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छत्तीसगढ़ नतीजों का जानिए पुरा विश्लेषण.....

यहां क्यों काम नहीं आई कांग्रेस की कर्जमाफी, 12 हजार ने कितना किया काम, जानिए ऐसे 13 सवालों के जवाब

रायपुर : छत्तीसगढ़ में कांग्रेस चुनाव हार गई। भाजपा स्पष्ट बहुमत से सरकार बना रही है। अब लोगों के मन में कई तरह के सवाल उठ रहे होंगे। कांग्रेस क्यों हारी ? भाजपा ने ऐसा क्या किया कि इतनी ज्यादा सीटें आईं? अब मुख्यमंत्री कौन होगा? नए सरकार का स्वरूप क्या होगा? हम इन सारे सवालों का जवाब अपने इस एनालिसिस में देने की कोशिश कर रहे हैं।

सवाल 1. 2018 में कांग्रेस को 68 सीट मिली। इस बार इतनी बुरी तरह क्यों हारी?
जवाब: भूपेश सरकार ने सिर्फ किसानों की कर्जमाफ़ी परभरोसा किया। किसानों को धान की कीमत देने का वादा भाजपा ने भी कर दिया, बोनस देने की भी घोषणा कर दी, लेकिन सरकार बार बार कर्जमाफ़ी को दोहराती रही। सरकार में भ्रष्टाचार ने भी असर डाला। ठीक चुनाव के पहले मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पर 508 करोड़ महादेव सट्टा एप से लेने के आरोप लगे। पीएससी घोटाले को भाजपा ने बड़ा मुद्दा बनाया। बड़े नेता ईडी के घेरे में आ गए, लेकिन सरकार आश्वस्त रही कि सरकार बनेगी। सरकार के खिलाफ एंटी इंकमबेंसी थी। यही वजह है कि सरकार के 9 मंत्री हार गए।

सवाल 2. …तो क्या भाजपा ने बड़ी सरकार के खिलाफ बड़ी लड़ाई लड़ी?
जवाब: नहीं। इस चुनाव को भाजपा ने नहीं लड़ा। ठीक दो महीने पहले तक भाजपा कहीं भी लड़ाई में नहीं थी। प्रदेश संगठन ने बड़े मुद्दों को उस तरह नहीं उठाया, जैसे उठाया जाना चाहिए था। धरने, प्रदर्शन पांच साल तक गायब थे। ठीक एक साल पहले सामाजिक समीकरण के चलते प्रदेश अध्यक्ष बदला गया, लेकिन एक साल के भीतर भी कोई बड़ा आंदोलन खड़ा नहीं हुआ। हां, भाजपा ने जातिगत और सामाजिक समीकरण का जो फार्मूला अपनाया, उसने काम किया और सरकार के खिलाफ स्वाभाविक एंटी इंकमबेंसी जीत का कारण बनी।

सवाल 3. भाजपा की जीत का श्रेय किसे दिया जा सकता है?
जवाब: निश्चित रूप से छत्तीसगढ़ में भाजपा की जीत का श्रेय अमित शाह, ओम माथुर और मनसुख मंडाविया को दिया जा सकता है। तीनों ही नेता लगातार प्रदेश के दौरे करते रहे। संगठन को मथते रहे। सामाजिक समीकरणों के तहत टिकट बांटने का फॉर्मूला तय किया। इसका असर ये रहा कि एक दो जगह कमजोर प्रत्याशी देकर उस समाज का साथ बाकी सीटों पर हासिल किया। जैसे कसडोल में धीवर समाज से धनीराम धीवर को उतारा गया, जो हार गए, लेकिन इस समाज का समर्थन पूरे प्रदेश में मिला। ऐसा कई सीटों में हुआ।

सवाल 4. भाजपा की जीत की सबसे बड़ी वजह क्या रही?
जवाब: भाजपा ने सामाजिक और जातिगत समीकरणों के तहत टिकट बाटें। नये और पुराने प्रत्याशियों का तालमेल रखा। 47 नए प्रत्याशी उतारे, जिनमें से 30 जीतकर आए। साहू समाज एक तरफा भाजपा के पक्ष में दिखा। करीब 10 टिकट साहू समाज से दिए गए थे। बावजूद इसके सबसे बड़ी वजह अंतिम समय में भाजपा का घोषणा रहा कि एक दो जगह कमजोर प्रत्याशी देकर उस समाज का साथ बाकी सीटों पर हासिल किया। जैसे कसडोल में धीवर समाज से धनीराम धीवर को उतारा गया, जो हार गए, लेकिन इस समाज का समर्थन पूरे प्रदेश में मिला। ऐसा कई सीटों में हुआ।

सवाल 4. भाजपा की जीत की सबसे बड़ी वजह क्या रही?
जवाब: भाजपा ने सामाजिक और जातिगत समीकरणों के तहत टिकट बाटें। नये और पुराने प्रत्याशियों का तालमेल रखा। 47 नए प्रत्याशी उतारे, जिनमें से 30 जीतकर आए। साहू समाज एक तरफा भाजपा के पक्ष में दिखा। करीब 10 टिकट साहू समाज से दिए गए थे। बावजूद इसके सबसे बड़ी वजह अंतिम समय में भाजपा का घोषणा पत्र आना है। कांग्रेस ने कर्जमाफी और धान खरीदी के जरिए किसानों को अपने पक्ष में किया था। भाजपा ने 21 क्विंटल धान एकमुश्त खरीदने का वादा किया। ट्रंप कार्ड साबित हुआ महिलाओं को 12 हजार देने की महतारी वंदन घोषणा।

सवाल 5. लेकिन कांग्रेस ने भी 15 हजार देने की घोषणा की थी? क्या यह काम नहीं आई?
जवाब: भाजपा पहले घोषणा पत्र में महतारी वंदन योजना लेकर आ गई। इस घोषणा के तुरंत बाद भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ता इसका फॉर्म लेकर घर घर पहुंच गए। इस फॉर्म का असर यह हुआ कि महिलाओं इस फॉर्म का इंतजार करने लगीं। घबराकर कांग्रेस ने 15 हजार सालाना देने की घोषणा दिवाली के दिन 12 नवंबर को की। 17 नवंबर को मतदान था। गांवों में त्यौहार करीब सप्ताह भर चलता है। इस दौरान उन्हें कांग्रेस-भाजपा के घोषणाओं से मतलब नहीं था। यानी कांग्रेस का 15 हजार जनता तक पहुंच ही नहीं पाया। भाजपा के 12 हजार पर महिलाओं ने मुहर लगा दी। महिलाओं का वोटिंग प्रतिशत पुरुषों से ज्यादा रहा, यह बात भी इसी तरफ इशारा कर रही है।

सवाल 6. अगर तीन प्रमुख कारण गिनाए जाएं भाजपा की सरकार आने के और कांग्रेस के जाने तो वह क्या होगा?
जवाब: महतारी वंदन योजना, एकमुश्त किसानों को पैसा-धान का बोनस और सामाजिक समीकरण के तहत टिकटों के वितरण के कारण भाजपा जीती। कांग्रेस में गुटबाजी, एंटी इंकमबेंसी और कर्जमाफ़ी पर अतिआत्मविश्वास के कारण हार हुई।

सवाल 7. मुख्यमंत्री, नेता प्रतिपक्ष कौन होगा? भूपेश बघेल अब क्या करेंगे?
जवाब: जहां तक मुख्यमंत्री की बात है, तो भाजपा में पहला नाम डॉ. रमन सिंह ही होंगे। इसके साथ ही आदिवासी चेहरे के रूप में विष्णुदेव साय और रामविचार नेताम भी बड़ा चेहरा हैं। अगर ओबीसी चेहरे की बात करें, तो प्रदेश अध्यक्ष अरूण साव और धरमलाल कौशिक बड़े चेहरे हैं। हो सकता है कि संघ भी अपना कोई नाम भेजे। इधर, नेता प्रतिपक्ष के लिए चरणदास महंत और भूपेश बघेल का नाम पहली कतार में है। भूपेश बघेल ओबीसी के रूप में कांग्रेस के पास राष्ट्रीय चेहरा हैं, इसलिए हो सकता है कि लोकसभा चुनाव में कांग्रेस इसे भुनाना चाहे।

सवाल 8. कांग्रेस में हार की जिम्मेदारी किसको लेनी चाहिए?
जवाब: मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के चेहरे पर पूरा चुनाव लड़ा गया। बार बार लड़ाई भूपेश वर्सेस मोदी के तौर पर पेश की गई। लेकिन ठीक चुनाव से पहले सीटों के बंटवारे को लेकर कुछ तनातनी की स्थिति बनती रही। मुकाबले में टीएस सिंहदेव को भी एक चेहरा बनाया गया। जनता की उम्मीदें बंट गई। जाहिर तौर पर कांग्रेस की इस हार की जिम्मेदारी मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और उपमुख्यमंत्री टीएस सिंहदेव को लेनी होगी।

सवाल: 9. भाजपा में जीत का श्रेय किसे देना चाहिए?
जवाब. भाजपा में जीत का कारण कोई भी स्थानीय चेहरा नहीं है। इस जीत का सीधा सेहरा अमित शाह के सर पर सजेगा। ओम माथुर और मनसुख मंडाविया ने जिस तरह से पार्टी को मथा और कैंडिडेट्स तैयार किए, उसका परिणाम है कि भाजपा को इतनी बड़ी जीत मिली। पहली बार ऐसा हुआ कि घोषणा पत्र जारी होने से एक महीने पहले अगस्त में 15 सीटों पर भाजपा ने सूची जारी कर दी। ये भाजपा की तैयारी थी, जबकि कांग्रेस ने प्रत्याशी उतारने में ही बहुत देर की।

सवाल: 10. कहां-कहां से भाजपा को बढ़त मिली?
जवाब: 2003 से 2023 तक जितने भी विधानसभा चुनाव हुए, उनमें 2013 के ट्रेंड को छोड़कर सभी में एक बात कॉमन थी कि बस्तर और सरगुजा से वोटिंग एक तरफा हुई। इस बार भी ये ट्रेंड दिख रहा है। बस्तर की 12 सीटों में से 8 में भाजपा जीत गई, जबकि सरगुजा में 14 में से 14 सीटें भाजपा के खाते में आ गई। सरगुजा का परिणाम इसलिए चौंकाने वाला है क्योंकि पिछली बार 14 की 14 सीटें कांग्रेस के पास थीं। खुद डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव अपनी सीट बचाने में भी नाकाम रहे। कांग्रेस को मैदानी इलाकों से उम्मीद थी, क्योंकि यहां किसान ज्यादा हैं, लेकिन यहां भी कांग्रेस सिमट गई। जनता को कर्जमाफी से ज्यादा धान के बोनस पर आकर्षण लगा।

सवाल 11. आखिरकार 9 दिग्गज मंत्री क्यों हारे?टीएस सिंहदेव एक भी सीट नहीं ला पाए
जवाब: पिछली बार मुख्यमंत्री का चेहरा रहे टीएस सिंहदेव सरगुजा से 14 की 14 सीटें जीतकर ले आए। उन्हें सीएम नहीं बनाया गया। सत्ता से संघर्ष में पार्टी को नुकसान हुआ। काम नहीं हुआ। इस बार आलम ये है कि जनता ने पूरी 14 की 14 सीटें इस बार भाजपा को दे दी। बिल्कुल नए प्रत्याशी राजेश अग्रवाल ने दिग्गज टीएस सिंहदेव को हरा दिया।

अमरजीत भगत को सैनिक पर टिप्पणी भारी पड़ी
20 साल के विधायक और मंत्री अमरजीत सिंह भगत को सेना से इस्तीफा देकर चुनाव लड़ रहे रामकुमार टोप्पो ने हरा दिया। अमरजीत भगत ने सेना पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि सेना के लोग बार्डर पर ठीक लगते हैं, राजनीति में उनका कोई काम नहीं। क्षेत्र में इसे सेना के अपमान की तरह भी देखा गया। आखिरकार उन्हें जनता ने हरा दिया और सेना के जवान को जिता दिया।

मोहम्मद अकबर के खिलाफ सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का असर दिखा
कवर्धा में भी दिग्गज मंत्री मोहम्मद अकबर के खिलाफ भाजपा ने नया प्रत्याशी विजय शर्मा दिया। विजय शर्मा ने कवर्धा में सांप्रदायिक तनाव के दौरान भाजपा और हिन्दुत्व का झंडा बुलंद किया था। सरल और सहज होने के बावजूद मोहम्मद अकबर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के शिकार हुए।

रविंद्र चौबे भी सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का शिकार
साजा के बिरनपुर में सांप्रदायिक हिंसा हुई। यहां हिंसा में मारे गए भुवनेश्वर साहू के पिता को भाजपा ने उतारा। यह निर्णय व्यक्तिगत रूप से अमित शाह का था। ये फैसला इतना सही साबित हुआ कि 8 बार के विधायक व दिग्गज मंत्री, जिनके पिता व माता भी विधायक रहीं, उन्हें हरा दिया। ईश्वर साहू फटी हुई चप्पल और फटे कपड़े पहनकर साइकिल में चुनाव प्रचार करते रहे और अपना दर्द बताते रहे। उनकी संवेदना लोगों तक पहुंची।

जयसिंह अग्रवाल का परसेप्शन उन्हें ले डूबा
कोरबा से मंत्री जयसिंह अग्रवाल के खिलाफ एक माहौल बन गया। भूमाफियाओं का उनके ईर्द-गिर्द होना उन्हें भारी पड़ा। अपनी ही सरकार से बहुत अच्छे रिश्ते भी नहीं थे। कहा जाता है कि प्रदेश की सबसे खर्चीली सीटों में इस बार कोरबा भी रही। उनके सामने भाजपा ने लखनलाल देवांगन को उतारा, जो सहर सरल और जमीनी नेता हैं। यहां लोगों ने सत्ता के अहंकार और सहजता के परसेप्शन पर वोट दिया।

ताम्रध्वज साहू पर रिश्तेदार भारी पड़े
बेहद सरल और सौम्य नेता ताम्रध्वज साहू अपने क्षेत्र में अपने रिश्तेदारों के कारण हार गए। गृहमंत्री वे थे, लेकिन उनके रिश्तेदारों पर ट्रांसफर पोस्टिंग और क्षेत्र में अतिवाद के आरोप के चलते लोगों ने ताम्रध्वज साहू को नकार दिया। दूसरा प्रदेश में साहू समाज एक तरफा भाजपा के साथ नजर आया। इसी कारण चंद्राकर समाज के प्रत्याशी ललित चंद्राकर को कांग्रेस के साहू के खिलाफ वोट मिले।

भाजपा के तीन सांसद जीते, विजय बघेल हारे, कांग्रेस के सांसद हारे
इस चुनाव में भाजपा ने चार सांसदों को मैदान में उतारा। रायगढ़ सांसद गोमती साय को भरतपुर सोनहत से, दुर्ग सांसद विजय बघेल को पाटन से, बिलासपुर के सांसद अरुण साव को लोरमी से और सरगुजा सांसद रेणुका सिंह को भरतपुर सोनहत से मैदान में उतारा। इनमें गोमती साय, अरुण साव और रेणुका सिंह ने जीत दर्ज की, जबकि विजय बघेल, मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से हार गए। कांग्रेस ने अपने एक सांसद दीपक बैज को चित्रकोट से उतारा, वे भाजपा के विनायक गोयल से चुनाव हार गए।

सवाल. 12 जहां-जहां मोदी, शाह वहां भाजपा का क्या हुआ?
जवाब. प्रधानमंत्री की सभा महासमुंद, मुंगेली, डोंगरगढ़, कांकेर, दुर्ग, भटगांव, प्रेमनगर, रायगढ़, रायपुर और बिलासपुर में हुई, जबकि अमित शाह ने राजनांदगांव, चंद्रपुर, बिलासपुर, बस्तर, जगदलपुर, कोंडागांव, कांकेर, कवर्धा, जशपुर, मोहला मानपुर, बेमेतरा, पंडरिया, साजा, कोरबा और जांजगीर चांपा में सभाएं की। इन दोनों ने इसतरह पूरे छत्तीसगढ़ को नाप लिया। इन सभी जगह क्षेत्रों मेंज्यादातर भाजपा की सीटें आई हैं।

सवाल. 13 जहां जहां राहुल-प्रियंका गए, वहां कांग्रेस का क्या हुआ?
जवाब. राहुल गांधी ने बेमेतरा, बलौदा बाजार, अंबिकापुर, जशपुर, खरसिया, जगदलपुर, रायगढ़, कवर्धा, राजनांदगांव, भानुप्रतापुर (फरसगांव), बिलासपुर और रायपुर में सभाएं की। इसी तरह प्रियंका गांधी ने प्रियंका गांधी ने रायपुर, कुरुद, बालोद, बिलासपुर, खैरागढ़, कांकेर, भिलाई, जगदलपुर में सभाएं कीं। इन सभी इलाकों से भी भाजपा को ज्यादा सीटें मिलीं।

India Edge News Desk

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