भारत को महाशक्ति बनने के लिए खेलों की बादशाहत की भी है जरूरत

नरेंद्र तिवारी

एक विकसित और मजबूत राष्ट्र घातक और मारक हथियारों से ही निर्मित नहीं होता। इसके लिए राष्ट्र के नागरिकों में खेलों के प्रति जुनून का होना भी जरूरी है। दुनियाँ के अनेकों विकसित एवं प्रगतिशील राष्ट्रों ने अपने नागरिकों में खेल संस्कृति विकसित कर खेलों के प्रति जुनून पैदा किया और दुनियाँ को अपनी प्रगति, विकास और आधुनिकता से अवगत कराया है। अनेकों देशों ने खेलों के वैश्विक आयोजनों में श्रेष्ठ प्रदर्शन कर, विश्वस्तरीय खेल प्रतियोगिताओं का आयोजन कर दुनियाँ को अपने दम ओर शक्ति से परिचित कराया है। जब अरब देश कतर में विश्व कप फुटबॉल का आयोजन चल रहा हैं। दुनियाँ के अनेकों देश फुटबॉल के जुनून से सरोबार हो रहें है। तब जहन में इन प्रश्नों का जन्म लेना लाजमी है की विश्व कप फुटबॉल के आयोजन में भारत कहां खड़ा हैं। आखिर फुटबॉल के इस विश्वस्तरीय आयोजन में भारत की टीम शामिल क्यों नहीं हो पाती है। सवाल यह भी है कि आजादी के बाद से अब तक फुटबॉल जैसे विश्व प्रसिद्ध खेल के विकास में हमारी सरकारों ने ध्यान क्यों नहीं दिया? क्यों फुटबॉल के ऐसे खिलाड़ियों का निर्माण नहीं हो पा रहा है जो भारत को फुटबॉल के विश्वस्तरीय आयोजन में शामिल होने की योग्यता दिला सके ? इन प्रश्नों के समाधान के पूर्व यह समझ लेना बेहद जरूरी है कि फ़ीफ़ा क्या है, यह कैसे और क्या कार्य करता है। फ़ीफ़ा फुटबॉल का अंतरराष्ट्रीय संघ हैं। फेडरेशन इंटरनेशनल फुटबॉल एशोसिएशन फुटबॉल की वैश्विक संस्था है। अंतरराष्ट्रीय फुटबॉल विश्वकप के आयोजन को फ़ीफ़ा विश्वकप भी कहा जाता हैं। फ़ीफ़ा ही यह तय करता है कि अगला विश्व कप कहां होगा और यह भी की कौनसे देश की टीम फुटबॉल रैंकिंग में किस पायदान पर है। विश्व कप मैचों का आयोजन संचालन और नवीन निर्णय लेने का कार्य भी इस संस्था का है। फ़ीफ़ा विश्वकप 1930 से हर चार वर्षों में आयोजित होते हैं। वर्ष 1942 और 1946 द्वितीय विश्वयुद्ध के कारण इसका आयोजन नहीं किया गया था। 2022 फुटबॉल विश्वकप का आयोजन अरब देश कतर में चल रहा हैं। दुनियाँ के 32 देश जब फुटबॉल के जुनून में डूबे हुए है। कतर इस विश्वस्तरीय फुटबॉल प्रतियोगिता की मेजबानी कर रहा है, तब भारत महज दर्शक की पंक्ति में खड़ा दुनियाँ के फुटबॉलरों के रोमांच को निहार रहा हैं। क्या भारतीय खिलाड़ियों में इतनी शारारिक क्षमता नहीं है कि वें पेशेवर पश्चिमी देशों के खिलाड़ियों की शक्ति का मुकाबला कर सकें। फुटबॉल सिर्फ मैदान में नहीं बल्कि दिमागों में भी खेला जाता हैं। भारत की शारारिक और मानसिक शक्ति का लोहा दुनियाँ ने हॉकी ओर क्रिकेट में देखा है तो फिर फुटबॉल में हम मुकाबला क्यों नही कर पाते हैं। आमतौर पर हम देखतें है कि सारे भारत मे क्रिकेट को विकसित करने के लिए प्रदेश, जिला एवं तहसील स्तर पर क्रिकेट एशोसिएशन कार्य करतीं है। इस प्रकार की कोई संस्था फुटबॉल के विकास के लिए कार्य करती नहीं दिखती। भारत मे फुटबॉल के प्रति वह जुनून नहीं बन पा रहा जो वर्तमान में क्रिकेट के प्रति है। भूतकाल में हॉकी के प्रति था। भारत फुटबॉल विश्व कप में शामिल नहीं हो पाता है। इस विषय पर बहसें तो खूब होतीं है, किंतु सरकार के स्तर पर इसकी कोशिशों का अभाव दिखाई देता है। पेशेवर फुटबॉल खिलाड़ी बनने के लिए शारारिक ओर मानसिक मेहनत के अलावा रणनीतिक कुशलता, सर्वक्षेष्ठ कोचिंग, विश्वस्तरीय सुविधाएं और कढ़ी मेहनत करने वाले खिलाड़ियों की जरूरत है। भारतीय खिलाड़ी यूरोपीय खिलाड़ियों के सामने उम्दा प्रदर्शन कर सकें इसके लिए कठोर शारारिक प्रदर्शन, रणनीतिक कुशलता में सुधार के अलावा क्रिकेट की तरह फुटबॉल के भी एशोसिएशन बने जो प्रदेश, सम्भाग, जिला और तहसील स्तर पर फुटबॉल के प्रति युवाओं और खासकर स्कूल, कॉलेजों में माहौल तैयार कर सकें। सेना की तरह कठोर परिश्रम से ही फुटबॉल के विश्व स्तरीय खिलाड़ियों का निर्माण किया जा सकता हैं। भारतीय फुटबॉल टीम की मौजूदा रैकिंग 103 वें पायदान पर है। यह बहुत कम लोगो को मालूम होगा कि भारतीय फुटबॉल टीम 1950 के ब्राजील में आयोजित फ़ीफ़ा वर्ल्ड कप में क्वालीफाई करने में सफल रही थी। निराशाजनक बात यह है कि खराब आर्थिक स्थिति का हवाला देकर फ़ीफ़ा वर्ल्ड से अपना नाम वापिस ले लिया था। फुटबॉल से जुड़ा 1948 के ओलंपिक का वाकिया भी वर्तमान भारत को जानना जरूरी है, जब मुकाबले में उतरी टीम के 11 में से 8 भारतीय खिलाड़ियों ने बिना जूतों के स्पर्धा में भाग लिया था। तात्कालिन भारतीय कप्तान तालीमेरन एओ का उक्त कथन खूब सुर्खियों में रहा था उन्होंने उस समय कहा था “भारत में हम फुटबॉल खेलतें है, जैसे कि आप यंहा बूटबॉल खेलतें हैं।” कुलमिलाकर भारतीय फुटबॉल का इतिहास काफी निराशाजनक रहा है। ऐसा लगता है कि क्रिकेट ने भारत मे फुटबॉल सहित अन्य खेलों का बहुत नुकसान किया है। क्रिकेट ने जहां हॉकी का काफी नुकसान किया हैं। वहीं फुटबॉल को क्रिकेट ने पनपने ही नहीं दिया। दरअसल फुटबॉल भारत मे क्रिकेट की चकाचौंध का शिकार हो गया है। फुटबॉल के विकास पर देश की सरकार को ध्यान देने की जरूरत हैं। सरकार को अब से योजना तैयार करना चाहिए कि 2026 में आयोजित कनाडा, अमेरिका और मैक्सिको के सयुक्त आतिथ्य में आयोजित फ़ीफ़ा वर्ल्ड कप में भारत की रैंकिंग में सुधार हो किन्तु 2030 के आयोजन में भारत फ़ीफ़ा वर्ल्ड कप खेलने वाली टीम में शामिल हो। देश के खेल मंत्रालय और फुटबाल संघों, क्लबों को मिशन 2030 की तैयारी शुरू कर देनी चाहिये। क्रिकेट की तरह देश के खेल प्रेमियों में फुटबॉल के प्रति जुनून पैदा हो ताकि पुर्तगाल के क्रिस्टोयानो रोनाल्डो, अर्जेटीना के मैसी ओर ब्राजील के नेमार जैसे फुटबॉलर भारत से भी निकल सके देश को क्रिकेट की तरह फुटबॉल के सचिन, धोनी और विराट की जरूरत है। मिशन 2030 के लिए देश को कमर कसना चाहिए। खेलों के माध्यम से दुनियाँ में अपनी ताकत और शक्ति दिखाने की अब भारत को मजबूत कोशिश करना चाहिए। फ़ीफ़ा के पूर्व अध्यक्ष सेप ब्लेटर ने फुटबॉल में भारत की संभावना को लेकर एक समय कहा था ‘ भारत फुटबॉल जगत का सोया हुआ शेर है।’ इस शेर को जगाने की जरूरत है। भारत मे इंडियन सुपर लीग, आई-लीग एवं यूथ लीग फुटबॉल के प्रचार में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। फुटबॉल के प्रति आकर्षण को देश के सभी प्रदेश, महानगर, सम्भाग, जिला और तहसील स्तर पर बढाने की आवश्यकता है। भारत को दुनियाँ की महाशक्ति बनने के लिए खेलों की बादशाहत की भी बहुत जरूरत हैं।

India Edge News Desk

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