किसी पर्व से कम नहीं, अंबेडकर का जन्मदिन
पिंकी सिंघल
अम्बेडकर जयन्ती को भीम जयन्ती और डाॅ. भीमराव अंबेडकर जयंती के नाम से भी जाना जाता है। डॉ. बाबा साहेब अम्बेडकर का जन्म दिन प्रत्येक वर्ष 14 अप्रैल को बिल्कुल त्योहार के जैसे ही समूचे भारत में मनाया जाता है। न केवल भारत, अपितु पूरी दुनिया भर में सभी लोग और विशेष रूप से दलित , आदिवासी , श्रमिक, आर्थिक रूप से अक्षम और बौद्ध धर्म के अनुयायी तो अंबेडकर जयंती को अपने खास अंदाज़ में मनाते हैं।2020 में कोरोना महामारी के चलते यह पर्व ऑफलाइन मोड में नहीं मनाया जा सका,इस वजह से उस वर्ष लोगों ने पहली बार अंबेडकर जयंती को ऑनलाइन माध्यम से मनाया था।
अंबेडकर जयंती के दिन देशभर के लोग बाबा भीमराव अंबेडकर जी को श्रद्धांजलि देकर श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं और उनके बताए मार्ग पर चलने के लिए संकल्प लेते हैं।ऐसा करकर वे बाबा भीमराव अंबेडकर के प्रति अपना धन्यवाद ज्ञापित करते हैं। गरीबों मजदूरों मुफलिसों और कमजोर वर्ग के लोगों के लिए बाबा भीमराव अंबेडकर ने जितने प्रयास किए, जितने काम किए, उतना शायद ही किसी और ने गरीबों के उत्थान के लिए किया हो ।इसलिए अधिकतर लोग विशेष रूप से आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोग बाबा भीमराव अंबेडकर की जयंती को इस त्यौहार से कब नहीं मानते और इस पर्व को बड़ी ही धूमधाम से मनाते हैं वे साल भर इस दिन का इंतजार करते हैं।
बाबा भीमराव अम्बेडकर जी का जीवन अति संघर्षपूर्ण रहा उन्होंने जीवन पर्यंत महिलाओं कमजोर और पिछड़े लोगों को समाज में उठाने का कार्य किया और भारत के संविधान निर्माण में अपना अभूतपूर्व योगदान भी दिया बाबासाहेब आंबेडकर को भारत रत्न की उपाधि से भी सम्मानित किया गया उनके योगदान को सराहना शायद हम में से किसी की भी कल्पना से परे है। उनके योगदान के बदले उन्हें वापस कुछ लौटाया जा ही नहीं सकता। कहने का तात्पर्य यह है कि उन्होंने देश और समाज के उत्थान के लिए जितने कार्य किए उन कार्यों की एवज में जितना उन्हें सराहा जाए उनकी जितनी तारीफ की जाए कम ही होगी।
अंबेडकर जयंती को समानता दिवस के रूप में भी मनाया जाता है इसको इस दिवस के रूप में मनाए जाने के पीछे तर्क यह है कि बाबासाहेब चाहते थे कि समाज का प्रत्येक वर्ग समाज में पूरे सम्मान के साथ रहे किसी के साथ भेदभाव पूर्ण व्यवहार ना किया जाए विशेष रूप से महिलाओं और आर्थिक रूप से पिछड़े हुए लोगों को बाबासाहेब हर प्रकार से सशक्त देखना चाहते थे वे चाहते थे कि समाज का कोई भी वर्ग एक दूसरे को नीचा ना समझें और सभी वर्गों के लोगों को बराबरी का दर्जा हासिल हो। अंबेडकर जयंती को ज्ञान दिवस के रूप में भी मनाया जाता है क्योंकि बाबासाहेब जाते थे कि समाज का प्रत्येक वर्ग चाहे वह अमीर को अथवा गरीब शिक्षा प्राप्त करें और शिक्षा प्राप्त करके स्वयं को मजबूत और सशक्त बनाए क्योंकि उनके अनुसार ज्ञान केवल शिक्षित होने पर ही प्राप्त किया जा सकता है क्योंकि शिक्षा हमारे ज्ञान के नेत्रों को खोलती है और हमें समझदार और सशक्त बनाने का कार्य करती है।
शिक्षा समझाती है सबको,सही राह भी दिखलाती
शिक्षा ही तो सम्पूर्ण समाज में समानता है लाती
बाबासाहेब आंबेडकर जी का जन्म चूंकि महार(अंबेडकर )जाति में हुआ था जिसे उस समय निम्न जाति समझा जाता था तो बचपन से ही बाबासाहेब के मन में एक तड़प थी कि समाज में इस प्रकार का अन्यायपूर्ण व्यवहार किसी के साथ भी नहीं किया जाना चाहिए।लोगों को उनकी जाति और वर्ग के आधार पर आंकना किसी भी तरीके से सही नहीं है ।
जाति कभी नहीं हो सकती योग्यता का आधार
न्यायपूर्ण ही हो सदा यहां सब के संग व्यवहार
महार(अंबेडकर) जाति में जन्म लेने के कारण बाबासाहेब को अपनी शिक्षा प्राप्त करने में अच्छी खासी मशक्कत करनी पड़ी थी ,इसलिए बचपन से ही उनके मन में था कि वे अपने सभी प्रयासों से समाज में समानता लाएंगे और पिछड़े और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोगों को न्याय दिलाएंगे ।बाबासाहेब आंबेडकर की एक खासियत थी कि वे अपने जीवन में कभी भी असफलताओं से हार नहीं मानते थे अपितु असफलताएं उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित ही करती थीं। जितना समाज में उनके साथ भेदभाव किया जाता था वे उतनी ही मजबूती और बहादुरी के साथ आने वाली चुनौतियों का सामना करते थे।
न हारे हिम्मत कभी न मानी कभी भी हार
उत्थान में कमज़ोरों के वो लगे रहे लगातार
भीमराव अंबेडकर जी का जन्म मध्य प्रदेश के एक छोटे से गांव महू में 14 अप्रैल 1891 में हुआ था। बाबा साहेब के पिता का नाम रामजी मालोजी सकपाल था और उनकी माताजी का नाम भीमाबाई था। बचपन से ही प्रखर बुद्धि होने के कारण बाबासाहेब अंबेडकर शिक्षा के क्षेत्र में नित नई उपलब्धियां हासिल करते थे कम उम्र में ही अधिक समझदारी पा लेने की वजह से ही बाबासाहेब आंबेडकर के मन में अशिक्षित ,गरीब, कमजोर और महिलाओं के प्रति विशेष सहानुभूति थी, क्योंकि उस समय छुआछूत के चलते इस वर्ग के लोगों को समाज में केवल तिरस्कार और प्रताड़ना ही मिलती थी। इस वर्ग का उच्च वर्ग के लोगों द्वारा शोषण किया जाता था जो बाबासाहेब आंबेडकर को बहुत ज्यादा अखरा करता था। इसलिए बचपन में ही बाबासाहेब आंबेडकर ने प्रण लिया था कि वे अपना तमाम जीवन समाज में समानता लाने के लिए लगा देंगे,परंतु पीछे नहीं हटेंगे और उन्होंने यह कर भी दिखाया। अपनी शिक्षा और ज्ञान के बूते ही भीमराव अंबेडकर जी को आजादी के पश्चात भारत के संविधान निर्माण में अध्यक्ष का दर्जा दिया गया जिसे उन्होंने बखूबी निभाया भी। आजादी के बाद उन्हें कानून मंत्री भी नियुक्त किया गया।आज जिस संविधान के बूते हमारा देश हमारा राष्ट्र आगे बढ़ रहा है ,उन्नति कर रहा है विकासशील देश से विकसित देशों की श्रेणी में आने की होड़ में लगा हुआ है, वह संविधान इन्हीं बाबासाहेब अंबेडकर जी की देन है।
गरीब, मजलूम और मुफलिसों के विधाता थे
भीम राव अंबेडकर जी संविधान के भी निर्माता थे