हरिद्वार: हरि अर्थात ईश्वर का द्वार
अशोक ‘प्रवृद्ध’
भारतीय सभ्यता-संस्कृति के उद्भव एवं विकास में महत्वपूर्ण स्थान रखने वाले हरिद्वार, प्रयाग, काशी,गया आदि गंगा तट पर अवस्थित स्थल सिर्फ तीर्थ ही नहीं वरन प्रभावशाली विद्या-केन्द्र भी रहे हैं। गंगा के उपकूलों पर ही धर्म, ज्ञान-विज्ञान, साहित्य एवं कला-कौशलों की श्रीवृद्धि हुई। उत्तर भारतवर्ष के अधिकाँश व्यापारिक नगर एवं औद्योगिक केन्द्र गंगा-तट पर ही अवस्थित हैं। भारतीय सभ्यता-संस्कृति को निरन्तर प्रवाहमान बनाए रखने के निमित्त हिन्दुओं के संग्रह केन्द्र अर्थात जमावड़े के रूप में निर्मित चार कुम्भ स्थलों में से दो कुम्भ स्थल प्रयाग और हरिद्वार गंगा के किनारे हैं। भारत के उत्तराखण्ड प्रान्त के हरिद्वार जिले का पवित्र नगर तथा प्रमुख तीर्थस्थल प्राचीन नगरी हरिद्वार हिन्दुओं के सात पवित्र स्थलों में से एक है।
हरिद्वार का अर्थ है- हरि अर्थात ईश्वर का द्वार। समुद्र तल से 3139 मीटर की ऊंचाई पर अवस्थित गंगा नदी के स्त्रोत गंगोत्री हिमनद गोमुख से निकलकर 253 किलोमीटर की यात्र कर गंगा नदी हरिद्वार के मैदानी क्षेत्र में प्रवेश करती है। भारतीय संस्कृति और सभ्यता के बहुरूपदर्शन का अक्षरश: प्रतिविम्ब प्राकृतिक दृष्टि से स्वर्ग समान सुंदर हरिद्वार उत्तराखंड के चार धाम – बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री यात्र के लिए प्रवेश द्वार भी है। यही कारण है कि शैव और वैष्णव पन्थ के अनुयाई इसे क्र मश: हरद्वार और हरिद्वार के नाम से पुकारते हैं। हर अर्थात शिव- केदारनाथ और हरि अर्थात विष्णु- बद्रीनाथ तक जाने का द्वार।
महाभारत के वनपर्व 84-27 से 3० में देवर्षि नारद भीष्म-पुलस्त्य संवाद के रूप में युधिष्ठिर को भारतवर्ष के तीर्थ स्थलों के वर्णन में गंगाद्वार अर्थात हरिद्वार और कनखल के तीर्थों का उल्लेख करते हुए गंगाद्वार को स्वर्गद्वार के समान बताते हुए कहते हैं कि इसमें संशय नहीं कि गंगाद्वार (हरिद्वार) स्वर्गद्वार के समान है। वहाँ एकाग्रचित्त होकर कोटितीर्थ में स्नान करने वाला मनुष्य पुण्डरीकयज्ञ का फल पाता और अपने कुल का उद्धार कर देता है। वहाँ एक रात निवास करने से सहस्त्र गोदान का फल मिलता है। सप्तगंग, त्रिगंग, और शक्र ावर्त तीर्थ में विधिपूर्वक देवताओं तथा पितरों का तर्पण करने वाला मनुष्य पुण्य लोक में प्रतिष्ठित होता है। तदनन्तर कनखल में स्नान करके तीन रात उपवास करने वाला मनुष्य अश्वमेध यज्ञ का फल पाता और स्वर्ग लोक में जाता है।
यही बात किंचित पाठभेद के साथ पद्मपुराण आदिखण्ड, 28-27से3० में भी कही गई है। इससे स्पष्ट है कि अत्यंत प्राचीन काल से हरिद्वार में पाँच तीर्थों की विशेष महिमा मण्डन की जाती रही है। गंगाद्वार, कुशावर्त, बिल्वक तीर्थ, नील पर्वत तथा कनखल में स्नान करके पापरहित हुआ मनुष्य स्वर्गलोक को जाता है।
इनमें से हरिद्वार (मुख्य) के दक्षिण में कनखल तीर्थ विद्यमान है, पश्चिम दिशा में बिल्वकेश्वर या कोटितीर्थ है, पूर्व में नीलेश्वर महादेव तथा नील पर्वत पर ही सुप्रसिद्ध चण्डीदेवी,अंजनादेवी आदि के मन्दिर हैं तथा पश्चिमोत्तर दिशा में सप्तगंग प्रदेश या सप्त सरोवर (सप्तर्षि आश्रम) है। इन स्थलों के अतिरिक्त भी हरिद्वार में अनेक प्रसिद्ध दर्शनीय स्थल हैं।
पौराणिक कथाओं के अनुसार सूर्यवंशी राजा सगर के प्रपौत्र और श्रीराम के पूर्वज भगीरथ ने गंगा को सतयुग में वर्षों की तपस्या के पश्चात अपने साठ हजार पूर्वजों के उद्धार और कपिल ऋषि के शाप से मुक्त करने के लिए के लिए पृथ्वी पर और फिर हरिद्वार तक लाया। कालिदास ने मेघदूत में कनखल का उल्लेख किया है, लेकिन हरिद्वार का नहीं। इतिहासज्ञ इससे मिलते-जुलते अथवा निकटस्थ नामों का उल्लेख मायापुर, गंगा-द्वार आदि के रूप में करते हैं परन्तु गंगाद्वार नाम अत्यंत प्राचीन प्रतीत होता है क्योंकि यहीं पर गंगा सर्वप्रथम मैदानों में उतरी है तथा यहाँ से ही हिमालय जो हरि का देश कहलाता है, प्रारम्भ होता है। यही कारण है कि इस स्थान का नाम हरिद्वार प्रसिद्ध हुआ है।
मान्यता है कि हरिद्वार का वह स्थान जहाँ पर अमृत की बूंदें गिरी थीं, वह हर की पौड़ी ही है जहाँ पर वर्तमान में ब्रह्म कुण्ड की अवस्थिति है। यही कारण है कि हर की पौड़ी हरिद्वार का सबसे पवित्र घाट माना जाता है जहाँ भारत से भक्तों और तीर्थयात्रियों के समूह के समूह त्योहारों या पवित्र दिवसों के अवसर पर स्नान करने के लिए आते हैं। यहाँ स्नान करना मोक्ष प्राप्त करवाने वाला माना जाता है।
पद्मपुराण के उत्तर खंड 22- 18, 19, 25, 26, 27 में गंगा-अवतरण प्रसंग में हरिद्वार की महिमा गान व प्रशंसा के साथ ही उसके सर्वश्रेष्ठ तीर्थ होने की घोषणा करते हुए कहा गया है कि भगवान विष्णु के चरणों से प्रकट हुई गंगा जब हरिद्वार में आई, तब वह देवताओं के लिए भी दुर्लभ श्रेष्ठ तीर्थ बन गया। जो मनुष्य उस तीर्थ में स्नान तथा विशेष रूप से श्रीहरि के दर्शन करके उन की परिक्र मा करते हैं वह दु:ख के भागी नहीं होते। वह समस्त तीर्थों में श्रेष्ठ और धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष रूप चारों पुरुषार्थ प्रदान करने वाला है। जहां अतीव रमणीय तथा निर्मल गंगा जी नित्य प्रवाहित होती हैं। उस हरिद्वार के पुण्यदायक उत्तम आख्यान को कहने सुनने वाला पुरुष सहस्त्रों गोदान तथा अश्वमेध यज्ञ करने के शाश्वत फल को प्राप्त करता है।
मायापुर में माया देवी का मंदिर पत्थर का बना हुआ है। इस मंदिर में माया देवी की मूर्ति स्थापित है। इस मूर्ति के तीन मस्तक और चार हाथ हैं। मान्यता है कि यहाँ मरनेवाला प्राणी परमपद पाता है और स्नान से जन्म-जन्मांतर का पाप कट जाता है और परलोक में हरिपद की प्राप्ति होती है। सातवीं शताब्दी में हरिद्वार आए ह्वेनसांग ने इसका उल्लेख मोन्यू-लो नाम से किया है। मोन्यू-लो को हरिद्वार के निकट स्थित आधुनिक मायापुरी गाँव समझा जाता है, जहां आज भी प्राचीन किलों और मंदिरों के अनेक खंडहर विद्यमान हैं। हरिद्वार में हर की पौड़ी के निकट कुछ महात्माओं के साधना स्थल, गुफाएँ और छिटफुट मठ-मंदिर के रूप में सबसे प्राचीन आवासीय प्रमाण मिले हैं। भर्तृहरि की गुफा और नाथों का दलीचा काफी प्राचीन स्थल माने जाते हैं। उसके पश्चात हर की पौड़ी, ब्रह्मकुंड के बीचोंबीच स्थित सवाई राजा मानसिंह द्वारा बनवाई गई छतरी, जिसमें उनकी समाधि भी अवस्थित है। यह छतरी निर्मित ऐतिहासिक भवनों में इस क्षेत्र का सबसे प्राचीन निर्माण माना जाता है। इसके बाद इसकी मरम्मत, रंग -रोगण आदि होती रही है।
उसके बाद से विगत लगभग तीन सौ- साढ़े तीन सौ वर्ष पूर्व से यहां गंगा के किनारे मठ-मंदिर, धर्मशाला और कुछ राजभवनों के निर्माण की प्रक्रि या शुरु हुई परन्तु तीर्थ के रूप में यह अत्यंत प्राचीन स्थल है। पहले यहाँ पर पंडे-पुरोहित दिनभर यात्रियों को तीर्थों में पूजा और कर्मकांड इत्यादि कराते थे अथवा स्वयं पूजा-अनुष्ठान इत्यादि करते थे तथा सूरज छिपने से पूर्व ही वहाँ से लौट कर अपने-अपने आवासों को चले जाते थे। उनके आवास निकट के कस्बों कनखल, ज्वालापुर इत्यादि में थे। मत्स्य पुराण अध्याय 1०7, श्लोक-54, पद्मपुराणम्, स्वर्ग खण्ड, 43- 54,55 आदि पुराणों में हरिद्वार, प्रयाग तथा गंगासागर में गंगा की सर्वाधिक महिमा गान करते हुए कहा गया है कि गंगा सर्वत्र तो सुलभ है परंतु गंगाद्वार प्रयाग और गंगासागर-संगम में दुर्लभ मानी गयी है। इन स्थानों पर स्नान करने से मनुष्य स्वर्ग लोक को चले जाते हैं और जो यहां शरीर त्याग करते हैं उनका तो पुनर्जन्म होता ही नहीं अर्थात वे मुक्त हो जाते हैं। हरिद्वार में दर्शनीय स्थल ले रूप में हर की पौड़ी, चण्डी देवी मन्दिर, मनसा देवी मन्दिर, माया देवी मन्दिर, वैष्णो देवी मन्दिर, भारतमाता मन्दिर, सप्तर्षि आश्रम अथवा सप्त सरोवर, शान्तिकुंज स्थित गायत्री शक्तिपीठ, कनखल, पारद शिवलिंग, दिव्य कल्पवृक्ष वन आदि विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं।