इजरायल-ईरान युद्ध एक पखवाड़े और चला तो भारतीयों का रसोइयों के चूल्हे ठंडे हो सकते ……

नई दिल्ली
इजरायल-ईरान युद्ध के बीच कहा जा रहा है कि भारतीयों के में घरों में चूल्हा ठंडा हो सकता है। ऐसा इसलिए कहा जा रहा है कि भारत में खाना बनाने के लिए इस्तेमाल होने वाले कुल लिक्विफाइड पेट्रोलियम गैस या LPG में से लगभग दो-तिहाई पश्चिम एशिया से आता है। इंडस्ट्री के लोगों का कहना है कि अगर क्षेत्रीय तनाव के कारण सप्लाई में रुकावट आती है, तो सबसे पहले आम आदमी प्रभावित होंगे। यह राजनीतिक रूप से भी बहुत संवेदनशील मामला है।
सप्लाई बाधित होने की आशंका

ईरान के परमाणु ठिकानों पर अमरीकी हमलों ने दुनिया के सबसे बड़े तेल उत्पादक क्षेत्र से सप्लाई बाधित होने की आशंका बढ़ा दी है। ऐसी स्थिति से निपटने की योजना बनाते समय, भारतीय नीति निर्माताओं और इंडस्ट्री के लीडर्स ने यह माना है कि सभी ईंधन एक जैसे खतरे वाले नहीं हैं। अगर पश्चिम एशिया में तनाव बढ़ता है तो LPG सबसे ज्यादा खतरे में है।

10 सालों में दोगुना

इस समय एलीपीजी के घरेलू कनेक्शन ही देखें तो 33 करोड़ से ज्यादा हैं। पिछले 10 सालों में, भारत में LPG का इस्तेमाल दोगुने से भी ज्यादा हो गया है। सरकार द्वारा इसे बढ़ावा भी खूब दिया जा रहा है। अपने यहां इसका पर्याप्त उत्पादन हो नहीं पाता है। इससे देश की आयात पर निर्भरता बढ़ गई है। भारत में लगभग 66% LPG विदेशों से आता है, और उसमें से लगभग 95% पश्चिम एशिया से आता है, जिसमें मुख्य रूप से सऊदी अरब, UAE और कतर शामिल हैं।

केवल 16 दिन का ही स्टॉक

पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, भारत में आयात टर्मिनलों, रिफाइनरियों और बॉटलिंग प्लांट्स में LPG का इतना स्टोरेज है कि वह राष्ट्रीय औसत खपत को केवल लगभग 16 दिनों तक ही कवर कर सकता है। मतलब कि यदि एक पखवाड़े भी यदि युद्ध और खिंच जाता है तो भारतीयों के चूल्हे ठंडे होने से कोई रोक नहीं सकता है।

रिफाइनरियों से कोई पैनिक बाइंग नहीं

हालांकि, पेट्रोल और डीजल के मामले में देश की स्थिति काफी बेहतर है। भारत पेट्रोल और डीजल दोनों का नेट एक्सपोर्टर है। यह अपनी घरेलू पेट्रोल खपत का लगभग 40% और अपनी डीजल खपत का लगभग 30% एक्सपोर्ट करता है। इसलिए जरूरत पड़ने पर एक्सपोर्ट की मात्रा को घरेलू बाजार में भेजना आसान है। LPG को अमेरिका, यूरोप, मलेशिया और अफ्रीका के कुछ हिस्सों जैसे विकल्पों से भी प्राप्त किया जा सकता है, लेकिन इन आपूर्तिकर्ताओं से शिपमेंट आने में अधिक समय लगेगा।

पाइपाइन की पहुंच कितने घरों तक

इस बीच, भारत में केवल 1.5 करोड़ घरों में ही पाइपलाइन से प्राकृतिक गैस (PNG) उपलब्ध है। इसलिए यह देश के 33 करोड़ LPG कनेक्शनों के लिए एक व्यावहारिक विकल्प नहीं है। ज्यादातर जगहों पर सार्वजनिक वितरण प्रणाली से केरोसिन की सप्लाई बंद होने के बाद, शहरों में LPG की कमी होने पर इलेक्ट्रिक कुकिंग ही एकमात्र व्यवहार्य विकल्प बचा है।

क्रूड ऑयल का भंडार कितने दिनों का

क्रूड ऑयल या कच्चे तेल के लिए, रिफाइनरियों, पाइपलाइनों, जहाजों और राष्ट्रीय रणनीतिक पेट्रोलियम रिजर्व (SPR) में इन्वेंट्री लगभग 25 दिनों तक रिफाइनरी संचालन को बनाए रख सकती है। इजरायल-ईरान संघर्ष के बीच रिफाइनरियों ने पैनिक बाइंग से परहेज किया है, क्योंकि उन्हें विश्वास है कि सप्लाई बाधित होने की संभावना नहीं है।

सतर्क रहना होगा

 "अगर हम अभी ऑर्डर देते हैं, तो डिलीवरी अगले महीने या उसके बाद तक नहीं आएगी।' इसके अलावा, हमारे पास अतिरिक्त बैरल स्टोर करने की सीमित क्षमता है। जब व्यवधान का जोखिम कम हो तो वर्किंग कैपिटल को बांधने का कोई मतलब नहीं है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि सतर्क रहें और यह सुनिश्चित करें कि घरेलू उपभोक्ताओं को सुरक्षित रखा जाए।" एग्जीक्यूटिव्स को यह भी उम्मीद है कि कच्चे तेल की कीमतों में कोई भी उछाल थोड़े समय के लिए ही रहेगा, क्योंकि वैश्विक बाजार की गतिशीलता नरम मूल्य निर्धारण की ओर झुकी हुई है। एक अन्य एग्जीक्यूटिव ने कहा, "'तेल बाजार ने भू-राजनीतिक झटकों के साथ जीना सीख लिया है। यूक्रेन पर आक्रमण या गाजा संघर्ष जैसी घटनाओं के बाद कीमतें तेजी से बढ़ती हैं, लेकिन अंततः आर्थिक वास्तविकताएं हावी होने पर स्थिर हो जाती हैं।" इसका मतलब है कि दुनिया ने मुश्किल हालातों में भी तेल का बाजार चलाना सीख लिया है। कुछ घटनाओं के बाद कीमतें बढ़ती हैं, लेकिन फिर सामान्य हो जाती हैं।

India Edge News Desk

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