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शून्य से शिखर तक भाजपा का सफर, ध्येय वाक्य पर चलना कठिन हो रहा

भोपाल / (मनोज बाबू चौबे) भाजपा की कुल उम्र कांग्रेस के शासन काल से कम होने के बावजूद भी आज सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है। आज बीजेपी का 44वां स्थापना दिवस है। अपने स्थापना दिवस आयोजन के तहत पीएम के संबोधन से लेकर देश में अलग-अलग जगहों पर कार्यक्रम किए जा रहे हैं। बीजेपी ने 2 से 303 सांसदों तक का सफर पूरा कर बीजेपी दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी का आकार ले लिया है। पार्टी 6 अप्रैल को अपने स्थापना दिवस से 14 अप्रैल को बाबा साहेब डॉक्टर भीम राव आंबेडकर की जयंती तक सामाजिक न्याय सप्ताह मनाएगी और इस दौरान पार्टी के कार्यकर्ता सरकार की कल्याणकारी योजनाओं के फायदों को उजागर करने के लिए बूथ, ब्लॉक और जिला स्तर पर कार्यक्रम आयोजित करेगी। इसी सिलसिले में टीकमगढ़ के 808 बूथों पर कार्यक्रम किये जा रहे हैं।
देश में आपातकाल के वापस लेने के बाद बीजेएस ने कई अन्य छोटे क्षेत्रीय दलों के साथ मिलकर जनता पार्टी का गठन किया। जनता पार्टी ने 1977 के लोकसभा चुनाव में सफलता का स्वाद चखा और मोरारजी देसाई को प्रधानमंत्री बनाकर केंद्र में सरकार बनाई। जनता पार्टी का प्रयोग अधिक दिनों तक नहीं चल पाया। दो-ढाई वर्षों में ही अंतर्विरोध सतह पर आने लगा। कांग्रेस ने भी जनता पार्टी को तोड़ने में राजनीतिक दांव-पेंच खेलने से परहेज नहीं किया। भारतीय जनसंघ से जनता पार्टी में आये सदस्यों को अलग-थलग करने के लिए ‘दोहरी-सदस्यता’ का मामला उठाया गया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से संबंध रखने पर आपत्तियां उठायी जानी लगीं। यह कहा गया कि जनता पार्टी के सदस्य राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सदस्य नहीं बन सकते। 4 अप्रैल, 1980 को जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्यसमिति ने अपने सदस्यों के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सदस्य होने पर प्रतिबंध लगा दिया। पूर्व के भारतीय जनसंघ से संबद्ध सदस्यों ने इसका विरोध किया
नतीजतन मोरारजी देसाई को 1980 में पार्टी के भीतर अंदरूनी कलह के कारण इस्तीफा देने के लिए मजबूर होना पड़ा और नए चुनाव हुए। जनता पार्टी 1980 में भंग हो गई और इसके सदस्यों ने अटल बिहारी वाजपेयी के साथ इसके पहले अध्यक्ष के रूप में भाजपा (BJP) का गठन किया।
और जनता पार्टी से अलग होकर 6 अप्रैल, 1980 को एक नये संगठन ‘भारतीय जनता पार्टी’ की घोषणा की, इस प्रकार भारतीय जनता पार्टी की स्थापना हुई।
1984 के चुनावों में पार्टी की भारी हार से भाजपा को झटका लगा. बीजेपी को सिर्फ 2 सीटों पर संतोष करना पड़ा. साल 1989 में नौवीं लोकसभा के लिए हुए चुनाव में BJP को 85 सीटें हासिल हुईं. हालांकि, 1990 के दशक में राम मंदिर आंदोलन के साथ इसका ग्राफ ऊपर चढ़ने लगा।
पंडित श्यामा प्रसाद, दीनदयाल उपाध्याय के सिद्धांतों के अनुसार राजनीति केवल सत्ता प्राप्त करने का साधन नहीं है। समाज को अपेक्षित दिशा में प्रगति पथ पर ले जाना भी उसका कार्य है। इसके लिये संगत दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है, जो संगत विचारधारा से प्राप्त होता है। आज भारत के सभी राजनैतिक दल विचारधारा शून्यता के शिकार हैं। भाजपा सांस्कृतिक राष्ट्रवाद, एकात्म मानववाद तथा पंचनिष्ठाओं की संगत विचारधाराओं के आधार पर संगठन का नियमन कर रही है। शासन की नीति में भी ये दिखाई दे रहा है । भाजपा अपने ध्येनिष्ठ कार्यकर्ताओं की शक्ति के दम पर 10 साल का केन्द्रीय शासन एवं प्रदेशों में भाजपा की सरकारों ने अन्य दलों की सरकारों की तुलना में अच्छा शासन दिया है। दस वर्षों से श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में सकारात्मक सुशासन की प्रक्रिया तीव्र गति से चल रही है।व्यवस्थाओं की पुरानी विकृतियों का शमन करने में अभी भी कुछ वक्त लगेगा।

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