भारतीय चिंतन में विद्यमान हैं नवजागरण

डा. वेदप्रकाश
नूतन चेतना का स्फुरण ही नवजागरण का मूल है। नवजागरण की प्रक्रिया निरंतर चलती रहती है। देश,काल, वातावरण के अनुसार इसके स्वरूप में परिवर्तन होता है। व्यक्ति, समाज एवं राष्ट्र की आवश्यकताएं एवं चुनौतियाँ उसे नवजागरण हेतु प्रेरित करती हैं। सामूहिक चेतना व भागीदारी, सामर्थ्य का बोध, संकल्प और पुरुषार्थ की पराकाष्ठा नवजागरण को गति प्रदान करते हैं। भारतीय चिंतन में नवजागरण के सूत्रा चहुं ओर विद्यमान हैं। सूर्य,चंद्रमा,पतझड़,वसंत के रूप में समूची प्रकृति नवजागरण की ही सूचना देती है।
वैदिक चिंतन- तमसो मा ज्योतिर्गमय के माध्यम से व्यक्ति को अंधकार से मुक्ति व प्रकाश की ओर ले जाने का आवाह्न है तो उपनिषद- उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत के माध्यम से उठने,जागने और अप्राप्य को प्राप्त करने का संदेश देता है। तदुपरांत गौतम बुद्ध के आविर्भाव और बुद्ध धर्म की देश- विदेश में व्यापक स्वीकृति नवजागरण का ही सूचक है। इतिहास के मध्यकाल में जहाँ विदेशी आक्रांताओं द्वारा भ्रम और भय का वातावरण बनाया गया, उस दौर में भी गोस्वामी तुलसीदास, कबीरदास,सूरदास, रविदास एवं गुरु नानक जैसे संत और कवियों ने भिन्न-भिन्न रूपों में न केवल जन जागरण द्वारा सामाजिक विकृतियों के निवारण का प्रयास किया अपितु अपनी सनातनता के बोध एवं रक्षा का भी संदेश दिया।
भारतवर्ष के लिए ब्रिटिश शासन का कालखंड भी भिन्न-भिन्न रूपों में अन्याय, अत्याचार एवं शोषण का था किंतु राजा राममोहन राय, स्वामी दयानंद सरस्वती, रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद जैसे महापुरुषों ने विभिन्न रूपों में जन जागरण का काम किया। साहित्य की दृष्टि से नवजागरण के अग्रदूत भारतेंदु हरिश्चंद्र ने जहाँ एक ओर अपने नाटकों के माध्यम से नवजागरण का संचार किया वहीं भारतवर्ष की उन्नति कैसे हो सकती है? जैसे भाषणों से भी जन जागरण का काम किया। स्वाधीनता आंदोलन में अनेक बलिदानियों का त्याग जहाँ महत्वपूर्ण रहा, वहीं गांधीजी के नेतृत्व में स्वाधीनता हेतु व्यापक जनभागीदारी नवजागरण का ही नया रूप थी।
नवजागरण की यह प्रक्रिया लगभग प्रत्येक सौ वर्ष बाद भिन्न-भिन्न रूपों में और भिन्न-भिन्न कारणों से आकार लेती दिखाई देती है। स्वामी विवेकानंद ने कहा था- विश्व को आध्यात्मिकता का अपना संदेश देने की क्षमता प्राप्त करने के लिए भारत का पुनर्निर्माण आवश्यक है। इस पुनर्निर्माण के लिए उन्होंने चार आयाम बताए थे- एकत्व के शाश्वत सिद्धांतों को आत्मसात करना, इन सिद्धांतों के आधार पर व्यवस्थाओं का विकास और पुनर्निर्माण, त्याग करो। महान त्याग से ही महान कार्य संपन्न होते हैं। राष्ट्र निर्माण का उद्देश्य कभी विस्मृत न होने दो। आज भारतवर्ष इन आयामों की ओर बढ रहा है। नवजागरण के संदर्भ में यह विचार का विषय है कि भारतीय नवजागरण कभी किसी विदेशी व्यक्ति अथवा विचार से नहीं आया है अपितु वह हमारी अपनी ही आवश्यकताओं, परिस्थितियों अथवा प्रयासों से आकार लेता रहा है।
ध्यातव्य है कि स्वाधीनता के सात दशक बाद पिछले कुछ वर्षों में अनेक परिवर्तन हुए हैं। जनसामान्य में स्व चेतना का जागरण, पुरुषार्थ की पराकाष्ठा एवं संकल्पों के नए रूप आकार ले रहे हैं। नया भारत, समर्थ भारत, आत्मनिर्भर भारत, वैभवशाली भारत एवं विकसित भारत जैसे आवाह्न इस नवजागरण को गति दे रहे हैं। अतीत के प्रति नवीन दृष्टि, गुलामी की मानसिकता से मुक्ति, विरासत पर गर्व, महापुरुषों के बलिदानों का स्मरण, तीर्थ एवं ऐतिहासिक स्थलों का जीर्णोद्धार, सांस्कृतिक गौरव की पुर्नस्थापना, राजनीतिक नेतृत्व की नवीन कार्यपद्धति, महिला सशक्तिकरण एवं भागीदारी, सबका साथ-सबका विकास- सबका विश्वास के सहारे जनभागीदारी का आवाह्न करते हुए अंत्योदय का संकल्प, वसुधैव कुटुंबकम की भावना एवं सर्वे भवंतु सुखिन की कामना के साथ मानवता के सुख-दुख से सरोकार, लोकल से ग्लोबल का विजन, बुनियादी सुविधाओं में आमूलचूल परिवर्तन, ग्रामोदय से भारतोदय का विचार, राष्ट्रीय शिक्षा नीति के माध्यम से शिक्षा का भारतीयकरण, तकनीक का व्यापक प्रयोग, डिजिटलीकरण, रोडवेज, रेलवेज, वाटरवेज एवं एयरवेज के माध्यम से यातायात के साधनों का व्यापक विकास आदि ऐसे विभिन्न बदलाव अथवा विचार हैं जो नवजागरण की ओर बढ़ते भारतवर्ष की सूचना दे रहे हैं।
पूर्व राष्ट्रपति डा. अब्दुल कलाम ने अपने एक भाषण में कहा था- हमारे देश में हम लोगों को अपने स्वयं के प्रति, अपने देश, समाज के प्रति विश्वास जागृत करने की आवश्यकता है। लोकशक्ति के जागरण के लिए हमें अपनी प्राचीन संस्कृति के संस्कारों का पुनर्जीवन करना पड़ेगा। आज भिन्न-भिन्न रूपों में लोकशक्ति का जागरण दिखाई दे रहा है। नवजागरण के लिए यह आवश्यक है कि हम स्व देश,स्व भाषा, स्व धर्म, स्व संस्कृति व स्व विचार से परिचित हों। पिछले कुछ वर्षों में हिंदी सहित भारतीय भाषाओं का महत्व और प्रयोग बढ़ा है। भारतीय ज्ञान परंपरा के प्रचार प्रसार हेतु अनेक कार्यक्रम चलाए गए हैं। भारतीय संस्कृति और उससे संबंधित अनेक आयाम भी निरंतर व्यापक हो रहे हैं। प्रत्येक व्यक्ति आशाओं की पूर्ति करते हुए आकांक्षाओं की ओर अग्रसर है।
विश्व समुदाय आर्थिक सहयोग, आतंकवाद से मुक्ति, जलवायु परिवर्तन, पर्यावरण संरक्षण एवं आपसी शांति जैसे विभिन्न महत्वपूर्ण मुद्दों पर न केवल भारत से समाधान की अपेक्षा कर रहा है अपितु सहयोग के साथ आगे बढ़कर काम करने को आतुर है। विश्व का भारत की ओर देखने का नजरिया बदल रहा है। आज भारतवर्ष संकट एवं आवश्यकता के समय न केवल अपनी पूर्ति कर रहा है अपितु विश्व के विभिन्न देशों को दवाइयां, खाद्यान्न एवं अन्य आवश्यक की आपूर्ति के लिए भी संकल्पबद्ध होकर आगे बढ़ रहा है।
15 अगस्त 2022 को लालकिले की प्राचीर से प्रधानमंत्राी नरेंद्र मोदी ने कहा था- देश का हर नागरिक चीजें बदलना चाहता है। वह गति चाहता है, वह प्रगति चाहता है। भारत में सामूहिक चेतना का पुनर्जागरण हुआ है, पुरुषार्थ की पराकाष्ठा जुड़ रही है और सिद्धि का मार्ग नजर आ रहा है। यह पुनर्चेतना, पुनर्जागरण का पल है।
आज नवजागरण की ओर बढ़ते भारतवर्ष के लिए यह महत्वपूर्ण है कि हम सभी जाति, संप्रदाय, क्षेत्राीयता आदि की संकीर्णता, आरोप-प्रत्यारोप एवं निहित स्वार्थों की राजनीति से मुक्त होकर विकसित भारत के स्वप्न एवं संकल्प हेतु अपनी सकारात्मक सहभागिता सुनिश्चित करें। Renaissance exists in Indian thought