तीन साल बाद कांकेर रियासत में मनाया गया दशहरा मिलन समारोह, रियासत काल से चली आ रही परम्परा
दशहरा मिलन समारोह की परंपरा रियासत काल से चली आ रही है। रियासत कालीन समय में राजा इस दिन प्रजाजनों से मिलकर उनकी समस्याएं सुनते थे। समय के साथ परंपरा में बदलती जा रही है
कांकेर न्यूज़ : कांकेर जिला मुख्यालय में स्थित राजमहल में दशहरे के दिन एक अद्भुत परंपरा चली आ रही है। कांकेर राजमहल में रियासत कालीन दशहरा वर्षों से चली आ रहा है। जहां आसपास के सैकड़ों गांव के ग्रामीण देवी-देवताओं के साथ राजमहल पहुंचते है। राजपरिवार द्वारा विशेष पूजा अर्चना की जाती है। कांकेर रियासत काल से चल रही परंपरा के अनुसार दशहरा के दिन राज परिवार द्वारा आंगा देव की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। जिसके तहत इस वर्ष भी आंगा देव की विशेष पूजा अर्चना राजपरिवार द्वारा किया गया।
राजमहल में पहुंचे देवी-देवता बाजे के धुन में झूमते रहे
राजपरिवार के राजा अश्वनी प्रताप देव ने उनकी पूजा अर्चना की और राजमहल में पहुंचे देवी-देवता बाजे के धुन में झूमते रहे। इस अवसर पर देवी-देवताओं के दर्शन करने शहर सहित ग्रामीण क्षेत्रों से सैकड़ों की तादाद में लोग दर्शन करने राजमहल पहुंचे। उन्होंने बताया कि यह परंपरा पिछले कई वर्षों से चली आ रही है। उनके पूर्वज भी इसी तरह प्रत्येक दशहरे अपने-अपने क्षेत्र के मंदिरों से आंगा देव को लाया करते थे, जहां राजपरिवार द्वारा उनकी विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। एक अनुमान के अनुसार यह परंपरा दो सौ वर्ष से पहले से चली आ रही परंपरा है। इस प्रकार दशहरा के दिन राजपरिवार द्वारा देवी-देवताओं की विशेष पूजा-अर्चना कर सभी की खुशहाली की कामना की जाती है व देवी-देवताओं से आशीर्वाद लिया जाता है।
दशहरा मिलन समारोह की परंपरा रियासत काल से चली आ रही है। रियासत कालीन समय में राजा इस दिन प्रजाजनों से मिलकर उनकी समस्याएं सुनते थे। समय के साथ परंपरा में बदलती जा रही है। लेकिन आज भी जनता व राज परिवार के बीच के प्रेम में कमी नहीं आई है। जिसके चलते ही आज भी दूर-दराज क्षेत्रों से लोग मिलने के लिए आते रहते हैं।