भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने एक बार फिर पूरी दुनिया में अपनी सफलता और मेहनत का डंका बजाया

बेंगलुरु
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने एक बार फिर पूरी दुनिया में अपनी सफलता और मेहनत का डंका बजाया है। उसने रॉकेट इंजनों के लिए हल्का नोजल तैयार किया है। इसरो ने मंगलवार को कहा कि उसने रॉकेट इंजनों के लिए हल्के कार्बन-कार्बन (सी-सी) नोजल को सफलतापूर्वक विकसित किया है, जो रॉकेट इंजन तकनीक में एक नई पहल है। इसरो ने कहा है कि हल्के नोजल से अब रॉकेट की पेलोड क्षमता में बढ़ोत्तरी हो सकेगी।

इसरो ने एक विज्ञप्ति जारी कर यह जानकारी दी है। उसके मुताबिक, यह नवाचार तिरुवनंतपुरम स्थित विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र (VSSC) द्वारा तैयार किया गया है। इसके जरिए रॉकेट इंजनों के महत्वपूर्ण मापदंडों को बढ़ावा मिल सकेगा। इसमें थ्रस्ट लेवल, स्पेशिफिक इम्पल्स और थ्रस्ट एवं वजन अनुपात शामिल है। इसरो के मुताबिक इन बदलावों से रॉकेट की पेलोड क्षमता में वृद्धि होगी।

अंतरिक्ष एजेंसी ने कहा है कि नोजल डायवर्जेंट बनाने के लिए कार्बन-कार्बन (सी-सी) कंपोजिट जैसी उन्नत सामग्रियों का इस्तेमाल किया गया है जो असाधारण गुण प्रदान करते हैं। इसमें कहा गया है कि हरे कंपोजिट के कार्बोनाइजेशन, रासायनिक वाष्प  और उच्च तापमान उपचार जैसी प्रक्रियाओं का उपयोग करके, इसने कम घनत्व, उच्च विशिष्ट शक्ति और उत्कृष्ट कठोरता के साथ एक नोजल तैयार किया है, जो ऊंचे तापमान पर भी यांत्रिक गुणों को बनाए रखने में सक्षम है।

विज्ञप्ति में कहा गया है कि सी-सी नोजल की एक प्रमुख विशेषता इसकी सिलिकॉन कार्बाइड की विशेष एंटी-ऑक्सीडेशन कोटिंग है, जो ऑक्सीडायजिंग वातावरण में इसकी परिचालन सीमा को बढ़ाती है। इसरो के अनुसार, यह नवाचार न केवल थर्मल प्रेरित तनाव को कम करेगा बल्कि रॉकेट लॉन्चिंग के दौरान होने वाली कोरिजन अवरोध को भी बढ़ाएगा, जिससे प्रतिकूल वातावरण में विस्तारित परिचालन तापमान सीमा को सहने की शक्ति मिल सकेगी।

इसरो ने कहा है कि इस नई तकनीकि से निर्मित नोजल का इस्तेमाल विशेष रूप से वर्कहॉर्स लांचर, ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (PSLV) के लिए हो सकेगा। इसरो के मुताबिक, PSLV का चौथा चरण, PS4 में फिलहाल कोलंबियम मिश्र धातु से बने नोजल वाले जुड़वां इंजन लगे हैं। अंतरिक्ष एजेंसी ने कहा कि धातुओं से बने इन नोजल की जगह उनके समकक्ष तैयार किए गए सी-सी हल्के नोजल को लगाकर लगभग 67 फीसदी का भार कम किया जा सकता है।

 

India Edge News Desk

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