बांग्लादेश में अनियंत्रित चरमपंथी

● नीरज मनजीत
मोहम्मद यूनुस बांग्लादेश के विद्वान अर्थशास्त्री और समाजसेवी हैं। उनकी इमेज पेश की गई है कि वे संवेदनशील उदारवादी शख़्स हैं। बांग्लादेश के निचले तबके के लोगों को ग़ुरबत से निकालने के लिए 2006 में उन्होंने माइक्रो फ़ाइनेंस की योजना तैयार की थी। इसके तहत उन नितांत छोटे उद्यमियों को कर्ज़ दिया जाता था, जो बैंकों से कर्ज़ पाने की पात्रता नहीं रखते थे। मसलन राजमिस्त्री, बढ़ई, रेहड़ीवाले, पॉलिश करनेवाले आदि। उनके प्रयत्नों से बांग्लादेश के बहुत-से ग़रीब परिवारों को कमाई का एक ज़रिया मिला था। इस नेक काम के लिए उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। इस पुरस्कार के अलावा उन्हें 2009 में यूनाइटेड स्टेट्स प्रेसिडेंशियल मेडल ऑफ़ फ़्रीडम और 2010 में कांग्रेसनल गोल्ड मेडल से भी सम्मानित किया गया था। फ़िलहाल वे बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के प्रमुख सलाहकार हैं। यह भी कहा जा सकता है कि बांग्लादेश की सत्ता की बागडोर मोहम्मद यूनुस के हाथों में है।
नाहिद इस्लाम, आसिफ़ महमूद और अबू बक़र मजूमदार ढाका यूनिवर्सिटी के वे छात्रनेता हैं। इन्होंने शेख हसीना की कथित तानाशाही के ख़िलाफ़ लड़ाई लड़ी और कथित तौर पर बांग्लादेश में “उदारवादी लोकतंत्र” की बहाली की है। शेख हसीना के तख़्तापलट के चार महीने बाद ये चारों तथाकथित “लोकतंत्रवादी महानुभाव” वातानुकूलित कमरों की खोह में बैठा दिए गए हैं और बांग्लादेश पर चरमपंथी उन्मादी भीड़ का कब्ज़ा है। इन चार महीनों में कट्टरपंथी जेहादियों ने एक विकसित होते सभ्य तरक़्क़ीपसंद देश को सैकडों मील पीछे धकेल दिया है। इस तख़्तापलट का सबसे बड़ा ख़ामियाज़ा बांग्लादेश के अल्पसंख्यक हिन्दू समुदाय को भुगतना पड़ रहा है। कोई ऐसा दिन नहीं होता, जब उन पर अत्याचारी हमले की ख़बर न आती हो। उन्हें मारा पीटा जा रहा है। उनके घरों दुकानों मंदिरों को जलाया जा रहा है। नौकरीपेशा हिंदुओं पर भी हमले हो रहे हैं। सड़कों पर उतरी उन्मादी भीड़ उन्हें बुरी तरह डरा रही है। मक़सद साफ़ है। ये उन्मादी भीड़ अल्पसंख्यक समुदाय को, जिनमें बौद्ध ईसाई सिख भी शामिल हैं, मारपीट कर डरा धमकाकर बांग्लादेश छोड़ने पर विवश करना चाहती है।
तख़्तापलट के बाद बांग्लादेश में अल्पसंख्यक समुदाय के ख़िलाफ़ विध्वंसक ख़ूनी माहौल बनाया जा रहा है। इसके मद्देनज़र एक बड़े जीनोसाइड की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता, जैसा कि 1947 में विभाजन के बाद और 1990 में कश्मीर में दिखाई पड़ा था।
जब अपने ऊपर हो रही क्रूरता और अन्याय का शांतिपूर्ण तरीक़े से प्रतिकार किया गया, तो देशद्रोह का आरोप लगाकर एक कृष्णभक्त संत चिन्मय कृष्ण दास और उनके दो साधु साथियों को जेल में डाल दिया गया। चिन्मय दास बांग्लादेश सनातन जागरण मंच के प्रमुख और इस्कॉन चटगाँव के अध्यक्ष हैं। बांग्लादेश का हिंदू समुदाय अपने लिए सिर्फ़ सम्मानजनक नागरिक अधिकार और पूजागृहों की सुरक्षा माँग रहा है। उनके अंदर हमारे यहाँ के अल्पसंख्यक समुदाय की तरह नाजायज़ आक्रामकता नहीं है।
फ़िलहाल बांग्लादेश में हालात यह हैं कि मोहम्मद यूनुस और छात्र नेताओं का “उदारवाद और लोकतंत्र की बहाली का इरादा” गर्त में जा चुका है और कट्टरपंथियों की हैवानियत सड़कों पर है। बांग्लादेश अब पाकिस्तान की राह पर चल निकला है। आईएसआई की सोच ने बांग्लादेशी जेहादियों के दिलोदिमाग़ पर कब्ज़ा कर लिया है। मोहम्मद यूनुस के मुख से बोल नहीं फूट रहे हैं। चरमपंथियों पर उनका कोई नियंत्रण नहीं है। जापान के मीडिया संस्थान निक्केई एशिया ने जब उनसे इंटरव्यू लिया, तो उन्होंने साफ़ इंकार कर दिया कि बांग्लादेश में हिंदुओं पर हमले हो रहे हैं। उल्टे उन्होंने भारत पर प्रोपेगैंडा फैलाने का इल्ज़ाम मढ़ दिया। बेशर्मी, ग़ैर जिम्मेदारी और झूठ से भरा इससे बड़ा और कोई बयान हो नहीं सकता। बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रही नृशंसता को सारी दुनिया देख रही है।
मोहम्मद यूनुस ने एक बार फिर साबित किया है कि शांति और स्वतंत्रता के लिए मिले सबसे बड़े पुरस्कार किसी को उदार नहीं बना सकते है और न ही उनमें मानवता, शांति और स्वतंत्रता के पक्ष में खड़े होने का सलीका पैदा कर सकते हैं।bसत्ता में बैठी कट्टरपंथियों की जमात अब भारत के ख़िलाफ़ ज़हर से भरे बड़बोले बयान दे रही है। सच बोलकर हिंदू अल्पसंख्यकों पर हो रही ज़्यादती को दिखानेवाले मीडिया संस्थानों पर बंदिश लगाने की योजनाएँ बनाई जा रही हैं। यह जमात इस बात से अनजान है कि भारत से कूटनीतिक और कारोबारी रिश्ते बिगाड़ने का नुक़सान बांग्लादेश को ही होगा। आईएसआई और पाकिस्तान के हुक्मरान बांग्लादेश को चीनी ख़ेमे में डालकर आगे ले जाने का सब्ज़बाग दिखा रहे हैं।
पिछले कई वर्षों से हम देख रहे हैं कि पाकिस्तान ने कट्टरवाद और आतंकवाद के रास्ते पर चलकर ख़ुद को कैसे बर्बाद कर लिया है। ऐसे देश के साथ चलकर बांग्लादेश कहाँ पहुँचेगा, इसका अंदाज़ा लगाना कोई मुश्क़िल काम नहीं है। इस मक़ाम पर यक्ष प्रश्न यह है कि क्या भारत को बांग्लादेश के ख़िलाफ़ युद्ध में उतरना पड़ सकता है? भारत के लिए संभवतः यह आख़िरी विकल्प होगा। मगर युद्ध की संभावना से इंकार भी नहीं किया जा सकता। बांग्लादेश के चरमपंथियों ने भारत को बेवजह उकसाने और हिंदुओं पर जुल्म का जो रास्ता चुना है, उसकी परिणति युद्ध पर भी हो सकती है।