मोदी की यात्राएँ और कांग्रेस के फ़ेक नैरेटिव

● नीरज मनजीत
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी फ्रांस और अमेरिका की निहायत ही सफल यात्राओं के बाद नई दिल्ली लौट आए हैं। वे क्या कुछ लेकर आए हैं, क्या देकर आए हैं, इसकी समीक्षा तो हो ही रही है। इसके अलावा उन सारे प्रश्नों के उत्तर भी मिल रहे हैं, जो विपक्ष पिछले एक महीने से उठा रहा था। 20 जनवरी को डोनाल्ड ट्रंप के शपथ ग्रहण के पहले और उसके बाद पूरा विपक्ष और उसका इकोसिस्टम यह साबित करने में जुटा हुआ था कि वैश्विक बिरादरी में प्रधानमंत्री मोदी का कद कम हो रहा है। दरअसल ट्रंप के शपथ ग्रहण समारोह में चीन के प्रधानमंत्री शी जिनपिंग को बुलाया गया था, जबकि पीएम मोदी को न्योता नहीं दिया गया। इस बात को लेकर वैश्विक राजनय के समीक्षकों में तो झूठी-सच्ची अटकलों का बाज़ार गर्म था ही, भारत के अंदर भी विपक्ष के इकोसिस्टम ने सोशल मीडिया पर झूठी खबरों का हल्ला मचाया हुआ था।
एक्स के एक यूज़र दीप अग्रवाल ने अपने ट्विटर हैंडल पर राहुल गांधी का चित्र लगाकर ट्वीट किया कि–“वाशिंगटन पोस्ट ने खुलासा किया है कि डोनाल्ड ट्रंप ने अपने शपथ ग्रहण समारोह में मोदी को क्यों नही बुलाया। अमेरिका का कहना हैं कि मोदी सरकार ‘रा’ का दुरुपयोग कर अमेरिकी नागरिकों की हत्या करवा रही हैं। भारत की रूस और चीन से बढ़ रही नज़दीकियां भी अमेरिका को रास नहीं आ रही हैं, इसलिए ट्रंप को लगता हैं कि भारत अब भरोसेमंद देश नहीं रहा। ये सब मोदी सरकार की विदेश नीति का फेलियर हैं और अंधभक्तों को लगता हैं कि डंका बज रहा हैं।” इस ट्वीट के बाद हलचल मचनी ही थी। जब कुछ भारतीय अख़बारों ने इस ट्वीट की वास्तविकता का पता लगाया, तो सच सामने आया कि वाशिंगटन पोस्ट में ऐसी कोई ख़बर छपी ही नहीं है। क्या इससे स्पष्ट नहीं होता कि कांग्रेस के ही किसी महानुभाव ने फ़ेक नैरेटिव खड़ा करने का प्रयास किया था?
इस तथ्य को बल तब मिला, जब राहुल गांधी ने संसद में खड़े होकर बयान दिया कि राष्ट्रपति ट्रंप के शपथ ग्रहण समारोह में पीएम मोदी का न्योता सुनिश्चित करने के लिए विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अमेरिका जाकर अनुरोध किया था। इस बयान पर पलटवार करते हुए एस जयशंकर ने अपने एक्स अकॉउंट पर लिखा कि–“नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी जानबूझकर दिसंबर 2024 की मेरी अमेरिका यात्रा के बारे में झूठ बोल रहे हैं। मैं अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन प्रशासन के विदेश मंत्री और वहां के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार से मिलने गया था। इस दौरान कभी भी पीएम मोदी को बुलाए जाने पर कोई भी चर्चा नहीं हुई है।” कैबिनेट मंत्री किरण रिजिजू ने भी इस बयान का कड़ा विरोध करते हुए तत्काल जवाब दिया था कि “राहुल गांधी बिना किसी सबूत के निराधार आरोप लगा रहे हैं।”
वैसे भी गहराई से विचार करें, तो राहुल गांधी के इस असत्य भाष्य को समझा जा सकता है। क्या वे एस जयशंकर के साथ अमेरिका गए थे, जो भरोसे के साथ संसद में ऐसा कह रहे हैं? क्या किसी अमेरिकी अधिकारी ने उन्हें ऐसा बताया है? क्या अमेरिका के किसी अख़बार ने ऐसी कोई ख़बर छापी है? इनमें से किसी भी सवाल का कोई भी जवाब राहुल गांधी के पास नहीं है। लगता है राहुल गांधी भी अरविंद केजरीवाल की “झूठ दागो और भाग लो” यानी संसद से लेकर हर मंच पर “असत्य आरोप लगाओ और खिसक लो” की सियासत पर चल निकले हैं। समझ में नहीं आ रहा है कि राहुल गांधी जैसे प्रबुद्ध राजनेता ऐसा क्यों कर रहे हैं? अब तो वे नेता प्रतिपक्ष के जिम्मेदार ओहदे पर विराजमान हैं। इस तरह की सियासत से उनकी ही विश्वसनीयता कम हो रही है। उन्हें तो हर जगह सत्य पर आधारित साफ़-सुथरी राजनीति की मिसाल पेश करनी चाहिए और अपने कैडर को भी रचनात्मक राजनीति के लिए प्रेरित करना चाहिए।
पीएम मोदी की फ्रांस यात्रा के बीच एक वीडियो शेयर करके कतिपय कांग्रेसी नेताओं ने फिर से यह जताने का असत्य और हास्यास्पद प्रयत्न किया कि फ्रांस के राष्ट्रपति इमानुअल मैक्रों ने पीएम मोदी की उपेक्षा की है। दरअसल पीएम मोदी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के शिखर सम्मेलन में शामिल होने के लिए 10 से 13 फ़रवरी तक फ्रांस की यात्रा पर गए थे। वहाँ सम्मेलन हाल में दुनिया के सभी राजनेता बैठे हुए थे, तभी इमानुअल मैक्रों वहाँ पहुँचे और हाथ मिलाकर वैश्विक नेताओं का स्वागत करने लगे। यहाँ बताना जरूरी है कि वे उन नेताओं से हाथ नहीं मिला रहे थे, जिनका वे पहले स्वागत कर चुके थे। मोदी भी उनमें से एक थे, इसलिए मैक्रों ने उनसे हाथ नहीं मिलाया। इस 10 सेकंड की क्लिप को कर्नाटक कांग्रेस के नेता श्रीनिवासन बी वी ने एक्स पर शेयर करते हुए पीएम मोदी पर तंज कसा कि–“ईडी संज्ञान ले…….विश्व गुरु से हाथ नहीं मिलाया”। बाद में और भी कई कांग्रेसी नेताओं ने इसे शेयर करते हुए पीएम मोदी का ‘अपमान’ बताया। यहाँ इस महत्वहीन और हास्यास्पद प्रसंग का ज़िक्र इसलिए किया गया है, ताकि लोगों को पता चले कि कांग्रेस के समर्थन में उतरा इकोसिस्टम किस क़दर दिवालिया होता जा रहा है।
सच तो यह है कि वैश्विक बिरादरी में राष्ट्रपति मैक्रों पीएम मोदी के निकटतम मित्रों में से एक हैं। फ्रांस भारत का महत्वपूर्ण और बड़ा रणनीतिक तथा कारोबारी साझेदार है। दोनों देश सामुद्रिक सुरक्षा, साइबर सिक्योरिटी, रक्षा, आतंकवाद, परमाणु ऊर्जा, अंतरिक्ष जैसे कई महत्वपूर्ण इलाकों में आपसी सहयोग कर रहे हैं। जिस आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के शिखर सम्मेलन में मोदी भाग ले रहे थे, उसकी सह-अध्यक्षता उन्होंने ही की है। प्रधानमंत्री मोदी जब सम्मेलन हाल में पहुँचे, तो राष्ट्रपति मैक्रों ने आगे बढ़कर गर्मजोशी से गले लगाकर-हाथ मिलाकर उनका स्वागत किया और उनके साथ चलकर उन्हें बिठाया। उसके बाद एक बार फिर मैक्रों ने मोदी के प्रति पूरा सम्मान व्यक्त करते हुए गले लगाकर उन्हें स्टेज पर बिठाया। मोदी और मैक्रों पेरिस में 14 वें “भारत-फ्रांस सीईओ फ़ोरम” की बैठक में भी शामिल हुए और मोदी ने फ्रांसीसी कंपनियों को निवेश के लिए भारत आमंत्रित किया।
इस यात्रा के दौरान मोदी अमेरिका के उप राष्ट्रपति जेडी वेंस, उनकी भारतीय मूल की पत्नी उषा वेंस और उनके बच्चों इवान और विवेक से भी मिले। यह एक पारिवारिक मुलाकात थी। जेडी वेंस ने मोदी को अपने बेटे के जन्मदिन के अवसर पर एक निहायत ही पारिवारिक कार्यक्रम में भी आमंत्रित किया था। इसके अलावा संयुक्त राष्ट्र उन्होंने महासचिव एंतानियो गुटेरेस से सौजन्य भेंट करके कई अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर वार्ता की। पीएम मोदी और राष्ट्रपति मैक्रों ने मिलकर मार्सेई नगर में भारतीय वाणिज्यिक दूतावास का उद्घाटन किया और वीर सावरकर को श्रद्धांजलि अर्पित की। मार्सेई नगर और सावरकर के बीच बड़ा ही भावनात्मक रिश्ता है। दरअसल सावरकर जब इंग्लैंड की क़ैद से भागकर मार्सेई नगर पहुँचे थे, तो यहाँ के नागरिकों ने उनकी मदद की थी। मोदी और मैक्रों ने ऐतिहासिक माजारग्वेज कब्रिस्तान का दौरा किया और पहले विश्व युद्ध में सर्वोच्च बलिदान देने वाले भारतीय सैनिकों को श्रद्धांजलि दी। फ्रांस से विदा होते वक़्त राष्ट्रपति मैक्रों सारे प्रोटोकॉल तोड़कर एयरपोर्ट तक गए और एक बार पुनः पीएम मोदी से गले मिलकर गर्मजोशी से हाथ मिलाकर उन्हें विदाई दी।
अमेरिका में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और उनके प्रशासन ने जिस गर्मजोशी से उनका अभूतपूर्व स्वागत सम्मान किया है, वह टेलीविजन चैनलों के जरिए सबने देखा है। भारत और अमेरिका के बीच जो महत्वपूर्ण समझौते हुए हैं, उसे भी सबने देखा और समझा है। कई स्तरों पर इसकी समीक्षा हो रही है, उसे भी हमारे प्रबुद्ध पाठक समझ रहे हैं। यहाँ हम उसे दोहराना नहीं चाहते। हम यहाँ केवल उन मुलाकातों का ज़िक्र करके यह बताना चाहते हैं कि ट्रंप प्रशासन की निगाहों में प्रधानमंत्री मोदी की इस अमेरिका यात्रा का कितना महत्व है। प्रधानमंत्री मोदी के ठहरने का इंतज़ाम व्हाइट हाउस के सामने ऐतिहासिक इमारत ब्लेयर हाउस में किया गया था। इस भवन में अमेरिका के बहुत ही विशेष अतिथियों को ठहराया जाता है। एलिजाबेथ प्रथम, निकिता ख्रुश्चेव, मार्गरेट थैचर यहाँ रुक चुके हैं। भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी को भी यहाँ सम्मानपूर्वक ठहराया गया है।
पीएम मोदी की सबसे पहली मुलाकात अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार माइकल वॉल्ट्ज से हुई। माइकल वॉल्ट्ज अमेरिका के भारत हितैषी अधिकारियों में से एक हैं। तक़रीबन 50 मिनट की इस मुलाकात में डिफेंस, टेक्नोलॉजी, सेक्योरिटी, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, स्पेस, सेमी कंडक्टर जैसे महत्वपूर्ण इलाकों में सहयोग बढ़ाने पर सार्थक चर्चा हुई। इसके बाद नेशनल इंटेलिजेंस डायरेक्टर तुलसी गेबार्ड और भारतीय मूल के इंटरप्रेन्योर विवेक रामास्वामी पीएम मोदी से मिले। सर्वाधिक रोचक भेंट हुई टेस्ला के सीईओ इलोन मस्क से, जो पत्नी और तीन बच्चों के साथ आए थे। यह एक बड़ी ही अच्छी पारिवारिक मुलाकात थी।
आखिर में राष्ट्रपति ट्रंप और प्रधानमंत्री मोदी की बीच व्हाइट हाउस में बहुप्रतीक्षित मुलाकात हुई। चार घण्टे तक चली इस मुलाकात पर दुनियाभर के ताक़तवर हलक़ों की निगाहें लगी हुई थीं। यह दुनिया के दो महान लोकतांत्रिक देशों के दो महान राष्ट्र प्रमुखों की ऐतिहासिक मुलाकात थी। ये ऐसे दो शक्तिशाली राजनेताओं की मुलाकात थी, जो अपने देश और अपने देशवासियों की समृद्धि के साथ-साथ दुनिया को बदलने की अभिलाषा रखते हैं। यह दो महान मित्रों की मुलाकात थी, इसीलिए पीएम मोदी ने इसे एक और एक ग्यारह की संज्ञा दी है। इस भेंट के बाद उन तमाम सवालों के जवाब मिल गए हैं कि ट्रंप ने शपथ ग्रहण समारोह में मोदी को क्यों नहीं बुलाया। दरअसल वे मोदी से इत्मीनान से भरी लंबी मुलाकात चाहते थे, जो शपथ ग्रहण की गहमागहमी में संभव नहीं थी। इन यात्राओं के बाद प्रधानमंत्री मोदी वैश्विक समुदाय में बढ़े हुए कद के साथ वापस लौटे हैं।