बच्चों के बिना जीवन को पूर्णता प्राप्त नहीं हो सकती
पिंकी सिंघल
कहा जाता है कि बच्चे ईश्वर का दूसरा रुप होते हैं और जिस घर में बच्चों की किलकारियां गूंजती हैं,उस घर में ईश्वर साक्षात निवास करते हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि बच्चों के बिना घर सूना सूना लगता है, बिना बच्चों के घर घर नहीं, केवल मकान लगता है ।कुछ देर के लिए भी यदि हमारे बच्चे हमारी आंखों से ओझल होते हैं तो हमारी आंखें हरनपाल उन्हीं को ढूंढती रहती हैं। उनके वापिस घर आने का इंतजार करती रहती हैं क्योंकि बच्चों से ही घर में चहल-पहल होती है ।बच्चों के बिना हमारे जीवन को पूर्णता प्राप्त नहीं हो सकती। यह सत्य है कि दुनिया में हर व्यक्ति का अपना एक अलग अस्तित्व होता है, किंतु भगवान द्वारा दिए गए इस अनमोल उपहार की तुलना किसी अन्य उपहार के साथ नहीं की जा सकती ।बच्चे हमारे जीवन में खुशहाली लाते हैं और हमारा जीवन सार्थक बनाते हैं इस बात पर तनिक भी संदेह नहीं किया जा सकता।
यह बात हम सभी जानते हैं ,परंतु इन सब बातों को जानने के पश्चात भी हमारी हमेशा यही कोशिश होती है कि जैसा हम खुद हैं या जैसा अपने बच्चों को बनाना चाहते हैं हमारे बच्चे बिल्कुल वैसा ही बने, जैसा हम चाहते हैं कि वे सोचें, वे बिल्कुल वैसा ही सोचे।कभी कभी तो हम उन्हें मजबूर भी करते हैं कि उन्हें उसी दिशा में सोचना चाहिए जिस दिशा में हम उनसे सोचने के लिए कह रहे हैं यहां तक कि अधिकतर माता पिता और अभिभावक अपने बच्चों से यह भी उम्मीद करते हैं कि रहन सहन,सोने जागने,उठने बैठने और यहां तक कि खानपान में भी उनके बच्चे उनकी ही आदतों को अपनाएं और पहनने ओढ़ने के मामले में भी उन्हीं का अनुसरण करें।
पर, क्या आपको लगता है कि यह सही है.? यह सत्य है कि कोई भी माता-पिता नहीं चाहेगा कि उनका बच्चा किसी दूसरे बच्चे से किसी भी सूरत किसी भी मामले में कम हो। हर माता-पिता यही चाहता है कि उनका बच्चा बाकी बच्चों से एक कदम आगे चले और जीवन में उन्नति और प्रगति हासिल करें। किंतु बच्चों को आगे बढ़ावा देने का तात्पर्य यह बिल्कुल नहीं होना चाहिए न कि बच्चे केवल और केवल उन्हीं का अनुसरण करें और अपने मन की ना सुनकर अपनी इच्छाओं का त्याग करते रहे।
पढ़ाई के मामलों में भी अभिभावक अक्सर बच्चों को वही विषय अपनाने के लिए कहते हैं जो वे चाहते हैं कि उनके बच्चे पढ़ें ।कभी-कभी बच्चों की रूचि किसी अमुक विषय को पढ़ने में होती है ,परंतु उस विषय के सकारात्मक और नकारात्मक पहलुओं को जानने और समझने के पश्चात माता पिता यही चाहते हैं कि उनके बच्चे उस विषय में जाएं या ना जाएं।जब इसका निर्णय बच्चे नहीं उनके माता-पिता करते हैं ,तो बच्चों को दबाव के चलते वही विषय पढ़ने पड़ते हैं।
यह ठीक है कि एक उम्र तक बच्चों को इन चीजों की इतनी समझ नहीं होती कि वे अपने लिए कोई निर्णय ले सके, किंतु यदि हम बच्चों को निर्णय लेने की आदत नहीं डालेंगे तो वह दिन कभी नहीं आएगा जब हमारे बच्चे आगे बढ़ कर स्वयं अपने निर्णय लेंगे और जिम्मेदारी का अनुभव करेंगे।
कभी-कभी यह भी देखा जाता है कि हम जिस माहौल में पले बढ़े और पढ़ाई कर नौकरी करने लगे हम अपने आगे आने वाली पीढ़ी से भी यही उम्मीद करते हैं कि वह भी हमें देखकर हमारा अनुसरण करें और उसी राह पर चले जिस राह पर कभी हम चले थे। किंतु यहां यह बात बता देने वाली है कि हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि समाज में परिवर्तन आते रहते हैं। पीढ़ी दर पीढ़ी अंतर जिसे अंग्रेजी भाषा में जेनरेशन गैप का नाम भी दिया जाता है ,स्वभाविक है ।लगभग हर 5 साल में समाज में बहुत बड़े बड़े बदलाव आते हैं जिसके अनुसार जीवन को दिशा देनी होती है । माना कि समाज हम लोगों से ही बनता है किंतु आधुनिक युग में हर क्षेत्र में प्रतियोगिता अधिक बढ़ गई है कि हम चाहते हुए भी बच्चों को बाध्य नहीं कर सकते कि वह हमारे हिसाब से ही आगे चलें। यह बात तो आप सभी मानते हैं ना कि आज का बच्चा बहुत सी बातों में अपनी उम्र से ज्यादा समझदार है। हम सभी अपने-अपने परिवारों में ऐसा कोई ना कोई उदाहरण हर रोज देखते ही रहते हैं जहां बच्चे हमारी बड़ी से बड़ी समस्या का हल चुटकियों में निकाल देते हैं फिर चाहे वह तकनीकी का प्रयोग हो अथवा कोई अन्य कार्य, बच्चे कुछ ही पल में हमारी मुश्किलों का समाधान हमारे सामने लाकर रख देते हैं और हम दांतो तले उंगली दबा कर रह जाते हैं ।तो क्यों ना अपने बच्चों को खुलकर जीने दें, उन्हें उनके निर्णय खुद लेने दें, और उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करें। क्यों ना हम उनको यह भरोसा दिलाया कि हम उनके हर अच्छे बुरे समय में उनके साथ खड़े हैं।
हर वक्त अपनी मर्जी उन पर लाद देना किसी भी सूरत में सही नहीं है। हां ,यह अवश्य है कि हम उनका मार्गदर्शन करें और उन्हें सही गलत का साथ साथ ज्ञान भी देते रहें। हमारा फर्ज बनता है कि हम उन्हें समझाएं कि हर चीज के दो पहलू होते हैं और उन दो पहलुओं को ध्यान में रखते हुए ही हमें अपने जीवन के महत्वपूर्ण निर्णय लेने चाहिए और हर चुनौती का सामना बहादुरी से मजबूती के साथ करने के लिए सदैव तैयार रहना चाहिए ।जीवन में सदैव सकारात्मक दृष्टिकोण रखते हुए ही हमें आगे बढ़ना चाहिए और वसुधैव कुटुंबकम की भावना को मन से अपनाकर अपने साथ-साथ अपने परिवार समाज और राष्ट्र के विकास में अपना योगदान देने के लिए तैयार रहना चाहिए।