आदिवासी लघु कुंभ के नाम से सुप्रसिद्ध है सीताबाड़ी मेला
विनोद मोलपरिया
हाड़ौती क्षेत्र में बारां जिले के उपखंड शाहबाद के केलवाड़ा कस्बे में प्रतिवर्ष आदिवासी लघु कुंभ के नाम से सुप्रसिद्ध सीताबाड़ी मेला ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष अमावस्या को आयोजित होता है। सीताबाड़ी का यह मेला ऐतिहासिक महत्व रखता है और धार्मिक एवं पशु मेला के नाम से पहचान रखता है। जिले में सीताबाड़ी का मेला इस वर्ष सोमवती अमावस्या के अवसर पर 30 मई 2022 से प्रारंभ हुआ है जिसका 10 जून 2022 को समापन होगा।
धार्मिक स्थल सीताबाड़ी में कई राज्यों व जिलों से श्रद्धालु दर्शन करने बड़ी तादात में आते हैं। आस्था व श्रद्धा से सरोबार कई श्रद्धालु चिलचिलाती धूप में सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलकर आते हैं तो कई श्रद्धालु कनक दंडवत करते दूर-दराज के क्षेत्र से यहां आते हैं। सीताबाड़ी में प्रसिद्ध मंदिरों के जलकुंड में स्नान करके मोक्ष की कामना करते हैं। बारां जिले के आदिवासी सहरिया समुदाय एवं मध्यप्रदेश के श्योपुर, शिवपुरी जिलों में निवासरत आदिवासी समुदाय की इस पवित्र मेले में गहरी आस्था है।
पौराणिक महत्व
ऐसी किवदंती है कि भगवान लक्ष्मण, मां सीता को वनवास होने पर इस जंगल में उनके आश्रय के रूप में इसी स्थान पर छोड़ने आए थे। जब माता सीता को प्यास लगी तो लक्ष्मणजी ने इसी स्थान पर अपना तीर चला कर जलधारा बहाई जो आज यहां समीप स्थित बाणगंगा नदी के रूप में जानी जाती है। सीताकुटी के पास में महर्षि वाल्मिकि का आश्रम सीताबाड़ी के महत्व को और भी बढ़ा देता है। कहा जाता है कि बालक लव-कुश का जन्म भी यहीं पर हुआ था। लव-कुश की जन्म स्थली एवं क्रीड़ा स्थली सीताबाड़ी धाम है।
सीताबाड़ी में स्थित प्रसिद्ध लक्ष्मण मंदिर, महर्षि वाल्मिकी मंदिर, सीता मंदिर, लव-कुश मंदिर, सूरज कुंड त्रेता युग की यादें लोगों के मन को उद्वेलित कर देते है साथ ही मंदिरों में जलकुंड बने हैं, जिनमें वाल्मिकी कुंड, सीता कुंड, लक्ष्मण कुंड, सूरज कुंड और लव-कुश कुंड प्रमुख जल कुंड हैं। वहीं शिव पार्वती व राधाकृष्ण मंदिर कुंड भी बने हुए हैं। सीताबाड़ी में कुछ दूरी पर सीता कुटी बनी हुई है ऐसा कहा जाता है कि निर्वासन के दौरान माता सीता यहीं विश्राम किया करती थी।
मेले का ऐतिहासिक महत्व
वर्षों पूर्व यह मेला पशु मेले के रूप में प्रारंभ हुआ। यहां अधिकांष लोग खेती-किसानी करते थे। इसलिए दूर-दूर से लोग अपने बैलों को या पशुओं को बेचने के लिए यहां आते थे। क्षेत्र के किसान अपने खेती-बाड़ी में उपयोगी पशु-बैलों की जोड़ी यहां से खरीदते थे। अब कृषि कार्य में यंत्रीकरण होने से बैलों का महत्व घट गया है, सीताबाड़ी में आम्रकुंजों की भरमार थी। बड़े-बड़े विशाल आम व अर्जुन के वृक्ष लोेगों को आश्रय देते थे। जलस्तर भी इतना उपर था की समीप स्थित बाणगंगा नदी बारहमासी बहती थी।
सीताबाड़ी मेले का महत्व
सीताबाड़ी मेले की ख्याति चार दशक पूर्व धार्मिक एवं पशु मेले के रूप में थी। यहां लोग आदिवासी अंचल से आकर बैलगाड़ियों को सजा कर 3 दिन पहले ही डेरा डाल लेते थे। वे मेले से अपने आवश्यक खाने-पीने के सामान, घर गृहस्थी का सामान, खाद्य सामग्री आदि खरीदते थे। इस क्षेत्र में तेंदू पत्ती तोड़कर जो आमदनी होती थी उसका सहरिया मेले में सामान खरीदने में उपयोग करते थे।
सामाजिक महत्व
मध्यप्रदेश, राजस्थान के आसपास के सभी समाज, जातियों के लोग मेले में आते थे इस कारण से इस मेले का सामाजिक महत्व और बढ़ गया था। आदिवासियों के शादी संबंध मेले में ही हो जाते थे। अगर किसी दूसरे गांव के बालक को निमंत्रण कर दिया जाता था तो उसे रिश्ते के रूप में स्वीकार कर लिया जाता था। यह मेला सामाजिक समरसता का प्रतिबिंब भी है।
सीताबाड़ी का धार्मिक वैभव
वर्तमान में सीताबाड़ी मेले के स्वरूप में विस्तार हुआ है। नई सड़कें, परकोटे का जीर्णोद्धार मेले में चार चांद लगा रहा है। प्रशासन भी सुविधाएं उपलब्ध करवा रहा है। ऐसे में दूर-दूर के दुकानदार मेले में आने लगे हैं कोरोना आपदा के कारण 2 वर्ष बाद इस वर्ष मेला आयोजित हुआ है। वर्तमान में सूर्य कुंड को छोड़कर सभी कुंड नलकूप से भरे जाते हैं। नवनिर्मित मंदिर लोगों को आकर्षित कर रहे हैं। धार्मिक नगरी सीताबाड़ी में स्थित सिख समुदाय का प्रमुख केन्द्र कलगीधर दरबार गुरूद्वारा एवं गायत्री शक्तिपीठ सीताबाड़ी के धार्मिक वैभव को प्रदर्शित करते हैं।