मॉनसून के दस्तक देने के साथ ही भूस्खलन को लेकर चिंताएं बढ़ गई हैं उत्तराखंड में

इंडिया एज न्यूज नेटवर्क
देहरादून : उत्तराखंड में मॉनसून के दस्तक देने के साथ ही राज्य में भूस्खलन को लेकर चिंताएं बढ़ गई हैं। पिछले एक हफ्ते में, केदारनाथ और अन्य स्थानों में भूस्खलन और बारिश में चट्टानों के खिसकने से कम से कम 5 पर्यटकों की जान गई है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने मामले का संज्ञान लेते हुए राज्य की तैयारियों के तहत अधिकारियों को कई निर्देश दिए हैं। संभावित आपदाओं की दृष्टि से अगले तीन माह को महत्वपूर्ण बताते हुए धामी ने जिलाधिकारियों को अपने स्तर पर अधिकतर फैसले लेने को कहा है। हर साल खासतौर पर मानसून के दौरान उत्तराखंड को प्राकृतिक आपदाओं से जान-माल का भारी नुकसान झेलना पड़ता है।
जून 2013 में केदारनाथ में आई जल प्रलय के दर्दनाक मंजर को लोग भूल भी न पाए थे कि पिछले साल ऋषिगंगा में आई बाढ़ ने एक बार फिर उत्तराखंड को हिलाकर रख दिया। वर्ष 2013 में केवल केदारनाथ आपदा में ही करीब 5000 लोगों की मौत हुई थी, जबकि 2021 में चमोली जिले में ऋषिगंगा नदी में आई बाढ़ से रैंणी और तपोवन क्षेत्र में भारी तबाही मची थी तथा 200 से ज्यादा लोग काल के गाल में समा गए थे। बाढ़ की वजह से दो पनबिजली परियोजना भी प्रभावित हुई थी। विशेषज्ञों का मानना है कि हिमालय के पर्वत नए होने के कारण बेहद नाजुक हैं, इसलिए ये बाढ़, भूस्खलन और भूकंप के प्रति काफी संवेदनशील हैं, खासतौर पर मॉनसून के दौरान, जब भारी बारिश के चलते इन प्राकृतिक आपदाओं की आशंका बढ़ जाती है।
देहरादून स्थित हिमालय भूविज्ञान संस्थान में भूभौतिकी समूह के पूर्व अध्यक्ष डॉ. सुशील कुमार ने बताया कि अपेक्षाकृत नए पर्वत होने के कारण हिमालय की 30 से 50 फुट की ऊपरी सतह पर केवल मिट्टी है, जो थोड़ी सी छेड़छाड़ होते ही, खासतौर पर बारिश के मौसम में, अपनी जगह छोड़ देती है और भूस्खलन का कारण बनती है। कुमार के मुताबिक, हर मौसम में चालू रहने वाली सड़क परियोजना के लिए पहाड़ों की कटाई, चारधाम यात्रा के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं के आगमन और टिहरी बांध जैसे बड़े बांधों से नदियों के जल ग्रहण क्षेत्र में वृद्धि के कारण ज्यादा बारिश ने भी प्राकृतिक आपदाओं में इजाफा किया है।
(जी.एन.एस)