प्रभावी रणनीति और मोदी की विश्वसनीयता की जीत, सच हुआ ‘इंडिया एज न्यूज़’ का आकलन

  • नीरज मनजीत

दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी ने असाधारण विजय हासिल कर ली है। यह भरोसे और सत्य की राजनीति की विजय है। यह जीत ज़मीन पर अथक परिश्रम, अद्भुत टीमवर्क, प्रभावी रणनीति, दिल्ली की तरक़्क़ी के लिए कटिबद्ध लोगों की विजय है। नकारात्मक समीक्षा करनेवाले कुछ लोग कह सकते हैं कि यह जीत आम आदमी पार्टी के ख़िलाफ़ एंटी इनकम्बेंसी फ़ैक्टर की वजह से हुई है। निश्चित रूप से दिल्ली की सियासी फ़िज़ाओं में सरकार विरोधी भावनाएँ काफी प्रबल थीं, मगर सिर्फ़ इसी वजह से भाजपा को इतना प्रचंड बहुमत मिला है, यह बात नहीं मानी जा सकती। इस विजय का सकारात्मक पहलू यह है कि दिल्ली की जनता ने प्रधानमंत्री मोदी की गारंटियों और निरंतर विकास के मॉडल पर भरोसा जताते हुए अरविंद केजरीवाल के झूठे वायदों और फ़रेबी नैरेटिव्स पर चलाए जा रहे सियासी मॉडल को ध्वस्त किया है।

24 जनवरी को ‘इंडिया एज न्यूज़’ में इन पंक्तियों के लेखक ने भाजपा को जीत का सबसे प्रमुख दावेदार बताया था—“…….तीनों मुख्य पार्टियों ने तक़रीबन एक समान घोषणापत्र जारी किया है। अब सवाल विश्वसनीयता का है। इस मामले में वोटर्स का झुकाव भाजपा की तरफ़ होना चाहिए। एक बात तय है कि भारतीय जनता पार्टी ने अपनी मेहनत और बेहतर रणनीति के तहत थोड़ी-सी बढ़त हासिल कर ली है। इस बार आम आदमी पार्टी को ध्वस्त करके भाजपा दिल्ली का किला जीत ले तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए।”

दिल्ली की जनता ने अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी की ऐतिहासिक पराजय अध्याय लिखा है। यह पराजय उतनी ही ऐतिहासिक और विशाल है, जितनी 2015 और 2020 में अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी की विजय थी। सच कहा जाए तो दिल्ली में अहर्निश असत्य, स्वघोषित अराजकता, अनहद आडंबर और प्रपंच की सियासत की जबर्दस्त पराजय हुई है। यह 10 वर्ष लंबे उस पॉलिटिकल मेलोड्रामा की पराजय है, जिसके रचनाकार, पटकथा लेखक, निर्देशक, नायक सिर्फ़ और सिर्फ़ केजरीवाल ही थे। यह उस अहंकार और आत्ममुग्धता की पराजय है, जिसके प्रभाव में केजरीवाल और उनके साथी महानुभाव सारी दुनिया को बेईमान और खुद को कट्टर ईमानदार बताते थे। इसी अहंकार और आत्ममुग्धता के चलते केजरीवाल गरजकर पीएम मोदी को चुनौती देते थे कि “इस जनम में तो वे आम आदमी पार्टी को नहीं हरा सकते, उन्हें हराने के लिए मोदीजी को दूसरा जनम लेना पड़ेगा”। इसी ख़ुशफ़हमी के चलते केजरीवाल और उनके साथी मान लेते थे कि वे ऐसे देवदूत हैं, जिन्हें ईश्वर ने आम जन की हालत सुधारने और राजनीति की दशा और दिशा बदलने के लिए ही उन्हें भेजा है।

इसी अहंकार के चलते केजरीवाल मनीष सिसोदिया को दुनिया का सबसे अच्छा शिक्षामंत्री बताकर भारत रत्न देने की मांग कर डालते थे। इसी नार्सिसिज़्म के प्रभाव में केजरीवाल ईडी के नौ समनों की उपेक्षा करके यह मुग़ालता पाल लेते थे कि उन्हें गिरफ़्तार करना तो दूर, कोई उन्हें छू भी नहीं सकता। इसी स्वरचित भ्रम के चलते गिरफ़्तारी के बाद वे सुप्रीम कोर्ट से कहते थे कि वह आधी रात को उठकर उनकी सुनवाई करे। लब्बोलुआब यह कि केजरीवाल और उनकी टीम मान बैठी थी कि दिल्ली के मालिक वे ही हैं। दिल्ली की जनता ने इन सारे मुग़ालतों और सारी ख़ुफ़हमियों को तोड़कर उन्हें अर्श से फ़र्श पर ला पटका है।

क्या इस बड़ी हार से केजरीवाल और उनके साथी कुछ सबक लेंगे? क्या वे पीछे मुड़कर देखेंगे कि 2012 में ‘इंडिया अगेंस्ट करप्शन’ के पवित्र संकल्प और सियासत की दशा दिशा बदलने के इरादे से निकली पार्टी किस तरह ख़ुद ही भ्रष्टाचार के दलदल में धँसती चली गई है? क्या केजरीवाल और उनके साथी आत्म विश्लेषण करेंगे कि असत्य आडंबर अराजकता प्रपंच की जिस राजनीतिक शैली को उन्होंने जन्म दिया था, उसे जनता ने पूरी तरह रद्द कर दिया है? कितनी बड़ी विडंबना है कि केजरीवाल और उनकी टीम को अपनी इस राजनीतिक परिपाटी पर इस क़दर यकीन और नाज़ था कि वे आख़िर तक इसी तौर तरीके से चौथी बार दिल्ली फ़तह का सपना देखते रहे थे। इसीलिए चुनाव अभियान के अंतिम दिनों में उन्होंने हरियाणा सरकार पर यमुना के जल में ज़हर मिलाकर दिल्ली में जीनोसाइड करने का भयानक इल्ज़ाम लगा दिया था। इसीलिए उनकी टीम ने नतीजे आने के एक दिन पहले यह नितांत असत्य नैरेटिव खड़ा करने का प्रयास किया था कि भाजपा ने उनके 16 विधायकों को पाला बदलने के लिए 15-15 करोड़ का ऑफ़र दिया है।

उनकी इस शैली पर हमारे कुछ पत्रकार साथी जमकर फ़िदा थे और टीवी चैनलों पर बड़े ही फ़ख़्र से कहते थे कि भारतीय जनता पार्टी के शीर्षस्थ लोग केजरीवाल की सियासत को अभी तक नहीं समझ पाए हैं। केजरीवाल की इस सियासी शैली को भाजपा के लोग समझें या न समझें, दिल्ली की जनता ने अच्छी तरह समझ लिया कि कट्टर ईमानदारी और ज़मीन पर काम करनेवाली सरकार का चोला पहने लोग उन्हें किस क़दर मूर्ख समझकर रोज एक झूठ परोस रहे थे।

दिल्ली के रण में पटखनी खाने के बाद अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी के सामने पहाड़ जैसी चुनौतियाँ खड़ी हैं। शराब घोटाले के मामले में कोर्ट की तलवार उनके सर पर लटकी हुई है। आरोप बड़े ही संगीन हैं। सुनवाई के वक़्त हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों की सख़्त टिप्पणियों को देखें, तो केजरीवाल, मनीष सिसोदिया, संजय सिंह को लंबे समय के लिए जेल में रहना पड़ सकता है। शीशमहल, जल बोर्ड के अलावा और भी न जाने कितने घोटालों की फाइलें खुलेंगी, तो भाजपा सरकार उन पर कोई मुरव्वत नहीं करने वाली। अभी तक तो वे हर बार विक्टिम कार्ड खेलकर केन्द्र सरकार को दबाव में ले लेते थे। मगर जनता की अदालत में पराजित होने के बाद कोई भी विक्टिम कार्ड उन्हें नहीं बचा सकेगा।

इनके अलावा यमुना के जल में ज़हर मिलाने और विधायकों की खरीद फरोख्त के बेबुनियाद आरोपों पर भी हरियाणा सरकार और दिल्ली भाजपा की एफआईआर दर्ज हो चुकी हैं। उन पर बड़ी ही गंभीर धाराएँ लगाई गई हैं। दिल्ली जीतने के लिए केजरीवाल और उनकी टीम ने जिस तरह से सारी हदें पार की हैं, उनका खामियाज़ा उन्हें आनेवाले दिनों में भुगतना पड़ सकता है। इन सबसे ऊपर जनता के बीच उनकी विश्वसनीयता रसातल में पहुँच गई है। उसे बहाल करने के लिए उन्हें भगीरथ प्रयत्न करने पड़ेंगे। पिछले 12 वर्षों से केजरीवाल आम आदमी पार्टी को एकाधिकारवादी तौर तरीक़ों से चला रहे थे, मगर इस पराजय के बाद पार्टी के अंदर निश्चय ही उनकी ताक़त कम होगी। स्पष्ट है कि आम आदमी पार्टी को वापस पटरी पर लाने के लिए केजरीवाल को अब ख़ुद को पृष्ठभूमि में डालकर पार्टी की दूसरी पंक्ति को मैदान में उतारना पड़ेगा।

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