर इनको धक्के व मुक्के ही खाने के लिए मिलते हैं।

रोटी की इस भूख के चलते इंसान चूहे जैसे जीव को पकड़कर खाते हैं जिन्हें हम सब मुसहर जाति के नाम से जानते हैं। इस भूख से लाचार होकर ही कुछ लोग चैरी, डकैती, राहजनी जैसे दुष्कर्मों में प्रवृत्त हो जाते हैं। रोटी की आवश्यकता ही ऐसी है जो ये सब करवाती है।

धन की भूख जब अनावश्यक रूप से बढ़ने लगती है तब मनुष्य लालच में अन्धा होने लगता है और अधिक पाने की चाह करता हुआ अपने जमीर को ताक पर रखते हुए कालाबाजारी, रिश्वतखोरी, भ्रष्टाचार, हेरा-फेरी जैसे समाज विरोधी कार्यों में मनुष्य अनायास ही लिप्त होने लगता है।

शरीर की भूख मनुष्य को इंसान से जानवर बना देती है। वह कामपिपासा के कारण इतना अन्धा हो जाता है कि सही और गलत का अन्तर भूल जाता है। उसका विवेक तब कुण्ठित हो जाता है। उस समय वह बलात्कार जैसे जघन्य अपराध कर बैठता है। समाज की लानतें सहता हुआ बेड़ियों में जकड़कर हवालात की हवा खाने लगता है। दूसरे का जीवन तो बरबाद कर ही देता है साथ में अपना भी सुख-चैन खो बैठता है। क्षणिक सुख के लिए जीवन भर सलाखों के पीछे रहता है। समाज के ऐसे अपराधी अपनों के दुख का कारण बनते हैं। तन की भूख के कारण ही कुछ लोगों को अपना शरीर तक बेचना पड़ता है।

वाह री भूख, तेरे खेल भी बड़े ही निराले हैं, जो न कराएँ वही थोड़ा है। यह भूख ही है जिससे मजबूर होकर माता-पिता चन्द रुपयों के लिए अपने जिगर के टुकड़ों को बेचने के लिए मजबूर हो जाते हैं।

इन सब भूख से बढ़कर मान पाने की भूख होती है। जो लोग सम्माननीय हैं उन्हें यह मान स्वतः मिलता है। जो लोग इसे नहीं पाते वे जोड़-तोड़ करते रहते हैं। इसके लिए दान देते हैं, पत्थर लगवाते हैं, भण्डारे करवाते हैं और भी न जाने क्या-क्या यत्न करते हैं। इस मान-सम्मान के लिए परिश्रम से कमाई अपनी धन-सम्पत्ति दाँव पर लगा देते हैं।
सारांशतः भूख कैसी भी हो, मनुष्य के लिए बहुत ही दुखदायी होती है परन्तु हम इतना भर तो कर सकते हैं कि यह ध्यान रख लें कि हमारे पड़ोस में कोई भी व्यक्ति भूखा न सोए।

India Edge News Desk

Follow the latest breaking news and developments from Chhattisgarh , Madhya Pradesh , India and around the world with India Edge News newsdesk. From politics and policies to the economy and the environment, from local issues to national events and global affairs, we've got you covered.
Back to top button