न्यायालयीन प्रक्रिया में अब भी बना हुआ है आम लोगों का भरोसा

रमेन दासगुप्ता ‘शुभ्रो’
भारत के विभिन्न न्यायालयों में लम्बित प्रकरणों की संख्या लगभग पांच करोड़ है। यह इस बात का प्रमाण है कि भारत में न्यायालयीन प्रक्रिया की गति अति सुस्त है। बावजूद इसके प्रकरणों की लगातार बढ़ती संख्या इस बात का सबूत है कि न्यायालयीन प्रक्रिया में आम लोगों का भरोसा अब भी बना हुआ है।
ऐसे में यदि कोई ऐसा समझता है कि भारत के लोग मुकदमेबाजी के शौकीन हैं तो वह गलत है। दरअसल प्रकरणों की बढ़ती संख्या न्याय के प्रति लोगों की बढ़ती आस्था और अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ने के कारण ही है।
यह सत्य है कि पिछले कुछ वर्षों में सरकारी काम काज में अदालत का हस्तक्षेप काफी बढ़ गया है। यह सब शासन-प्रशासन से निराश लोगों के द्वारा समय-समय पर दायर विभिन्न जनहित याचिकाओं के निराकरण के दौरान अदालत की दखलन्दाजी के चलते हुआ है।
तमाम विसंगतियों के बाद भी न्यायालयीन प्रक्रिया के प्रति आम लोगों का बढ़ता विश्वास कुछ इस वजह से भी है कि आम लोगों में विश्वास बहाली के लिये जो कार्य कार्यपालिका को करना चाहिये था, न्यायालय को करना पड़ा है। पिछले कुछ वर्षों में नेताओं की स्वेच्छाचारिता और गुंडों से उनकी सांठ-गांठ पर चुनाव आयोग और न्यायालय ने मिलकर लगाम कसने की जो सार्थक कोशिश की है, उससे भी आम लोगों का उस पर भरोसा बढ़ा है।
न्यायालय के प्रति लोगों का विश्वास बनाये रखने के लिये यह जरूरी है कि प्रकरणों का निबटारा वन डे क्रिकेट के समान हो जो वर्तमान परिस्थितियों में असंभव सा लगता है क्योंकि विभिन्न न्यायालयों में न्यायाधीशों के सैंकड़ों पद वर्षों से रिक्त पड़े हैं। इसे भरने की जवाबदारी केन्द्र और राज्य दोनों की है। इसके साथ ही फेंक डालने की परंपरा समाप्त होनी चाहिए।
लंबित प्रकरणों की सुनवाई के लिये सरकार की ओर से जिन फास्ट टैªक और विशेष अदालतों का गठन किया गया था, न्यायाधीशों की कमी के चलते ही उसका भी कोई अपेक्षित परिणाम निकलकर सामने नहीं आ सका है। यही बात लोक अदालतों के बारे में भी कही जा सकती है। तब भी यह एक अच्छी बात है कि हमारे यहां कम से कम ऐसी व्यवस्थाएं है।
अदालतों में प्रकरणों की बढ़ती संख्या को देखते हुए सरकार को त्वरित न्याय की प्रथा सुनिश्चित करने के लिये प्रभावी कदम उठाना चाहिये क्योंकि देर से मिला न्याय कभी न्याय नहीं होता, अन्याय होता है। सरकार को अपनी तरफ से ऐसे सभी मामलों को वापस ले लेना चाहिये जिनका बहुत अधिक महत्व नहीं है। इसके साथ ही न्यायाधीशों के रिक्त पदों को भरने के साथ तथा उनकी संख्या कम से कम दस गुणा अधिक कर देनी चाहिये।