चुनाव में सत्ता की चाबी है धान.....
छत्तीसगढ़ की 80% आबादी सीधे तौर पर खेती-किसानी से जुड़ी है, यही वजह है कि सत्ता पक्ष और विपक्ष चुनाव पर फोकस कर रहे हैं.
रायपुर : भारत में कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक देश के हर कोने में धान की खेती की जाती है। धान उत्पादन के मामले में पश्चिम बंगाल टॉप पर है। इसके बाद उत्तर प्रदेश और तीसरे नंबर पर पंजाब। वहीं छत्तीसगढ़ देश में आठवें नंबर का धान उत्पादक राज्य है फिर भी पूरे देश में छत्तीसगढ़ को ही धान का कटोरा कहा जाता है। यही वजह है कि राज्य बनने के बाद से अब तक जितने भी चुनाव हुए हैं सभी चुनाव में धान और किसान छत्तीसगढ़ की राजनीति का प्रमुख केन्द्र रहे हैं। यही नहीं अगर हम पिछले चुनावों पर नजर डालें तो छत्तीसगढ़ में सत्ता का ताला ही धान से खुलता है। डा.रमन सिंह हो या फिर भूपेश बघेल दोनों ने धान के बोनस पर ही सरकार बनाई। मप्र से अलग होकर वर्ष 2000 में छत्तीसगढ़ राज्य बना।
अजीत जोगी ने मुख्यमंत्री बनने के बाद धान खरीदी को सबसे प्रमुखता से लिया। अफसर बारदाना खरीदी का ठेका एक कंपनी को देना चाहते थे, इस मामले में उन्होंने चर्चित टिप्पणी की- सारे अंडे एक ही टोकरी में नहीं रखे जाते। 2003 में पहला चुनाव हुआ। भाजपा ने धान पर बोनस देने का वादा किया और कांग्रेस ने इस तरफ ध्यान ही नहीं दिया। भाजपा की सरकार बनीं और किसानों को केंद्र के समर्थन मूल्य के अलावा प्रति क्विंटल 270 रुपए बोनस दिया गया। यहीं से शुरू हुई धान की सियासत। 2008 में भाजपा ने 270 से बढ़ाकर 300 रुपए बोनस की घोषणा की। इस बार भी भाजपा 50 सीटों से सत्ता में आई। दोनों की टर्न में भाजपा ने अंतिम चुनावी बरस में ही अपना वादा पूरा किया। बाकी सत्ता के चार साल में एक भी रुपए बोनस नहीं दिया गया।
2013 विधानसभा चुनाव :
भाजपा ने अपने घोषणा पत्र में 2400 रुपए प्रति क्विंटल धान खरीदने का वादा किया। वहीं कांग्रेस ने 2000 रुपए की घोषणा की थी। धान के दम पर भाजपा की सरकार बनी। पर उसके बाद केन्द्र द्वारा निर्धारित 1345 रुपए की दर से ही धान खरीदी। खरीदी की सीमा 15 क्विंटल से घटाकर 10 क्विंटल कर दी। कांग्रेस ने इसे वापस 15 क्विंटल किया गया।
2018 विधानसभा चुनाव :
2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने अपने जनघोषणा पत्र में 2500 रुपए प्रति क्विंटल में धान खरीदी कर्जमाफी का वादा किया था। भाजपा ने 24 सौ रुपए की बजाय अधिकतम 1740 रुपए ही दिए थे, इसलिए 2018 के चुनाव में भाजपा ने धान की एमएसपी पर कोई घोषणा नहीं की थी। यही भाजपा के हार की सबसे बड़ी वजह बनी।
2023 विधानसभा चुनाव :
सरकार के प्रवक्ता और वरिष्ठ मंत्री रविन्द्र चौबे तथा पीसीसी चीफ दीपक बैज ने कहा है सरकार बनीं तो धान की खरीदी 3600 रुपए तक पहुंच सकती है। केन्द्र द्वारा निर्धारित सामान्य ग्रेड के धान का एमएसपी 2,183 रुपये प्रति क्विंटल है। जबकि किसान न्याय योजना की इनपुट सब्सिडी के साथ 2640 और 2660 रुपए प्रति क्विंटल दिया गया था।
साल 2000 में सिर्फ 4.63 लाख टन खरीदी :
राज्य बनने के बाद साल 2000में पहली बार राज्य सरकार ने समर्थन मूल्य पर धान खरीदा।
हर साल बढ़ते जा रहे किसान :
कांग्रेस सरकार ने इस साल किसानों से प्रति एकड़ 20 क्विंटल के साथ ही कुल 125 लाख टन धान खरीदने का लक्ष्य निर्धारित किया है। हर साल किसानों की संख्या बढ़ रही है। दावा किया जा रहा है कि अगले साल इसमें और वृद्धि होगी।
44 फीसदी भूमि खेती की, छग की जीडीपी में 22% हिस्सा धान का :
छत्तीसगढ़ की लगभग 44 प्रतिशत कृषि योग्य भूमि में धान ही मुख्य फसल है। यहां की लगभग 80 फीसदी आबादी कृषि से जुड़ी है। जीएसडीपी में लगभग 22 प्रतिशत से अधिक योगदान है।