BJP में समीक्षा के बाद होगा बड़ा ऑपरेशन, कई राज्यों में बदलेंगे मंत्री

नई दिल्ली

लोकसभा चुनाव नतीजों के बाद हो रही विभिन्न राज्यों की समीक्षा बैठकों में भाजपा के मौजूदा सांसदों और विधायकों के खिलाफ आवाज उठी है। संगठन के तौर तरीकों, मंत्रियों के व्यवहार और टिकट वितरण को भी प्रतिकूल नतीजों की वजह बताई गई है। दूसरे दलों से आए नेताओं को ज्यादा तरजीह देने से मूल काडर की नाराजगी भी जाहिर हुई है। ऐसे में पार्टी के भीतर बड़े बदलावों को लेकर दबाव बढ़ने लगा है।

बीते दो लोकसभा चुनावों में अपने दम पर स्पष्ट बहुमत हासिल कर रही भाजपा को इस बार सहयोगी दलों के सहारे बहुमत के आंकड़े तक पहुंचना पड़ा है। भाजपा का अपना प्रदर्शन खराब रहा और उसकी 63 सीटें घट गईं। सबसे ज्यादा झटका उत्तर प्रदेश में लगा, जहां उसकी सीटों और वोटों में भारी गिरावट आई है। भाजपा का वोट पिछले चुनाव के 49.98 फीसद से घटकर 41.37 फीसद रह गया है, वहीं सीटें 62 से घटकर 33 रह गईं। सूत्रों के अनुसार, उत्तर प्रदेश की समीक्षा बैठक में पार्टी के कई नेताओं ने राज्य से लेकर केंद्र तक की कई खामियों को उजागर किया है। साथ ही तत्काल प्रभावी कदम उठाने का आग्रह किया है।

मूल काडर की उपेक्षा की बात आई सामने
सूत्रों के अनुसार, प्रदेश के एक प्रमुख नेता ने कहा है कि हार के कारण साफ हैं। समीक्षा में ज्यादा समय गंवाने के बजाय अभी से उन कमियों को सुधारा जाना चाहिए, जिनसे प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। 2027 के लिए अभी से कार्यकर्ताओं से लेकर ऊपर तक काफी काम करना होगा। इसमें यह भी देखना होगा कि दूसरे दलों से आए नेताओं को तरजीह देने में मूल काडर की उपेक्षा न हो। सूत्रों के अनुसार, पार्टी में एक बात यह भी उभर रही है कि केंद्र सरकार में उत्तर प्रदेश से शामिल 11 मंत्रियों में केवल तीन ही मूल काडर से हैं। सहयोगी दलों से दो मंत्री हैं। बाकी छह मूल काडर से बाहर के हैं। ऐसे में राज्य में कार्यकर्ताओं में शिथिलता आना स्वाभाविक है।

सूत्रों का यह भी कहना है कि अभी कार्यकर्ताओं में ही शिथिलता है और आगे सामाजिक समीकरणों में अपने मूल समर्थक वर्ग को नहीं संभाला गया तो 2027 के विधानसभा चुनाव में काफी मुश्किल हो सकती है। उत्तर प्रदेश की तरह ही हरियाणा, महाराष्ट्र एवं राजस्थान की समीक्षा रिपोर्ट भी भाजपा के लिए अच्छी नहीं है। पू्र्वोत्तर के विभिन्न घटनाओं को ठीक तरह से हल न कर पाने से वहां पर भी नुकसान हुआ है। पश्चिम बंगाल में तृणमूल से पीड़ित कार्यकर्ताओं की चिंता न हो पाने की भी बात उभरी है।

राज्यों में सरकार के स्तर पर भी बदलाव संभव
संकेत हैं कि पार्टी सभी राज्यों की समीक्षा रिपोर्ट आने के बाद बड़े बदलाव कर सकती है। यह बदलाव संगठन के स्तर पर तो होंगे ही, राज्यों में सरकार के स्तर पर भी हो सकते हैं। दूसरे दलों से या नौकरशाही से आने वाले नेताओं को लेकर भी पार्टी सतर्कता बरत सकती है। खासकर, उन राज्यों में जहां वह मजबूत है और उसे गठबंधन की भी जरूरत नहीं है। सामाजिक आधार पर अपने समर्थक वर्ग को भी साधना होगा। सबसे ज्यादा काम कार्यकर्ताओं की नाराजगी को दूर करने का होगा और उनकी बात को संगठन तथा सरकार के स्तर पर सुना जाए।

 

India Edge News Desk

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