विलुप्त होती जा रही हैं अनेक नदियां

डा. कल्पना शर्मा

भारत में सैकड़ों नदियां हैं तथा मनुष्य, पशु एवं वनस्पति को हरा भरा रखने के लिए जल की सख्त आवश्यकता होती है क्योंकि जल ही जीवन है तथा जल का कोई अन्य विकल्प नहीं हो सकता परंतु दुर्भाग्य से हमारे देश की अधिकांश नदियां लगभग मृत होकर सूख चुकी हैं। अनेक नदियां विलुप्त होती जा रही हैं तथा उनके साथ हजारों प्रकार की जड़ी बूटियां या तो गायब हो चुकी हैं या नदियों के साथ ही उनके अस्तित्व को खतरा पैदा हो गया है।

नदियों के सूखने से उनके आस-पास के क्षेत्रों में भूजल का स्तर तेजी से गिरता जा रहा है जिसके कारण खेती योग्य भूमि रेगिस्तान अथवा बंजर भूमि में तब्दील होती जा रही है। देश की नदियों में जिस तरह पानी गायब होता जा रहा है यह एक राष्ट्रीय संकट है परंतु इस ओर सभी आंख बंद कर बैठे हैं।
‘जल ही जीवन है’ और ‘पानी को बर्बादी से बचायें’ जैसे ड्रामेबाज नारे सुनने और पढऩे को खूब मिलते हैं। इनसे बाबुओं और गैर सरकारी संगठनों की जेबें तो खूब भरती हैं परंतु नदियों की धारा सूखी रहती है। नदियों को बचाने के लिए न तो जनता गंभीर है और न ही सरकारें ही गंभीर हैं।

हमारी जीवनदायिनी नदियों के गायब होने एवं सूखने से देश और समाज की क्या दुर्दशा होगी, इसे सभी जानते हैं परंतु फिर भी सभी इस विषय पर सोये हुए हैं। मानसून आने पर देश के लगभग सभी हिस्सों में बाढ़ आ जाती है परंतु कुछ ही समय में सारा पानी समुद्र में बह जाता है तथा नदी की धारा फिर सूखी-की-सूखी रह जाती है।

आज जिस कार्य की सख्त आवश्यकता है, वह यह है कि नदियों के पानी को और वर्षा को नदियों में ही रोका जाये तथा उसे समुद्र में बहने से रोका जाये। विशेषज्ञों की आम राय यह है कि नदियों में जमा सिल्ट को हटा कर नदियों को गहरा किया जाये। इसके साथ ही साथ नदियों में हर दस-बीस किलोमीटर पर छोटे-छोटे बांध बनाये जायें। बरसात के मौसम के अतिरिक्त पानी को रेन वाटर हारवेस्टिंग के द्वारा जमीन के अंदर पहुँचाया जाये जिससे भूजल का स्तर ऊँचा किया जा सके।

इसके अतिरिक्त नदियों को आपस में जोड़कर बरसात के अतिरिक्त पानी को सूखी नदियों में पहुँचाया जाये। नदियों की रक्षा एवं पर्यावरण के नाम पर प्रतिवर्ष हजारों करोड़ रूपया तो खर्च हो जाता है परंतु इस सारे पैसे को पर्यावरण से जुड़े संगठन हजम कर जाते हैं। नदियों को बचाने के लिए कोई भी कारगर योजना आज तक देश में प्रारम्भ ही नहीं की गयी है। देश की प्रमुख नदियों को जोडऩे की बात बरसों से चल रही है परंतु आज तक सिर्फ गुजरात में ही इस योजना पर कुछ कार्य हो पाया है। बाकी राष्ट्र का रिपोर्ट कार्ड एक दम शून्य है।

नदियों के सूखने से देश का पर्यावरण संतुलन एक दम बिगड़ता जा रहा है। देश की नदियां सूख ही नहीं रही हैं अपितु नदियों का क्षेत्र भी छोटा होता जा रहा है। भू-माफिया नदियों की भूमि पर कब्जा कर लेते हैं, फिर उसमें प्लॉट कट जाते हैं तथा निर्माण कार्य हो जाता है। ये गतिविधियां राजधानी दिल्ली में ही देखी जा सकती हैं जहां भू-माफियाओं ने नेताओं के संरक्षण में यमुना नदी के क्षेत्र में बड़ी तादाद में अवैध कॉलोनियां बसा रखी हैं।

हमारे देश में नदियां राष्ट्र की जीवन रेखा हैं। उन्हें हर स्तर पर बचाना होगा। नदी का सीधा संबंध पानी, मिट्टी, वायु, कृषि एवं जीवन से होता है। अगर इन नदियों के अस्तित्व को खतरा होता है तो हमारे अस्तित्व को भी खतरा पैदा हो जायेगा। न केवल पीने के पानी का संकट पैदा हो जायेगा इसके साथ ही साथ खेती एवं अनाज का भी संकट खड़ा हो जायेगा।

नदियों की इस अनदेखी के कारण हमारे देश में जहां सूखे की समस्या सदैव बनी रहती है, वहीं नदियों पर बांध, रेन वाटर हार्वेस्टिंग व्यवस्था का न होना एवं नदियों के आपस में न जुड़े होने के कारण देश में प्रति वर्ष कहीं न कहीं बाढ़ आती रहती है।

उदाहरण के लिए आसाम में ब्रह्यपुत्र नदी में हर वर्ष बाढ़ आती है परन्तु उड़ीसा, कर्नाटक एवं तमिलनाडु में हर वर्ष सूखे की समस्या रहती है। हर वर्ष बिहार में कोसी भयंकर तबाही मचा देती है परंतु उत्तर प्रदेश एवं मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में अनेक वर्षों से नदियां सूखी पड़ी हैं जिससे उस क्षेत्र में भयंकर सूखा पड़ा हुआ हैै। केंद्र एवं हर राज्य में पर्यावरण मंत्रलय कार्य कर रहा है परन्तु इन सभी मंत्रलयों का काम सिर्फ बांधों एवं योजनाओं के क्रि यान्वयन में अड़ंगा लगाना मात्र रह गया है। नदियों को सूखने से बचाने के लिए आज तक कुछ भी नहीं किया गया है।

अगर नदियों को गायब होने से बचाना है, देश को सूखे एवं बाढ़ से बचाना है, देश को हरा भरा करना है तो सभी को गुजरात माडल को अपनाना होगा। अकेले नर्मदा बांध से गुजरात की अनेक सूखी नदियों में एक बार फिर जल की धारा बह चली है। इसी तरह सुजलाम-सुफलाम नदियों के जुडऩे से गुजरात में अब नदियों में जल की धारा बह निकली है। इन योजनाओं के पूरा होने से गुजरात में सूखे एवं बाढ़ को रोकने में काफी मदद मिली है। इसके साथ कृषि उत्पादन भी काफी बढ़ा है तथा भू-जल स्तर काफी बढ़ गया है।

राष्ट्र और समाज के हित में होगा कि नदियों को सूखने से बचाने के लिए युद्ध स्तर पर अब प्रयास करने होंगें अन्यथा देश के लिए आने वाले वर्ष अत्यंत कष्टदायी होंगे।

India Edge News Desk

Follow the latest breaking news and developments from Chhattisgarh , Madhya Pradesh , India and around the world with India Edge News newsdesk. From politics and policies to the economy and the environment, from local issues to national events and global affairs, we've got you covered.
Back to top button