506 साल पहले भोपाल में इस स्थान पर आए थे गुरुनानक देव, यहां पढ़ें पूरी कहानी......
गुरुदेव लगभग 506 वर्ष पहले आये थे, नानकदेव के पदचिन्हों की शिला आज भी विद्यमान है

भोपाल : राजधानी भोपाल के ईदगाह हिल्स क्षेत्र में बने गुरुद्वारा गुरुनानक टेकरी में गुरु नानकदेवजी का आगमन हुआ था। यहां उन्होंने एक कोढ़ी गणपत लाल की कोढ़ को ठीक किया था। जिस स्थान पर गुरु नानकदेव रुके थे, उसे अब गुरुद्वारा गुरुनानक टेकरी कहा जाता है। इतिहास के अनुसार राजा भोज का दरबारी गणपत लाल था। उसके पूरे शरीर पर कोढ़ हो गई थी। वह जंगल में झोपड़ी बनाकर रहने लगा। एक दिन जब पीर जलालुद्दीन यहां से गुजरे तो गणपत ने उनके पैर पकड़ लिए। जलालुद्दीन ने कहा, तुम्हारा उद्धार सिर्फ नानक बाबा ही करेंगे। इसके बाद गणपत गुरुनानकजी का ध्यान करने लगा। पुकार सुनकर गुरुदेव यहां पहुंच गए। गणपत ने पीड़ा से मुक्ति के लिए गुहार लगाई। तब गुरुदेव ने जल मांगा। आसपास जल नहीं मिला तो गुरुदेव ने कहा कि पहाड़ी के नीचे जल है।
नानकजी के चरण चिह्न वहां दिखाई दे रहे
इसके बाद वहां से पानी लाकर गणपत पर छिड़का और वह बेहोश हो गया। आंख खुली तो उसे कोढ़ से मुक्ति मिल चुकी थी, लेकिन गुरुदेव वहां नहीं थे। हालांकि नानकजी के चरण चिह्न वहां दिखाई दे रहे थे। आज भी यहां गुरु नानकदेव के चरणों के निशान विद्यमान हैं, जहां हजारों लोग पहुंचकर माथा टेकते हैं। इसी प्रकार जिस स्थान से पानी लाया था और कोढ़ी की कोढ़ ठीक हुई थी वहां अब माऊली साहिब गुरुद्वारा है।
तैयार हो रहा कॉरिडोर: गुरुद्वारा टेकरी साहिब, गुरुद्वारा माऊली साहिब से गुरुनानक देवजी का इतिहास जुड़ा है। गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के अध्यक्ष परमवीर सिंह वजीर ने बताया, गुरुद्वारों को जोडऩे कॉरिडोर तैयार किया जा रहा है। गुरुद्वारा टेकरी साहिब में रियायती दरों पर पैथोलॉजी लैब संचालित है। सिख बच्चों के लिए नि:शुल्क कोचिंग सुविधा है। महिलाओं के लिए योगा सेंटर, एक्यूप्रेशर पार्क आदि हैं।
नानक नाम जहाज है, चढ़े सो उतरे पार…
सिखों के प्रथम गुरु नानकदेव जी का जन्म तब हुआ जब भारत बाहर के साथ ही आंतरिक चुनौतियों से जूझ रहा था। समाज की स्थिति दयनीय थी। मध्ययुगीन काल में भारत के लगभग सभी हिस्सों में संत और धर्मगुरु समाज को एक करने, समरस करने के प्रयास में लगे थे। उसी कालखंड में 1469 में कार्तिक पूर्णिमा को गुरु नानकदेव जी का जन्म पंजाब के ननकाना (अब पाकिस्तान) में हुआ। विश्व कल्याण के लिए उन्होंने पूरी दुनिया में लगभग ८० हजार किलोमीटर की यात्रा कर धर्म का संदेश दिया। भ्रमण के दौरान उन्होंने ग्वालियर से मध्यप्रदेश में प्रवेश किया। भोपाल, खंडवा, उज्जैन, ओंकारेश्वर, बैतूल सहित छह जिलों की यात्राएं कीं। नानकजी के प्रकाश पर्व पर हम बता रहे हैं मप्र के प्रमुख गुरुद्वारों के महत्त्व के बारे में… ये वो जगह हैं, जहां गुरुदेव का आगमन हुआ था।
बेटमा साहिब गुरुद्वारा.. यहां पानी हो गया मीठा
इधर, इंदौर का बेटमा गुरुद्वारा साहिब देशभर में प्रसिद्ध है। यहां 12 महीने अटूट लंगर चलता रहता है। लगभग 500 वर्ष पूर्व गुरुनानक देवजी अपनी दूसरी उदासी (जन कल्याण भ्रमण यात्रा) पर इस स्थान पर आए थे। बेटमा गुरुद्वारा में कुआं है। पहले यहां का पानी खारा होता था। गुरुनानक देव के समक्ष गांव के लोगों ने समस्या रखी तो खारा पानी मीठे में बदल गया। तवारीख गुरु खालसा में इस बात का जिक्र है कि गुरु नानक देव आबू पहाड़ से उतरकर सतनाम का बीज बीजते हुए यहां पहुंचे। इस इलाके में आतंक के लिए पहचाने जाने वाले एक वर्ग को अहिंसा का उपदेश दिया। यह स्थान गुरु नानक चरणपादुका के नाम से 1964 में श्री गुरु सिंघ सभा, इंदौर के तहत रजिस्टर्ड है। 1964 में इस स्थान की सेवा श्री गुरु सिंघ सभा इंदौर द्वारा ली गई।
नानकजी ने इमली के पेड़ के नीचे दिया था संदेश इंदौर के यशवंत रोड चौराहा स्थित इमली साहिब गुरुद्वारे का इतिहास गुरुनानक देव से जुड़ा है। श्री गुरु सिंघ सभा इंदौर द्वारा विशाल और सुंदर गुरुद्वारे का निर्माण किया गया है। गुरुद्वारा साहिब के साथ ही श्रीगुरु रामदास सराय बनाई गई है, जिसमें संगतों के रुकने के लिए व्यवस्थित कमरे हैं। गुरु का लंगर भी निरंतर चलता रहता है। गुरु नानकदेव संवत 1568 को उनकी दूसरी उदासी (जन कल्याण भ्रमण यात्रा) के दौरान दक्षिण से इंदौर आए। कान्ह नदी के किनारे इमली के वृक्ष के नीचे उन्होंने अपना आसन लगाया। शब्द की महत्ता का वर्णन किया। भाई मरदाने की रबाब के साथ गुरु के अमृत रूपी वचन सुनकर इंदौर की संगतें निहाल हुईं। होलकर स्टेट की रक्षा के लिए जो फौजी पंजाब से आए थे, उन्होंने यहां की सेवा संभाली थी।