क़रीब 95℅ ध्रुपद गायन ईश्वर और प्रकृति को समर्पित है : पंडित प्रशांत मलिक

इंडिया एज न्यूज नेटवर्क
भोपाल : ध्रुपद मुख्यतः परमपिता और प्रकृति को समर्पित प्राचीन गायन शैली है जो पहले मंदिरों में गया जाता था। बाद में मंदिर से धीरे-धीरे ध्रुपद राज दरबार में आया और आज लगभग हज़ार वर्षों बाद जन सामान्य तक पहुँच रहा है। ये बात प्रसिद्ध ध्रुपद गायक मालिक बन्धु के पंडित प्रशांत मलिक ने युवाओं से बात करते हुए कही। वे बंसल कॉलेज ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी एवं मध्यप्रदेश पुलिस अकादमी में स्पिक मैके के भोपाल अध्याय द्वारा आयोजित कार्यक्रम में विद्यार्थियों और प्रशिक्षु सिपाहियों को ध्रुपद विधा से परिचित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि ध्रुपद सम्पूर्ण गायन है क्योंकि उसमें प्रचुर मात्रा में नवरस मौजूद हैं।
बंसल कॉलेज में उन्होंने सुबह के अंतिम प्रहर में गाये जाने वाले राग अहीर भैरव में आलाप के बाद “ओम अंनत तम तरन तारिणी तोम हरिओम नारायण ओम” प्रस्तुत किया। उनके गंभीर और प्रचंड गायन से खचाखच भरे सभागार में सारे विद्यार्थी अद्भुत रस से शराबोर होगये। इसके बाद उन्होंने ‘प्रथम मान ओंकार देवमान महादेव, विद्यामान सरस्वती नदीमान गंगा’ प्रस्तुत किया।
पाँच मंगल वाद्य ‘मृदंग (पखावज), शेहनाई, घंटी/घंटा, डमरू और शंख’
मालिक बंधुओं ने बताया कि शास्त्रोक्त वर्णित पाँच मंगल वाद्य ‘मृदंग (पखावज), शेहनाई, घंटी/घंटा, डमरू और शंख’ से परिचित कराया। ध्रुपद गायन बहुत पुराना है और सामवेद में इसका उल्लेख मिलता है। माना जाता है कि सामवेद से ही ध्रुपद की उत्पत्ति हुई है। नाट्यशास्र के अनुसार वर्ण, अलंकार, गान-क्रिया, यति, वाणी, लय आदि जहाँ ध्रुव रूप में परस्पर संबद्ध रहें, उन गीतों को ध्रुवा कहा गया है। जिन पदों में उक्त नियम का निर्वाह हो रहा हो, उन्हें ध्रुवपद अथवा ध्रुपद कहा जाता है।
मध्यप्रदेश पुलिस अकादमी में उन्होंने शुरुआत दिन के आख़िरी प्रहर में गए जानेवाले राग पटदीप में धमार की रचना प्रस्तुत की। इसके बाद होरी ‘अहो धूम मची बिरज में’ पेश की। कार्यक्रम का समापन मलिक बन्धुओं ने कबीरदास का पद ‘सुन नर ऋषि मुनि’ से किया। पखावज पर संगत हृदयेश चोपड़ा ने की।