शक्ति तथा पराक्रम के देव हैं भगवान नृसिंह

नरेंद्र देवांगन
भगवान हर रूप में भक्त वत्सल हैं। वह भक्तों की पुकार पर उनकी रक्षा और सहायता के लिए कोई न कोई रूप धरकर धरती पर अवतरित हो जाते हैं। भक्त प्रहलाद की रक्षा के लिए भगवान ने नृसिंह अवतार लिया था। वैशाख शुक्ल चतुर्दशी को उनके अवतरण दिवस को नृसिंह जयंती के रूप में मनाया जाता है। हिंदू धर्म में इस जयंती का विशेष महत्त्व है। कहते हैं कि इस दिन भगवान विष्णु ने अधर्म के नाश और धर्म की रक्षा के लिए अवतार लिया था। भगवान नृसिंह शक्ति तथा पराक्रम के देव हैं।
नृसिंह अवतार भगवान विष्णु के प्रमुख अवतारों में से एक है। उन्होंने धरती को हिरण्यकशिपु के अत्याचारों से मुक्त करने के लिए रूप धरा था। प्राचीनकाल में कश्यप ऋषि और उनकी पत्नी दिति को दो पुत्रों की प्राप्ति हुई थी जिसमें से एक का नाम ‘हिरण्याक्ष‘ और दूसरे का ‘हिरण्यकशिपु‘ था। भगवान विष्णु ने पृथ्वी की रक्षा के लिए वराह रूप धर कर हिरण्याक्ष को मारा था।
अपने भाई की मृत्यु से दुखी और क्रोधित हिरण्यकशिपु ने भाई की मृत्यु का प्रतिशोध लेने के लिए अजेय होने का संकल्प किया। उसने कठोर तप करके ब्रह्माजी से अजेय होने का वरदान पाया। वरदान पाने के बाद ही उसने स्वर्ग पर आधिपत्य जमा लिया। देवताओं को उससे पार पाने का उपाय ही नहीं सूझ रहा था। हिरण्यकशिपु प्रजा पर भी अत्याचार करने लगा था।
हिरण्यकशिपु ने जब स्वयं के पुत्रा प्रहलाद पर अत्याचार किए तो भगवान विष्णु स्तंभ फाड़कर नृसिंह रूप में प्रकट हुए और हिरण्यकशिपु का वध किया। प्रहलाद की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान नृसिंह ने उसे वरदान दिया था कि जो भी व्यक्ति आज के दिन मेरा व्रत करेगा, वह कष्टों से मुक्त होकर सुखों को भोगेगा और अंत समय में पाप से मुक्त होकर परम धाम को प्राप्त होगा। तभी से श्री हरि कृपा पाने के लिए नृसिंह जयंती उत्सव मनाया जाता है।
धर्म की राह न छोड़ें: धर्म के मार्ग पर चलते हुए भले ही मार्ग में कुछ अवरोध और कांटे आएं लेकिन धर्म के मार्ग से विलग नहीं होना चाहिए। धर्म की राह पर चलने वाले प्रहलाद की रक्षा के लिए स्वयं भगवान ने अवतार लिया। जहां धर्म है उसकी रक्षा के लिए भगवान भी धरा पर आते हैं। यह कथा हमें धर्म के मार्ग पर बने रहने का विश्वास दिलाती है।
इस तरह करें व्रत: नृसिंह जयंती पर श्रद्धापूर्वक व्रत करने का महत्त्व है और इस दिन भगवान नृसिंह की पूजा-अर्चना की जाती है। भगवान नृसिंह और लक्ष्मीजी की मूर्ति स्थापित करके षोडशोपचार से पूजन किया जाता है। भगवान नृसिंह को प्रसन्न करने के लिए गायत्राी मंत्रा का जाप किया जाता है। इस दिन सामथ्र्य के अनुसार तिल, स्वर्ण तथा वस्त्रा आदि का दान देना चाहिए।
सगे तो केवल नारायण हैं: हिरण्यकशिपु ने प्रहलाद को शिक्षा पाने के लिए गुरू के सानिध्य में भेजा था। प्रहलाद का मन शिक्षा पाते हुए हरि भक्ति में लग गया। शिक्षा प्राप्त करने के बाद जब वह लौटा तो हिरण्यकशिपु ने उससे पूछा, ‘तुम इतने दिनों पाठशाला में रहे, तुमने क्या सीखा, हम भी तो जानें।‘
प्रहलाद ने कहा, ‘पिताजी मेरे गुरूदेव ने जो मुझे सिखाया, वह बताऊं या मैंने जो सीखा, वो बताऊं?‘
हिरण्यकशिपु बोला, ‘बेटा जो तुमने अपने मन से सीखा है वह बताओ?‘
प्रहलाद ने कहा, ‘पिताजी, इस दुनिया में करोड़ों लोग जन्म लेते हैं और मर जाते हैं। सभी को अपने-अपने कर्मों के हिसाब से फल मिलता है। अच्छे कर्मों से स्वर्ग, बुरे कर्मों से नरक मिलता है। जब अच्छे-बुरे कर्म खत्म हो जाते हैं तो वापस इसी पृथ्वी पर आना पड़ता है। हर एक प्राणी इसी प्रकार चैरासी लाख योनियों से भटकता हुआ अपने-अपने कर्मों को भोगता है। यहां कोई किसी का अपना नहीं। माता-पिता, भाई-बंधु, पत्नी-पुत्रा सभी एक झूठा सपना हैं। सगे तो केवल नारायण हैं। कोई कहता है मैं सुखी हूं, कोई कहता है मैं दुखी हूं पर वास्तव में व्यक्ति का सबसे बड़ा सुख केवल श्रीहरि का नाम जपना है। श्री हरि का नाम जपने में ही जीव का कल्याण है।‘ Lord Narasimha is the god of strength and might