चुनावी सभाओं और इंटरनेट मीडिया तक सीमित रहा चुनाव प्रचार, झंडे, बैनर-पोस्टर गायब रहे।
दो दशक पहले तक चुनावी मौसम में इन दुकानों पर पैर रखने तक की जगह नहीं होती थी।

इंदौर. बुधवार शाम को चुनाव प्रचार थम गया. अब न तो हार्न बजाया जाएगा और न ही मतदाताओं से अपने पक्ष में वोट मांगने के लिए आम सभाएं होंगी। 17 नवंबर को सुबह 7 बजे से मतदाता मतदान कर लोकतंत्र के इस यज्ञ में अपनी आहुति देंगे। चुनाव आयोग ने 9 अक्टूबर को राज्य में चुनाव की तारीख का ऐलान किया था. 36 दिनों से चल रहा चुनाव प्रचार इस बार झंडे, बैनर, पोस्टर और पंपलेट से लगभग मुक्त था. इस बार प्रचार चुनावी सभाओं और इंटरनेट मीडिया तक ही सीमित रहा।
चुनाव आयोग की सख्ती का ही नतीजा है कि इस बार
चुनाव सामग्री बेचने वाली दुकानों पर प्रत्याशियों और उनके समर्थकों की भीड़ नहीं दिखी. जो सड़कें कभी पोस्टर, बैनर और पंपलेट से पटी रहती थीं, वे भी इस अभियान में साफ-सुथरी नजर आईं. चुनाव सामग्री का व्यापार भी पिछले चुनाव की तुलना में करीब 60 फीसदी कम हो गया |
इंदौर में चुनाव सामग्री की 100 से ज्यादा दुकानें हैं
दो दशक पहले तक चुनावी मौसम में इन दुकानों पर पैर रखने तक की जगह नहीं होती थी। प्रत्याशियों के समर्थक दिन भर इन दुकानों पर डेरा जमाये रहे. झंडे, पोस्टर, बैनर, टोपी, बैज आदि हजारों में नहीं बल्कि लाखों में बिके। दुकानदार भी पार्टियों के लिए झंडे, बैनर और टोपियां तैयार करने में 24 घंटे लगे रहे।
सैकड़ों कर्मचारी दिन-रात यह काम करते थे
समय बदला और इस चुनाव में हालात ऐसे बने कि न तो दुकानों पर भीड़ दिखी और न ही कर्मचारियों को 24-24 घंटे काम करना पड़ा। व्यापारियों का कहना है कि पिछले चुनाव की तुलना में कारोबार आधे से भी कम हो गया है |
वोटरों को जरूर मिली राहत
सड़कें सूनी, पोस्टर, बैनर और झंडों से अटी रहने से प्रत्याशी और उनके समर्थक भले ही परेशान थे, लेकिन आम वोटर को इससे राहत मिली. चुनाव सामग्री कारोबारी गिरधरलाल का कहना है कि चुनाव आयोग की सख्ती के बाद चुनाव सामग्री का कारोबार धीरे-धीरे कम हो रहा है, लेकिन इस बार गिरावट तेजी से हुई है |
व्यापारी अमित अग्रवाल का कहना है कि अब पार्टियां सीधे प्रचार सामग्री तैयार करवा कर प्रत्याशियों को उपलब्ध करवा देती हैं। आयोग की सख्ती से पहले ही व्यापार कम था अब पार्टियों के सीधे सामग्री भेजने से बचा हुआ व्यापार भी खत्म हो रहा है।
नुक्कड़ सभाओं और इंटरनेट मीडिया प्रचार का बढ़ रहा चलन
इस चुनाव में दोनों प्रमुख राजनीतिक दलों के उम्मीदवारों ने नुक्कड़ सभाओं और इंटरनेट मीडिया पर ज्यादा जोर दिया। यह भी एक कारण था कि प्रचार के पारंपरिक साधन जैसे पोस्टर, बैनर, झंडे, टोपी आदि कम लोकप्रिय हो गए।