अन्नदाताओं के साथ धोखा, पीएम की घोषणा बेअसर
Cheating with the farmers, PM's announcement ineffective
मनोज बाबू चौबे, भोपाल
“मोदी है तो, मुमकिन है।” का नारा कामयाब होता नहीं दिखाई दे रहा है। बीते 2020 की फरवरी में देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भगवान श्रीराम के वनवास के केन्द्र रहे चित्रकूट धाम में केंद्र सरकार द्वारा दस हजार किसान उत्पादक संगठन (एफ़पीओ) गठन की घोषणा करते हुए पाँच साल की इस परियोजना के लिए बजट में 6600 करोड़ रुपयों का प्रावधान किया गया था।
कार्यक्रम शुरू हुए 3 वर्ष से ज्यादा का समय बीत जाने के बाद भी किसी को मालूम नहीं कि बनने बाले 10000 एफ़पीओ में से कितने बन गए और वे आज किस हाल में हैं, जबकि बीते फरवरी 2024 में एफपीओ गठन का समय पूरा हो चुका है। गौरतलब है कि परियोजना के मार्गदर्शन और पूरे संचालन / प्रबंधन और निगरानी के लिए एक इंटरनेशनल कन्सल्टिंग संस्था ENY को राष्ट्रीय परियोजना प्रबंधन एजेंसी (एनपीएमए) के तौर पर चयनित किया गया था और कार्यक्रम की घोषणा के दस माह बाद दिसम्बर 2020 से इस संस्था ने एनपीएमए के रूप में अपना कार्य भार संभाल लिया था।
न डीपीआर बना, न पोर्टल
जैसे बिना मकान का नक्शा बनाये बेहतर मकान की कल्पना बेमानी है ठीक वैसे ही योजना की सफलता के लिए एक परियोजना कार्यान्वयन प्लान (डीपीआर) की। डीपीआर बनाने की ज़िम्मेदारी इस एनपीएमए को सौंपी गई थी और डीपीआर बनाने के साथ ही इस संस्था को पूरे परियोजना के लिए एफ़पीओ का एक एकीकृत राष्ट्रीय पोर्टल बनाने की भी ज़िम्मेदारी थी।
लेकिन इस संस्था ने ना तो डीपीआर बनाया और ना ही एफ़पीओ का पोर्टल बनाया। फिर भी इस संस्थान को मार्च 2024 तक 12.3 करोड़ रुपये का भुगतान कर दिया गया। जानकार बताते हैं कि हर महीने लगभग 30 लाख रुपए का भुगतान किया जा रहा है।
गौरतलब है कि ENY एनपीएमए के साथ चार वर्ष का करार किया गया है, और यह करार दिसम्बर 2024 में अपना समय पूरा कर लेगा। अनुबंध के अनुसार इस संस्था को लगभग सत्रह कार्य पूरे करने की ज़िम्मेदारी थी, जिसमे से इस संस्था ने एक भी कार्य पूरे नहीं किए।
किसी को चिन्ता नहीं
डीपीआर और एफ़पीओ पोर्टल परियोजना के लिए अति आवश्यक घटक थे, जिसके बिना दस हजार एफ़पीओ की योजना पूरी तरह धराशायी हो गई है, लेकिन मजे की बात है कि इस सबके बावजूद इसकी चिंता न कृषि विभाग को है, न एसएफ़एसी को है, और न ही नाबार्ड को। इस बारे में कोई भी जिम्मेदार बात करने को तैयार नहीं है, कि परियोजना का डीपीआर कहाँ है या एफ़पीओ पोर्टल क्यों नहीं बन पाया, और फिर बिना डीपीआर और एफ़पीओ पोर्टल के आखिर किसानों के हित में काम कैसे चल रहा है?
कृषि वैज्ञानिक की चिंता जायज
भोपाल के एक वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक शाजी जॉन ने जानकारी में बताया कि उन्होंने एसएफ़एसी और नाबार्ड को लगभग 450 आरटीआई दाखिल की है, जिसमें से किसी भी आरटीआई का इन संस्थाओं ने सीधे जवाब नहीं दिया। शाजी जॉन ने 20 आरटीआई में प्राप्त जानकारी और अन्य सबूतों के आधार पर एक रिपोर्ट तैयार की है, जिसे मनोज आहूजा, सचिव, केंद्रीय कृषि मंत्रालय को भेजा है। इसी के साथ मध्यप्रदेश सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री व वर्तमान में भारत सरकार के कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान को भी 6 जुलाई 2024 को पत्र लिखकर मामले की जांच कराने का अनुरोध किया है।
अनुबंध की शर्तें पूरी ना करने के कारण एनपीएमए के खिलाफ वसूली की कार्यवाही एवं अन्य वैधानिक कार्यवाही की उम्मीद किसानों के हित में जताई है।