नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल बंद पड़ी बजट एयरलाइन गो फर्स्ट के लिक्विडेशन को मंजूरी दी, कर्ज चुकाएगी गो फर्स्ट

नई दिल्ली
नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) ने सोमवार को बंद पड़ी बजट एयरलाइन गो फर्स्ट के लिक्विडेशन को मंजूरी दे दी। यह निर्णय न्यायिक सदस्य महेंद्र खंडेलवाल और तकनीकी सदस्य डॉ. संजीव रंजन की पीठ द्वारा दिया गया, जिन्होंने एयरलाइन की लेंडर्स समिति (सीओसी) द्वारा प्रस्तुत आवेदन के पक्ष में फैसला सुनाया। बता दें कि लिक्विडेशन के तहत किसी कंपनी की संपत्तियों को बेचकर उसके कर्ज और देनदारियों का भुगतान किया जाता है। इस प्रक्रिया के बाद कंपनी का वजूद भी खत्म हो जाता है।

क्या है डिटेल
वाडिया समूह के स्वामित्व वाली गो फर्स्ट ने 2 मई, 2023 को परिचालन बंद कर दिया था और दिवालियापन संहिता (आईबीसी) की धारा 10 के तहत 10 मई को स्वेच्छा से दिवाला कार्यवाही की मांग की थी। कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया (सीआईआरपी) में प्रवेश के बाद एयरलाइन की संपत्ति और संचालन की देखरेख के लिए एक रिजॉल्यूशन प्रोफेशनल (आरपी) नियुक्त किया गया था। हालांकि, सीओसी ने विमान और परिचालन संसाधनों की कमी का हवाला देते हुए सितंबर 2024 में निर्धारित किया कि एयरलाइन के पास रिवाइवल का कोई और रास्ता नहीं है और लिक्विडेशन के लिए दायर किया गया था।

कंपनी पर भारी भरकम कर्ज
बता दें कि एयरलाइन पर कुल लगभग ₹11,000 करोड़ का कर्ज है। इस पर बैंकों का ₹6,521 करोड़ बकाया है। इसमें सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया ₹1,987 करोड़ का सबसे बड़ा लेंडर है, इसके बाद बैंक ऑफ बड़ौदा ₹1,430 करोड़, ड्यूश बैंक ₹1,320 करोड़ और आईडीबीआई बैंक ₹58 करोड़ है। इसके अलावा, एयरलाइन पर विमान लीज पर देने वालों का ₹2,000 करोड़, विक्रेताओं का ₹1,000 करोड़, ट्रैवल एजेंटों का ₹600 करोड़ और ग्राहकों का रिफंड ₹500 करोड़ बकाया है। वहीं, गो फर्स्ट ने COVID-19 महामारी के दौरान शुरू की गई सरकार की इमरजेंसी लोन स्कीम के तहत ₹1,292 करोड़ का उधार भी लिया। एयरलाइन की टॉप संपत्तियों में ठाणे में 94 एकड़ जमीन का पार्सल, जिसकी कीमत लगभग ₹3,000 करोड़ है। मुंबई में एक एयरबस ट्रेनिंग फैसिलिटी और इसका मुख्यालय शामिल है।

India Edge News Desk

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